सर्वे के इस एडिशन के पोल में भाग लेने वाले 7 फंड मैनेजर्स की कुल एसेट अंडर मैनेजमेंट (AUM) 3.90 लाख करोड़ रुपये है
Moneycontrol Market Sentiment Survey : पूर्वी यूरोप में जारी टकराव, एनर्जी की ऊंची कीमतें और यूएस फेडरल रिजर्व (US Federal Reserve) का ब्याज दरों में बढ़ोतरी को लेकर सख्त रुख वित्त वर्ष 23 में निफ्टी50 (Nifty50) की कंपनियों की अर्निंग्स को बहुत ज्यादा प्रभावित नहीं कर सकता। हालांकि, अगर लड़ाई लंबी खिंचती है और फ्यूल की कीमतें 100 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर बनी रहती हैं तो कुछ हद तक अर्निंग्स कम हो सकती हैं। मनीकंट्रोल के घरेलू फंड मैनेजर्स (fund managers) के इस संस्करण के निष्कर्षों में यह बात सामने आई है।
पोल में भाग लेने वाले सात फंड मैनेजर्स में से चार को वित्त वर्ष 23 में कॉरपोरेट अर्निंग्स की ग्रोथ में कुछ कमी की उम्मीद है, जबकि दो ने अभी तय नहीं किया है कि क्या इस पर असर होगा या नहीं। हालांकि, टाटा एएमसी को अर्निंग्स पर कोई असर नहीं पड़ता दिख रहा है।
टाटा एएमसी और मिरे एसेट मैनेजमेंट सबसे ज्यादा आशावादी फंड हाउस हैं, जो अगले वित्त वर्ष में निफ्टी50 की कंपनियों में 15-20 फीसदी की ग्रोथ देख रहे हैं। बाकी फंड मैनेजर्स को कुछ कम यानी 10-15 फीसदी अर्निंग ग्रोथ की उम्मीद है।
सर्वे के इस एडिशन के पोल में भाग लेने वाले फंड मैनेजर्स की कुल एसेट अंडर मैनेजमेंट (AUM) 3.90 लाख करोड़ रुपये है।
दुनिया पर महंगाई जनित मंदी का खतरा
रूस-यूक्रेन युद्ध (Russia-Ukraine war) के चलते वैश्विक स्तर पर कमोडिटी और फूड की कीमतों में खासी बढ़ोतरी हो गई है, जब कई ग्लोबल इकोनॉमीज महंगाई से जुड़ी मंदी के खतरे का सामना कर रही हैं। बड़े ग्लोबल इनवेस्टमेंट बैंक और एक्सपर्ट्स भी ऐसी आशंका जता चुके हैं। महंगाई जनित मंदी ऐसी स्थिति है, जब महंगाई के साथ भारी बेरोजगारी और इकोनॉमी में स्थिर मांग की समस्याएं सामने आती हैं।
वर्ल्ड बैंक (World Bank) के पूर्व चीफ इकोनॉमिस्ट और सरकार के पूर्व चीफ इकोनॉमिक एडवाइजर कौशिक बासु ने दो महीने पहले एक इंटरव्यू में कहा था कि अमेरिका और यूरोप जैसी ग्लोबल इकोनॉमीज के अलावा भारतीय इकोनॉमी भी महंगाई जनित मंदी की ओर जा रही है। उनके मुताबिक, यह ज्यादा मुश्किल होती है और इसके लिए सावधानीपूर्वक व्यवस्थित नीतिगत हस्तक्षेपों की जरूरत होती है।
उन्होंने कहा, 15 साल पहले महंगाई 10 फीसदी के करीब थी, लेकिन उस समय भारत की रियल टाइम ग्रोथ 9 फीसदी थी। इसका मतलब है कि महंगाई के साथ औसतन प्रति व्यक्ति आय भी 7-8 फीसदी बढ़ रही थी।
उन्होंने कहा था कि वर्तमान हालात ज्यादा खराब हैं क्योंकि लगभग 6 फीसदी महंगाई के साथ बीते दो साल में प्रति व्यक्ति आय गिरी है।
सर्वे में भाग लेने वाले ज्यादातर फंड मैनेजर्स वैश्विक स्तर पर महंगाई जनित मंदी को इक्विटी इनवेस्टर्स के लिए बड़ी चिंता के रूप में देखते हैं। सिर्फ दो फंड मैनेजर्स की राय अलग थी और वह नहीं मानते कि महंगाई जनित मंदी का भारत पर कुछ खास असर होगा।
आगे रुपये की कैसी रहेगी चाल
मौजूदा वैश्विक परिदृश्य को देखते हुए यूएस फेड ने ब्याज दरें बढ़ानी शुरू कर दी हैं और वह इस साल ऐसा कई बार कर सकता है। हालांकि, फंड मैनेजर्स का मानना है कि वैश्विक घटनाक्रमों को देखते हुए फेड ब्याज दरों में ज्यादा बढ़ोतरी नहीं कर पाएगा।
एनर्जी की कीमतें बढ़ने से भारत का फ्यूल बिल बढ़ गया है, क्योंकि वह अपनी तेल की 80 फीसदी जरूरतों के लिए आयात पर निर्भर है। इससे रुपया कमजोर हो रहा है, हालांकि भारतीय करेंसी के कमजोर होने पर फंड मैनेजर्स की राय बंटी हुई है। तीन ने कहा कि रुपया मौजूदा स्तरों पर स्थिर रहेगा, दो ने कहा कि इसमें 2-5 फीसदी की गिरावट आ सकती है। वहीं दो फंड मैनेजर्स रुपये की चाल को लेकर स्पष्ट नहीं हैं।
10-15 फीसदी रिटर्न के लिए जारी रखें निवेश
सभी मैनेजर्स ने सुझाव दिया कि इनवेस्टर्स को 2022 में 10-15 फीसदी के अनुमानित रिटर्न के साथ व्यवस्थित तरीके से निवेश जारी रखना चाहिए और निफ्टी में गिरावट की स्थिति में उसे निवेश के मौके के रूप में लेना चाहिए।
अगले एक साल के लिए बैंक, आईटी और ऑटो सबसे ज्यादा सुझाए गए सेक्टर हैं, जबकि उन्होंने इनवेस्टर्स को एफएमसीजी, कंज्यूमर स्टेपल्स और कंज्यूमर डिस्क्रेशनरी सेक्टरों से बचने की सलाह दी है।