NSE और BSE 1 अप्रैल से एक-दूसरे के लिए अल्टरनेटिव ट्रेडिंग वेन्यू के रूप में कार्य करेंगे। मार्केट रेगुलेटर सेबी (SEBI) ने आज 28 नवंबर को यह सर्कुलर जारी किया है। इस पहल का मकसद तकनीकी दिक्कत आने पर शेयर बाजार में ट्रेडिंग जारी रखना है। सेबी ने अपने सर्कुलर में कहा कि 1 अप्रैल 2025 से BSE और BSE एक दूसरे के लिए अल्टरनेटिव ट्रेडिंग वेन्यू के रूप में काम करेंगे। इसका मतलब है कि BSE में तकनीकी दिक्कत आने पर NSE पर ट्रेडिंग शिफ्ट होगी और इसी तरह NSE में दिक्कत पर BSE पर ट्रेडिंग शिफ्ट की जाएगी।
SEBI ने सर्कुलर में क्या कहा?
सेबी ने सर्कुलर में कहा कि एक्सचेंजों के साथ चर्चा के बाद यह निर्णय लिया गया है कि BSE, NSE के लिए यह नियम Vice-A-Versa होगी। जिसका मतलब है कि दोनों एक्सचेंज एक-दूसरे के लिए जरूरत पड़ने पर अल्टरनेटिव ट्रेडिंग वेन्यू के रूप में कार्य करेंगे। सेबी ने कहा कि दोनों एक्सचेंज एक ज्वाइंट स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसिजर (SOP) तैयार करेंगे। SOP को सर्कुलर की तारीख से 60 दिनों के भीतर सेबी को प्रस्तुत करना होगा।
सेबी ने कहा कि यह नियम कैश, डेरिवेटिव, करेंसी डेरिवेटिव और इंटरेस्ट रेट डेरिवेटिव के लिए 1 अप्रैल 2025 से लागू होगी। गुरुवार को जारी सर्कुलर में कहा गया, "चूंकि ये सेगमेंट इंटर-ऑपरेबल हैं, इसलिए अन्य ट्रेडिंग वैन्यू में ऑफसेटिंग पोजीशन लेने से एंड क्लाइंट्स के लिए ऐसी ओपन पोजीशन समाप्त हो जाएगी और मार्जिन जारी हो जाएगा। इसलिए, प्रोडक्ट्स की ऐसी कैटेगरी के लिए अलग से कोई ट्रीटमेंट की जरूरत नहीं है।"
अगर एक्सचेंज के पास अन्य एक्सचेंज पर हाईली को-रिलेटेड इंडेक्स डेरिवेटिव प्रोडक्ट उपलब्ध नहीं है, तो एक्सचेंज ऐसा इंडेक्स बनाने और उसी पर डेरिवेटिव कॉन्ट्रैक्ट शुरू करने पर विचार कर सकता है। यह आउटेज की स्थिति में इंडेक्स डेरिवेटिव प्रोडक्ट्स में पोजीशन को हेज करने का एक अवसर प्रदान करेगा। उदाहरण के लिए, NSE के पास निफ्टी फाइनेंशियल, निफ्टी मिडकैप और निफ्टी नेक्स्ट 50 के डेरिवेटिव कॉन्ट्रैक्ट हैं, जबकि BSE के पास इसके लिए को-रिलेटेड इंडेक्स डेरिवेटिव नहीं हैं।
आदेश के अनुसार किसी आउटेज की स्थिति में एक्सचेंजों को घटना के 75 मिनट के भीतर सेबी को सूचित करना होगा और बिजनेस कंटिन्यूटी प्लान लागू करनी होगी। अल्टरनेट ट्रेडिंग वेन्यू को ऐसी सूचना के 15 मिनट के भीतर लागू किया जाएगा।