RBI ने बुधवार (6 जुलाई) को गिरते रुपया को सहारा देने के लिए कई कदम उठाए हैं। इसमें विदेशी मुद्रा भंडार के स्रोतों में डायवर्सिफिकेशन के उपाय शामिल हैं। केंद्रीय बैंक ने वैश्विक बाजार की स्थितियों को देखते हुए ऐसा किया है।
RBI ने बुधवार (6 जुलाई) को गिरते रुपया को सहारा देने के लिए कई कदम उठाए हैं। इसमें विदेशी मुद्रा भंडार के स्रोतों में डायवर्सिफिकेशन के उपाय शामिल हैं। केंद्रीय बैंक ने वैश्विक बाजार की स्थितियों को देखते हुए ऐसा किया है।
उसने कहा है कि रिसेशन के रिस्क के चलते ग्लोबल मार्केट की तस्वीर साफ नहीं है। फाइनेंशियल मार्केट्स में रिस्क लेने से लोग बच रहे हैं। रिस्की एसेट्स में बिकवाली हो रही है, जिसका असर रुपया सहित दूसरी जगहों पर भी पड़ रहा है।
RBI ने कहा है कि सेफ्टी को प्राथमिकता दी जा रही है। इसके चलते अमेरिकी डॉलर की मांग बढ़ी है। इसका असर उभरते बाजारों पर पड़ा है। ऐसे बाजार में एक तरफ शेयर बाजार में बिकवाली हो रही है तो दूसरी तरफ करेंसी की वैल्यू घट रही है।
केंद्रीय बैंक ने बैंकों के लिए कैश रिजर्व रेशियो और स्टैचुटरी लिक्विडिटी रेशियो बनाए रखने के लिए नेट डिमांड और टाइम लाइबलिटिजी से इंक्रीमेंटल फॉरेन करेंसी नॉन-रेजिडेंट या FCNR (B) को बाहर कर दिया है। FCNR अकाउंट ऐसे अकाउंट को कहते हैं जिसका इस्तेमाल फॉरेन करेंसी में पैसा रखने के लिए किया जाता है।
अभी FCNR(B) में छह विदेशी करेंसी में पैसा रखा जा सकता है। इनमें US Dollar, Pound Sterling, Japanese Yen, Euro, Australian Dollar और Canadian Dollar शामिल हैं।
RBI की यह छूट बैंकों के लिए 4 नवंबर तक उपलब्ध रहेगी। हालांकि, केंद्रीय बैंक ने स्पष्ट किया है कि Non-Resident (Ordinary) (NRO) अकाउंट से NRE अकाउंट में ट्रांसफर इस छूट के दायरे में नहीं आएगा।
RBI ने बैंकों को अस्थायी रूप से इंटरेस्ट रेट्स पर करेंट रेगुलेशन के रेफरेंस के बगैर फ्रेश FCNR(B) और NRE डिपॉजिट जुटाने की इजाजत दे दी है। यह छह जुलाई से लागू हो गया है। यह छूट 31 अक्टूबर तक जारी रहेगी।
केंद्रीय बैंक ने ये कदम ऐसे वक्त उठाए हैं जब विदेशी मुद्रा बाजार में बहुत उतार-चढ़ाव है। डॉलर के मुकाबले रुपया गिरकर अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है। करीब रोजाना इसमें गिरावट आ रही है।
वैश्विक स्तर पर रिस्क लेने की क्षमता घटी है। इसका सीधा असर उभरते बाजारों के एसेट पर पड़ा है। सुरक्षित निवेश में दिलचस्पी बढ़ रही है। विदेशी फंड्स इंडियन मार्केट्स से पैसे निकाल रहे हैं। इधर, इंडिया का ट्रेड डेफिसिट बढ़ा है।
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