जापान के बॉन्ड मार्केट में पिछले कई सालों का सबसे बड़ा उथल-पुथल दिख रहा है। लंबी अवधि के बॉन्ड्स की यील्ड कई दशकों की उंचाई पर पहुंच गई है। कीमतों में सबसे ज्यादा गिरावट 20-40 साल के बॉन्ड सेगमेंट में दिखी है। आम तौर पर इस सेगमेंट में कीमतों में ज्यादा उतार-चढ़ाव देखने को नहीं मिलता है। ज्यादा उतार-चढ़ाव को देखते हुए बैंक ऑफ जापान को हस्तक्षेप करने को मजबूर होना पड़ा है। कीमतों में स्थिरता के लिए बैंक ऑफ जापान को बॉन्ड की खरीदारी करनी पड़ी है।
बैंक ऑफ जापान पर टिकी निगाहें
Bank of Japan ने अपनी काफी ज्यादा नरम मॉनेटरी पॉलिसी को बदलने की शुरुआत की थी। लेकिन, इससे बॉन्ड्स में बिकवाली शुरू हो गई। अब नजरें बैंक ऑफ जापान पर टिक गई हैं। सवाल है कि हालात से निपटने के लिए जापान का केंद्रीय बैंक क्या कदम उठाएगा? क्या जापान की वित्तीय स्थिति मार्केट्स के लिए खतरा बन रहा है? इनवेस्टर्स को ज्यादा संख्या में नए बॉन्ड्स इश्यू होने की उम्मीद है। सरकार बजट डेफिसिट को पाटने और राजनीतिक अस्थिरता से बचने के लिए नए बॉन्ड्स इश्यू कर सकती है।
'सेल जापान' ट्रेड पर बढ़ रहा जोर
जापान पर कर्ज का बोझ दुनिया में सबसे हाई लेवल पर पहुंच गया है। ऐसे में मार्केट सबसे लंबी अवधि वाले बॉन्ड्स पर ज्यादा इंटरेस्ट रेट चाहता है। इससे 'सेल जापान' ट्रेड पर जोर बढ़ता दिख रहा है। इनवेस्टर्स जापान के सरकारी बॉन्ड्स को शॉर्ट कर रहे हैं। वे कमजोर येन पर दांव लगा रहे हैं। कुछ चुनिंदा शेयरों में निवेश भी घटा रहे हैं। येन में कमजोरी से इनफ्लेशन खासकर इंपोर्टेड इनफ्लेशन को बढ़ावा मिलेगा। ग्लोबल कैपिटल फ्लो में जापान का काफी बड़ा रोल है।
इस क्राइसिस का असर व्यापक असर पड़ सकता है
जापान के संस्थागत निवेशकों के पास काफी ज्यादा फॉरेन बॉन्ड्स, शेयर और अल्टरनेटिव एसेट्स हैं। जब जापान के सरकारी बॉन्ड्स की यील्ड काफी ज्यादा बढ़ जाती है तो विदेशी निवेशकों के बीच इसके अट्रैक्शन पर असर पड़ता है। लेकिन, जापान के इनवेस्टर्स अपना पैसा वापस जापान ला रहे हैं, क्योंकि जापान के बॉन्ड्स पर उन्हें ज्यादा यील्ड मिल रही है। इसका असर कई तरह से पड़ सकता है। जापान के फंड्स अमेरिकी सरकार के बॉन्ड्स (यूएस ट्रेजरी), यूरोपीय सॉवरेन बॉन्ड्स और इमर्जिंग मार्केट डेट में निवेश घटा सकते हैं। इससे ग्लोबल बॉन्ड्स यील्ड में उछाल दिख सकता है।
ग्लोबल मार्केट में लिक्विडिटी पर पड़ सकता है असर
इससे जापान के इनवेस्टर्स विदेश में अपनी होल्डिंग्स में बदलाव कर सकते हैं। इससे डॉलर, यूरो और कई एशियाई करेंसी में उतार-चढ़ाव बढ़ सकता है। जापान के एसेट्स में इनवेस्टर्स की दिलचस्पी बढ़ने से ग्लोबल रिस्क मार्केट में लिक्विडिटी पर असर पड़ सकता है। खासकर यह ऐसे वक्त में होता दिख रहा है, जब ग्लोबल ग्रोथ और जियोपॉलिटिक्स को लेकर इनवेस्टर्स पहले से सावधानी बरत रहे हैं।
इंडिया पर भी पड़ सकता है जापान के घटनाक्रम का असर
जापान के घटनाक्रम के असर से इंडिया भी अछूता नहीं रहेगा। हालांकि, भारत में सरकारी बॉन्ड्स में विदेशी निवेश बहुत ज्यादा नहीं है, लेकिन दुनिया के बड़े बॉन्ड सूचकांकों में इंडियन बॉन्ड्स के शामिल होने से स्थिति बदलती दिख रही है। जापान के सरकारी बॉन्ड्स की यील्ड में उछाल से ग्लोबल रिस्क-फ्री बेंचमार्क ऊपर जा सकता है। इससे इंडिया में भी बॉन्ड यील्ड में उछाल को लेकर उम्मीद बढ़ जाएगी। ग्लोबल बॉन्ड्स यील्ड बढ़ने से लंबी अवधि के कर्ज की कॉस्ट बढ़ जाती है। इसका असर शेयरों पर भी पड़ता है।