म्यूचुअल फंड्स और विदेशी निवेशक खरीद रहे हैं, फिर स्मॉलकैप और मिडकैप में क्यों आई इतनी बड़ी गिरावट?

स्मॉलकैप और मिडकैप (Smallcap and Midcap) स्टॉक्स में 13 मार्च को आई गिरावट ने निवेशकों को हैरान किया है। इसकी उम्मीद पहले से थी। लेकिन, विदेशी संस्थागत निवेशक और म्यूचुअल फंडों की खरीदारी जारी रहने के बीच इतनी गिरावट की आशंका नहीं थी

अपडेटेड Mar 14, 2024 पर 10:41 AM
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29 फरवरी से अब तक म्यूचुअल फंडों ने 21,000 करोड़ रुपये के स्टॉक्स खरीदे हैं।

इस हफ्ते की शुरुआत से स्मॉलकैप (Smallcaps) और मिडकैप (Midcaps) स्टॉक्स की जबर्दस्त पिटाई हो रही है। कई शेयरों में लोअर सर्किट लगा है, क्योंकि उनमें सिर्फ बिकवाली हो रही है। यह गिरावट तब आ रही है, जब घरेलू म्यूचुअल फंड्स और विदेशी संस्थागत निवेशक मार्केट में शुद्ध रूप से खरीदारी कर रहे हैं। फिर, इस गिरावट की क्या वजह है? यह सवाल कई निवेशकों के मन में है। आइए इसका जवाब जानने की कोशिश करते हैं।

इस बिकवाली की क्या वजह है?

एसोसिएशन ऑफ म्यूचुअल फंड्स इन इंडिया (AMFI) ने 28 फरवरी को अपने मेंबर्स को एक एडवायजरी की थी। इसमें उन्हें स्मॉलकैप और मिडकैप स्कीमों में फ्लो (निवेश) में कमी लाने और अपने पोर्टफोलियो को रिबैलेंस करने को कहा गया था। यह एडवायजरी SEBI के इशारे पर जारी की गई थी। सेबी स्मॉलकैप और मिडकैप स्टॉक्स में बन रहे बुलबुले को लेकर चिंतित है।


क्या म्यूचुअल फंड्स मिडकैप और स्मॉलकैप स्टॉक्स बेच रहे हैं?

यह कहना मुश्किल हैं कि म्यूचुअल फंड्स किस तरह के स्टॉक्स खरीद और बेच रहे हैं। हालांकि, 29 फरवरी से अब तक म्यूचुअल फंडों ने 21,000 करोड़ रुपये के स्टॉक्स खरीदे हैं।

FII के आंकड़ें क्या कहते हैं?

विदेशी संस्थागत निवेशकों ने करीब 20,000 करोड़ रुपये के शेयर खरीदे हैं।

फिर स्मॉलकैप और मिडकैप स्टॉक्स में इतनी ज्यादा गिरावट क्यों आई है?

म्यूचुअल फंडों के अलावा हाई नेटवर्थ इंडिविजुअल्स (HNI) और रिटेल इनवेस्टर्स ने भी शेयर खरीदे हैं। कई एचएनआई ने कर्ज लेकर शेयरों में निवेश किए थे। अचानक, सिस्टम में लिक्विडिटी घट गई है।

यह कैसे हुआ?

वित्त वर्ष के आखिर में कई इनवेस्टर्स अपने बुक ऑफ अकाउंट्स को बैलेंस करने के लिए प्रॉफिट बुकिंग कर रहे हैं और नई खरीदारी कम कर रहे हैं। इस वजह से डिमांड घटी है। दूसरा, RBI ने NBFC के खिलाफ सख्त रुख दिखाया है। एनबीएफसी स्टॉक मार्केट में निवेश के लिए फंड के बड़े स्रोत रहे हैं।

RBI ने क्या किया है?

आरबीआई ने IIFL Finance को अगले आदेश तक गोल्ड लोन पर रोक लगाने को कहा है। केंद्रीय बैंक ने जेएम फाइनेंशियल को शेयरों पर लोन देने और आईपीओ और एनसीडी इश्यू में निवेश के लिए लोन देने पर रोक लगाने को कहा है।

क्या ED की कार्रवाई का भी असर पड़ा है?

हां, ईडी ने दुबई के कथित हवाला ऑपरेटर हरिशंकर टिबरेवाला के सहयोगियों पर महादेव ऑनलाइन बुक अवैध सट्टेबाजी मामले में छापे मारे हैं। टिबरेवाला पर सट्टेबाजी से हुई कमाई को इंडिया में कुछ कंपनियों के शेयरों में निवेश करने के आरोप हैं।

इसका सेंटिमेंट पर क्यों खराब असर पड़ा?

टिबरेवाला से जुड़ी कंपनियों ने इक्विटी वारंट्स के जरिए कई कंपनियों के प्रिफरेंशियल एलॉटमेंट में निवेश किया था। उनके अकाउंट फ्रीज हो जाने के बाद वे 18 महीनों के बाद बाकी 75 फीसदी अमाउंट का पेमेंट नहीं कर सकेंगे।

सिस्टम में लिक्विडी में कमी की क्या वजह है?

वित्त वर्ष का अंत नजदीक होने के चलते लिक्विडिटी कम है। इसका असर एचएनआई और मार्केट ऑपरेटर्स पर पड़ रहा है, जो लोन पर बहुत ज्यादा निर्भर थे। मनीकंट्रोल को पता चला है कि एनबीएफसी उन शेयरों की लिस्ट पर विचार कर रहे हैं, जिन पर वे लोन देना चाहेंगे। इसके अलावा जिस ओवरड्राफ्ट फैसिलिटी का एचएनआई इस्तेमाल कर रहे थे, उसमें भी कमी की जा रही है।

एनबीएफसी ऐसा क्यों कर रही हैं?

इसकी वजह यह है कि कई एनबीएफसी अपनी बुक्स को साफसुथरा रखना चाहते हैं। उनका मानना है कि आरबीआई की जांच से पहले ऐसा करना समझदारी है। मार्केट में चर्चा है कि कई एनबीएफसी शेयरों पर लोन देने में बहुत उदारता दिखा रही थीं, क्योंकि पिछले दो साल से बाजार में तेजी जारी थी।

एनबीएफसी के कदमों का स्टॉक प्राइसेज पर क्या असर पड़ेगा?

एनबीएफसी के ओवरड्राफ्ट फैसिलिटी घटाने और शेयरों पर लोन देने से इनकार करने की वजह से एचएनआई और मार्केट ऑपरेटर्स को मार्केट में अपनी पॉजिशन लिक्विडेट (बेचना) करनी पड़ेगी। इसका असर स्टॉक्स की कीमतों पर पड़ेगा। शेयरों की कीमतें गिरने पर दूसरे इनवेस्टर्स जिन्होंने उधार के पैसे से निवेश किए हैं, उन्हें कर्ज देने वाली कंपनियों से मार्जिन कॉल आएगी। इससे वे स्टॉक्स बेचने को मजबूर होंगे, जिससे शेयरों में गिरावट का एक कुचक्र बन जाएगा। इससे मार्केट में घबराहट बढ़ेगी।

आगे क्या होगा?

म्यूचु्अल फंड्स के SIP के जरिए होने वाले निवेश में अचानक कमी आने की संभावना नहीं है। उधर, वैल्यूएशंस अट्रैक्टिव हो जाने से ऐसे कई निवेशक खरीदारी कर सकते हैं, जो अब तक किसी वजह से मार्केट की तेजी में पार्टिसिपेट नहीं कर पाए थे।

जिन कंपनियों का संबंध उन लोगों से है, जो जांच के घेरे में हैं, उनमें लिक्विडिटी बढ़ने के बावजूद रिकवरी आने में समय लगेगा। जिन कंपनियों की स्थिति मजबूत है, उनमें जल्द रिकवरी आएगी।

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MoneyControl News

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First Published: Mar 14, 2024 9:50 AM

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