वैलेंटिस एडवाइजर्स के फाउंडर और MD ज्योतिवर्धन जयपुरिया ने सीएनबीसी-आवाज़ के साथ बाजार की आगे की दशा और दिशा पर बात करते हुए कहा कि पिछले कुछ दिनों से बाजार ये मान के चल रहा था कि अमेरिका के महंगाई आंकड़ों में कमी आने से ब्याज दरों में बढ़त का दौर थमेगा। इसी उम्मीद में बाजार में तेजी आई थी। उन्होंने आगे कहा कि अमेरिका में अगले 2-3 महीने में महंगाई और घटेगी लेकिन ये फेड के 2 फीसदी के लक्ष्य के पास नहीं आएगा। ऐसे में अमेरिका में ब्याज दरों में बढ़त जारी रहेगी। हां, ये हो सकता है कि ये बढ़त 0.75 फीसदी न होकर 0.50 फीसदी हो। कल अमेरिका फेड के अधिकारियों की ओर से भी कुछ ऐसा ही इशारा मिला था। अमेरिका में ब्याज दरों में बढ़त पर विराम लगने में अभी काफी समय लगेगा। इसीलिए बाजार भी एक रैली देने के बाद ठहराव को मूड में आ गया है। वैसे पिछले एक साल से भारत का बाजार कंसोलीडेट ही हो रहा है।
अगले 6 महीनों में भी बाजार रेंजबाउंड ही रहेगा
बाजार में इस समय क्या करना चाहिए? इस सवाल का जवाब देते हुए ज्योतिवर्धन जयपुरिया ने कहा कि बाजार इस समय भी महंगा ही नजर आ रहा। अगले 6 महीनों में भी बाजार में रेंजबाउंड कारोबार होता दिखेगा और ये कंसोलीडेशन मोड में ही रहेगा। ग्लोबल इकोनॉमी में तमाम चुनौतियां कायम रहेंगी और इनका थोड़ा बहुत असर भारत पर भी दिखेगा।
घरेलू इकोनॉमी पर आधारित स्टॉक्स पर हो ज्यादा फोकस
कंसोलीडेशन के इस फेज में हमें घरेलू इकोनॉमी पर आधारित स्टॉक्स पर ही ज्यादा फोकस करना चाहिए। क्योंकि इस अवधि में ग्लोबल रिस्क ज्यादा रहेगा। ऐसे में ग्लोबल इकोनॉमी से जुड़े शेयरों में ज्यादा जोखिम होगा।
कॉरपोरेट बैंकों पर रहे नजर
बैंकिंग सेक्टर पर बात करते हुए ज्योतिवर्धन जयपुरिया ने कहा कि "हम काफी महंगे हुए चुके रिटेल बैंकों से इस समय बच रहे हैं। हमारा फोकस कॉरपोरेट बैंकों पर ज्यादा है। अगले एक-दो साल में तमाम छोटे कॉर्पोरेट बैंक भी काफी अच्छा प्रदर्शन करेंगे। कॉरपोरेट बैंकों बैंकों का एसेट क्वॉलिटी बेहतर हो रही है।"
न्यू एज कंपनियों से रहें दूर
न्यू एज कंपनियों पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि वैलेंटिस एडवाइजर्स ने न्यू एज कंपनियों में कोई खरीदारी नहीं की थी। इन कंपनियों का रिस्क-रिवॉर्ड रेशियो पहले से ही काफी खराब था। इनका वैल्यूएशन भी काफी महंगा था। इनमें से अधिकांश कंपनियां घाटे में हैं। इस तरह की कंपनियों को ग्रोथ के लिए हरदम फंडिंग की जरूरत रहती है। ऐसे ब्याज दरों में बढ़त के दौर में इनको सबसे ज्यादा मार पड़ती है। ऐसे में फंडिंग न मिलने से इन कंपनियों के बंद होने तक का खतरा बढ़ जाता है। यही वजह है कि हम इन कंपनियों में निवेश करने से बच रहे हैं।
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