विदेशी निवेशकों (Foreign Funds) ने इंडियन मार्केट में पिछले आठ सत्रों में 1 अरब डॉलर के शेयर बेचे हैं। यह हाल में विदेशी निवेशकों की सबसे बड़ी बिकवाली है। इसका असर मार्केट पर पड़ा है। माना जा रहा है कि मंदी की आशंका को देखते हुए इंडियन और ग्लोबल मार्केट में बिकवाली हो रही है।
नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) के डेटा के मुताबिक, फॉरेन इनवेस्टर्स ने इंडियन मार्केट में 23 सितंबर को 2.899.68 करोड़ रुपये के शेयर बेचे। 14 सितंबर से 22 सितंबर के बीच उन्होंने 68.61 करोड़ डॉलर के शेयर बेचे थे। सात सत्रों में उन्होंने 5 सत्रों में बिकवाली की।
जुलाई के मध्य में इंडियन इकोनॉमी से जुड़े बेहतर आंकड़े आने के बाद विदेशी फंडों ने इंडिया में खरीदारी शुरू की थी। इससे पहले वह लगातार बिकवाली कर रहे थे। अक्टूबर 2021 से जून 2022 के बीच उन्होंने 34.43 अरब डॉलर के शेयर बेचे थे।
पिछले कुछ दिनों में शेयर बाजारों के प्रमुख सूचकांकों में गिरावट आ रही है। इसकी वजह विदेशी बाजारों खासकर अमेरिकी बाजारों में हो रही बिकवाल है। यह माना जा रहा है कि कई देशों के केंद्रीय बैंकों के इंटरेस्ट रेट बढ़ाने का असर ग्लोबल इकोनॉमी की ग्रोथ पर पड़ेगा।
इंडियन स्टॉक मार्केट में इस साल जितनी तेजी आई थी, वह स्वाहा हो चुकी है। इस साल की शुरुआत से सेंसेक्स ओर निफ्टी 1 फीसदी गिर चुके हैं। डॉलर में प्रत्येक में 8-8 फीसदी गिरावट आई है।
26 सितंबर को डॉलर के मुकाबले रुपया नए निचले स्तर पर पहुंच गया। यह 81.55 के स्तर पर पहुंच गया। इस साल अब तक डॉलर के मुकाबले रुयया 8.5 फीसदी गिर चुका है। इस साल डॉलर 20 साल की ऊंचाई पर पहुंच गया है। इसमें अब तक 17 फीसदी से ज्यादा मजबूती आई है।
कोटक इक्विटीज ने अपनी रिपोर्ट में इनवेस्टर्स से कहा है, "इनफ्लेशन को काबू में करने के लिए अमेरिकी फेडरल रिजर्व के लगातार इंटरेस्ट रेट बढ़ाने से दुनिया के दूसरे केंद्रीय बैंक भी इंटरेस्ट रेट बढ़ाएंगे। इससे दूसरे बाजारों के रास्ते पर इंडिया के नहीं चलने की मार्केट की उम्मीद खत्म हो सकती है। इनफ्लेशन के साथ ही BoP/Currency Challenge को देखते हुए RBI इंटरेस्ट रेट में उम्मीद से ज्यादा वृद्धि कर सकता है। उम्मीद से ज्यादा इंटरेस्ट रेट बढ़ने का असर इकोनॉमी और मार्केट दोनों पर पड़ेगा। "
इधर, कुछ एनालिस्ट्स का मानना है कि फिलहाल भारी बिकवाली के बावजूद विदेशी फंडों की खरीदारी इंडियन मार्केट में जारी रह सकती है। इसकी वजह बेहतर मंथली डेटा और क्रूड ऑयल की कीमतों में नरमी है।