ग्लोबल इकोनॉमी में मंदी को लेकर जो चिंताएं बनी है उनसे भारतीय बाजारों में रिटेल निवेशकों की तरफ से आ रहे पैसे के प्रवाह पर कोई रोक लगने की उम्मीद नहीं है। इंडियन हाउस होल्ड के लिए इक्विटी मार्केट में निवेश काफी बड़े मौके नजर आ रहे हैं। ये बाते मॉर्गन स्टेनली के रिधम देसाई ने कहीं है।
उन्होंने इस बातचीत में आगे कहा कि पिछले 8 सालों के दौरान भारतीय बाजारों में रिटेल निवेशकों की संख्या में हुई रिकॉर्ड बढ़ोतरी के बावजूद अभी भी इक्विटी बाजार में घरेलू रिटेल निवेशकों की संख्या तुलनात्मक रूप से कम है। भारतीय रिटेल निवेशकों के निवेश पैटर्न नजर डालें तो उनके निवेश पोर्टफोलियों में स्टॉक मार्केट की हिस्सेदारी सिर्फ 5-6 फीसदी है।
उन्होंने आगे कहा कि भारतीय घरेलू बचत का देश के जीडीपी में करीब 20 फीसदी हिस्सेदारी है। ये सालाना आधार पर करीब 700 अरब डॉलर होता है। अगर इसमें से 10 फीसदी इक्विटी मार्केट में जाए तो इक्विटी मार्केट में रिटेल निवेशकों का निवेश 70 अरब डॉलर होना चाहिए। ऐसे में इसमें व्यापक ग्रोथ की संभावना है।
Bloomberg Television के साथ हुई बातचीत में रिधम देसाई ने कहा कि वर्तमान में भारत में घरेलू बचत का करीब आधा हिस्सा प्रॉपर्टी में निवेशित होता है जबकि करीब 15 फीसदी हिस्सा सोने में निवेश होता है। ऐसे में देश में इक्विटी मार्केट के प्रति जागरुकता बढ़ने के साथ ही इक्विटी बाजार में रिटेल निवेशकों के लिए व्यापक संभावना बचती हैं।
रिधम देसाई का कहना है कि भारतीय बाजारों से विदेशी पैसे की भारी निकासी के बावजूद वे भारतीय इक्विटी बाजार को लेकर बुलिश हैं। गौरतलब है कि पिछले 10 महीने के दौरान भारतीय बाजारों से 33 अरब डॉलर के विदेशी फंड की निकासी देखने को मिली है। रिधम देसाई का मानना है कि जब तक बाजार में कोई बहुत बड़ी गिरावट नहीं आती वर्तमान मैक्रो इकोनॉमी चुनौतियों के बावजूद रिटेल निवेशक भारतीय बाजार से रुख मोड़ते नहीं नजर आएंगे। अगर किसी परिस्थिति में घरेलू निवेशक बाजार से छिटकते भी हैं तो यह एक अस्थाई स्थिति होगी।
मॉर्गन स्टैनली का मानना है कि अगले साल निफ्टी डबल डिजिट रिटर्न दे सकता है। जिसके चलते बाजार में रिटेल निवेशकों का उत्साह बना रहेगा । रिधम देसाई ने यह भी कहा कि अगले 12 महीने में S&P 500 इंडेक्स में 10 फीसदी की गिरावट देखने को मिल सकती है। उन्होंने इस बातचीत में आगे कहा कि जून तिमाही में भारतीय कंपनियों को तमाम चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। कच्चे माल की कीमतों में बढ़ोतरी के चलते उनके मार्जिन पर दबाव आया है। इसके बावजूद भारतीय कंपनियां वॉल्यूम ग्रोथ पर निगेटिव असर से बचने के लिए बढ़ती उत्पादन लागत को पूरी तरह से उपभोक्ताओं पर थोपने के लालच से बची हैं। उन्होंने आगे कहा कि अब कमोडिटी की कीमतों में गिरावट के साथ ही कंपनियों के मार्जिन पर दबाव कम हुआ है। इससे कंपनियों को सपोर्ट मिलेगा।
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