किसी नए IPO या इक्विटी का असेसमेंट की परफॉर्मेंस इंडिकेटर्स (KPI)के जरिए किया जाता है। मार्केट रेगुलेटर सेबी का प्लान इसी Key Performance Indicators के फ्रेमवर्क में बदलाव करने का है। करीब तीन साल पहले सेबी ने ये पैरामीटर लॉन्च किया था। और अब रेगुलेटर का मकसद इसका दायरा बढ़ाने का है। इसका प्लान पुराने ट्रांजैक्शन का डिस्क्लोजर पीरियड बढ़ाकर तीन साल करने का है। ये नियम लागू होने का मतलब है कि अब कंपनियों को पिछले तीन साल के लेनदेन की जानकारी देनी होगी।
कंपनियों के डिस्क्लोजर को फाइन ट्यून करने के इस प्रोसेस में फाइनेंशियल और ऑपरेशनल पैरामीटर को भी ध्यान में रखना है। यहां ऑपरेशनल पैरामीटर में बिजनेस के लंबे समय तक चलते रहने की क्षमता और इसके फाइनेंशियल परफॉर्मेंस को ग्रोथ देने वाले फैक्टर्स शामिल हैं।
कुछ सूत्रों से मनीकंट्रोल को पता चला है कि सेबी चाहता है कि हर KPI को कंपनी की ऑडिट कमिटी और सर्टिफाइंग प्रोफेशनल मंजूर करें।
अभी तक जो रेगुलेटरी फ्रेमवर्क है उसमें कंपनियों को पिछले 18 महीनों के ट्रांजैक्शन के बारे में जानकारी देनी होती है। इसके साथ ही इंडिपेंडेंट डायरेक्टर्स की अंडरटेकिंग लेनी होती है कि IPO का प्राइसबैंड वाजिब है।
इस मामले की जानकारी रखने वाले एक शख्स ने बताया, "New Age कंपनियों और स्टार्टअप्स के लिए तीन साल पहले KPI डिस्क्लोजर लागू किया गया था। अब सेबी के पास इतना डेटा जमा हो गया है कि उसे एनालाइज करके रेगुलेटरी फ्रेमवर्क को मजबूत बनाया जा सके। "