Currency Check :मंगलवार को शुरुआती कारोबार में रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 18 पैसे गिरकर 86.88 पर आ गया। दरअसल, महीने के अंत में डॉलर की माँग और विदेशी पूंजी की निरंतर निकासी ने स्थानीय मुद्रा पर दबाव डाला। विदेशी मुद्रा व्यापारियों ने कहा कि घरेलू मुद्रा में नकारात्मक रुख रहा क्योंकि आयातकों की डॉलर की माँग जारी रहने से अमेरिकी मुद्रा रुपये के मुकाबले अच्छी स्थिति में रही।
इसके अलावा घरेलू शेयर बाजारों में सुस्त रुख और विदेशी पूंजी की निरंतर निकासी ने निवेशकों की धारणा को और कमजोर कर दिया। अंतरबैंक विदेशी मुद्रा बाजार में रुपया 86.76 पर खुला और फिर अमेरिकी मुद्रा के मुकाबले 86.88 के शुरुआती निचले स्तर को छू गया, जो पिछले बंद भाव से 18 पैसे की गिरावट दर्शाता है।
सोमवार को रुपया डॉलर के मुकाबले 86.70 पर बंद हुआ था।
इस बीच 6 मुद्राओं के मुकाबले डॉलर की मजबूती को दर्शाने वाला डॉलर इंडेक्स 0.01 फीसदी की मामूली वृद्धि के साथ 98.64 पर पहुँच गया। बता दें कि कल डॉलर इंडेक्स में तेजी लौटी। 1% चढ़कर डॉलर इंडेक्स 99 के करीब पहुंचा। EU के साथ डील से डॉलर में तेजी आई। 2025 में डॉलर इंडेक्स के लिए जुलाई का महीना अब तक सबसे अच्छा महीना रहा है। यूरो 2 महीनों के निचले स्तरों पर पहुंचा।
वैश्विक तेल मानक ब्रेंट क्रूड वायदा कारोबार में 0.04 प्रतिशत बढ़कर 70.07 डॉलर प्रति बैरल हो गया, क्योंकि विकासशील व्यापार समझौतों ने टैरिफ संबंधी चिंताओं को कम किया और भविष्य में ऊर्जा की माँग को बढ़ावा दिया।
फिनरेक्स ट्रेजरी एडवाइजर्स एलएलपी के ट्रेजरी प्रमुख और कार्यकारी निदेशक अनिल कुमार भंसाली ने कहा कि रुपया कमज़ोर रुख के साथ खुला और इस हफ़्ते एक महीने के निचले स्तर 86.90 पर आ सकता है। उन्होंने कहा, "ऐसा लगता है कि आरबीआई बीच-बीच में रुपये की रक्षा कर रहा है, लेकिन उसने धीमी और स्थिर गति से गिरावट को अनुमति दी है। शेयर बाज़ार भी रुपये के लिए सहायक नहीं रहे हैं।"
मिराए एसेट शेयरखान में शोध विश्लेषक अनुज चौधरी ने कहा कि अमेरिकी डॉलर सूचकांक में उछाल और कच्चे तेल की कीमतों में उछाल के कारण भारतीय रुपया लगभग 20 पैसे गिर गया। अमेरिका-यूरोपीय संघ व्यापार समझौते को लेकर आशावाद के चलते अमेरिकी डॉलर में तेजी आई। हालाँकि, पिछले तीन सत्रों की भारी गिरावट के बाद घरेलू शेयर बाजारों में आई तेजी ने गिरावट को कम किया।
भारत और अमेरिका के बीच लंबित व्यापार समझौते का रुपये पर दबाव बना रह सकता है। कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें और विदेशी पूंजी निकासी भी रुपये पर दबाव डाल सकती है। विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) ने अब तक लगभग 37,000 करोड़ रुपये के शेयर बेचे हैं, जो फरवरी 2025 के बाद से सबसे बड़ी बिकवाली है। महीने के अंत में तेल विपणन कंपनियों और आयातकों की डॉलर मांग रुपये पर और दबाव डाल सकती है। इस सप्ताह अमेरिकी फेडरल रिजर्व और बैंक ऑफ जापान की मौद्रिक नीति के फैसले से पहले निवेशक सतर्क रह सकते हैं। डॉलर-रुपये की हाजिर कीमत 86.60 रुपये से 87.15 रुपये के बीच रहने की उम्मीद है।