Mutual Funds: निवेशकों के बीच म्यूचुअल फंड का क्रेज लगातार बढ़ रहा है। इस समय उतार-चढ़ाव से भरे बाजार में लो-वोलैटिलिटी वाले म्यूचुअल फंड निवेशकों के लिए एक भरोसेमंद विकल्प के रूप में उभरे हैं। ये फंड अक्सर बाजार में दबाव के दौरान बेहतर प्रदर्शन करते हैं, लेकिन बाजार में तेज उछाल के दौरान मध्यम रिटर्न दे सकते हैं। ICICI प्रूडेंशियल AMC में इनवेस्टमेंट स्ट्रेटेजी के प्रिंसिपल चिंतन हरिया ने यहां बताया है कि ये फंड कैसे काम करते हैं और बैलेंस्ड इनवेस्टमेंट स्ट्रेटेजी में उनकी क्या भूमिका है।
वोलेटाइल मार्केट में मजबूत प्रदर्शन
हरिया ने कहा, "लो-वोलैटिलिटी वाले फंड ने कई मार्केट कंडीशन में लगातार लचीलापन दिखाया है।" आंकड़ों पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि FY23 में निफ्टी 50 TRI में 0.6% की गिरावट आई। वहीं, निफ्टी 100 लो वोलैटिलिटी 30 TRI ने 3.8% की बढ़त हासिल की।
उन्होंने बताया कि ये फंड रिस्क और रिटर्न को प्रभावी ढंग से बैलेंस करते हैं, जिससे निवेशकों को बाजार में गिरावट के दौरान स्थिरता मिलती है। उन्होंने कहा, "फरवरी 2018 से दिसंबर 2019 जैसे कंसंट्रेटेड रैलियों की अवधि में भी लो-वोलैटिलिटी इंडेक्स का 4.9% रिटर्न निफ्टी 50 TRI के 6.8% के करीब था, जो बाजार की रिकवरी में भाग लेने की उनकी क्षमता को दिखाता है।"
क्या निवेशकों को मार्केट रिबाउंड के दौरान बाहर निकल जाना चाहिए?
हरिया के अनुसार, जब बाजार में रिकवरी होती है तो लो-वोलैटिलिटी वाले फंड से बाहर निकलना हमेशा अच्छी रणनीति नहीं होती। उन्होंने कहा, "ये फंड लगातार रिस्क-एडजस्टेड रिटर्न प्रदान करते हैं और इनमें कम गिरावट होती हैं, जिससे वे लॉन्ग टर्म इनवेस्टर्स के लिए वैल्यूएबल बन जाते हैं।" रिबाउंड के दौरान रिटर्न बढ़ाने की चाह रखने वालों के लिए हरिया ने अन्य स्मार्ट बीटा रणनीतियों की खोज करने का सुझाव दिया। उन्होंने कहा, "मोमेंटम फंड बाजार के अपट्रेंड का लाभ उठा सकते हैं, क्वालिटी फंड वित्तीय रूप से मजबूत कंपनियों पर फोकस करते हैं, और वैल्यू फंड रिबाउंड क्षमता वाले अंडरवैल्यूड स्टॉक्स को टारगेट करते हैं। स्मार्ट बीटा स्ट्रेटेजी में डायवर्सिफाइड एप्रोच बेहतर है।"
रिबाउंड के दौरान फंड स्विच करने से अतिरिक्त टैक्स लायबिलिटी और ट्रांजेक्शन कॉस्ट हो सकती है। हरिया ने लो-वोलैटिलिटी वाले फंड के लॉन्ग टर्म बेनिफिट्स पर जोर दिया। उन्होंने कहा, "इन फंड को मार्केट सायकल में स्थिर रिटर्न प्रदान करने के लिए डिजाइन किया गया है। उदाहरण के लिए 10 वर्षों में निफ्टी 100 लो वोलैटिलिटी 30 TRI ने 15.65% का CAGR दिया, जो निफ्टी 100 टीआरआई (13.99%) और निफ्टी 50 TRI (13.45%) से बेहतर प्रदर्शन है।"
लो-वोलैटिलिटी वाले फंडों में एलोकेशन निवेशक की रिस्क उठाने की क्षमता और वित्तीय लक्ष्यों पर निर्भर करता है। हरिया ने सुझाव दिया, "कंजर्वेटिव इनवेस्टर्स इक्विटी पोर्टफोलियो का 30% से 50% लो-वोलैटिलिटी वाले फंडों में आवंटित कर सकते हैं, जो उन्हें जरूरी स्टेबिलिटी प्रदान कर सकता है।" वहीं, अग्रेसिव इनवेस्टर्स के लिए उन्होंने ग्रोथ पोटेंशियल को बनाए रखते हुए स्टेबिलिटी के लिए करीब 10% से 20% के छोटे एलोकेशन की सिफारिश की। उन्होंने कहा, "लो-वोलैटिलिटी वाले फंड डायवर्सिफाइड पोर्टफोलियो की नींव के रूप में कार्य कर सकते हैं, जो मोमेंटम, वैल्यू या क्वालिटी वाले फंड जैसी रणनीतियों का पूरक हो सकते हैं।"
लो-वोलैटिलिटी वाले फंड उतार-चढ़ाव वाले बाजारों के बीच स्थिरता और स्थिर रिटर्न चाहने वाले निवेशकों के लिए एक मजबूत विकल्प बने हुए हैं। हालांकि तेज उछाल के दौरान उनकी अपसाइड क्षमता कम हो सकती है, लेकिन उनका लचीलापन और लॉन्ग टर्म परफॉर्मेंस उन्हें एक बेहतर विकल्प बनाता है।
डिस्क्लेमर: यहां मुहैया जानकारी सिर्फ सूचना हेतु दी जा रही है। यहां बताना जरूरी है कि मार्केट में निवेश बाजार जोखिमों के अधीन है। निवेशक के तौर पर पैसा लगाने से पहले हमेशा एक्सपर्ट से सलाह लें। मनीकंट्रोल की तरफ से किसी को भी पैसा लगाने की यहां कभी भी सलाह नहीं दी जाती है।