Credit Cards

संशय में झूलते शेयर बाजार के लिए क्या हो निवेशकों की रणनीति?

यूक्रेन हमले के दिन सेंसेक्स और निफ्टी 5-5% गिरे, लेकिन अगले 2 दिनों में फिर उनमें अच्छी तेजी देखने को मिली; तो क्या खतरा टल चुका है? इस सवाल का सीधा जवाब तलाशने से बेहतर है कि बाजार के सामने मौजूद बुनियादी कारणों पर नजर डाला जाए और पिछले हफ्ते बने टेक्निकल पैटर्न के साथ जोड़ कर इसे समझा जाए

अपडेटेड Mar 02, 2022 पर 7:54 AM
Story continues below Advertisement
रूस- यूक्रेन संकट का दुनिया के बाजारों पर असर देखने को मिल रहा है

भुवन भास्कर

जिस सुबह रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन पर हमले की घोषणा की, उस दिन भारतीय शेयर बाजारों में दिन भर कोहराम मचा रहा। शेयर बाजार के दोनों संवेदी सूचकांक सेंसेक्स और निफ्टी 5-5% गिरे, जो पिछले दो साल में इन सूचकांकों की सबसे बड़ी गिरावट थी। तकनीकी चार्ट पर देखा जाए तो यह गिरावट निफ्टी के बिकवाली में सरकने का संकेत थी क्योंकि 22 फरवरी को निफ्टी 114 अंकों की गिरावट पर बंद होने के बावजूद 200 दिनों के मूविंग एवरेज पर सपोर्ट लेकर खुलने के बाद वहां से सपोर्ट लेकर ऊपर बढ़ा था अपने निचले स्तर से, जो कि उस दिन उसके खुलने का भी स्तर था, लगभग 250 अंक ऊपर बंद हुआ था।

अगले दिन 23 फरवरी को बाजार ऊपर खुला लेकिन बंद होते-होते 28 अंक नीचे आ चुका था। इसके बावजूद यह 200 DMA से काफी ऊपर था। लेकिन 24 फरवरी को, जिस दिन यूक्रेन पर हमले की घोषणा हुई, निफ्टी लगभग 500 प्वाइंट नीचे खुला और दिन भर नीचे ही जाते हुए अंत में 800 प्वाइंट से ज्यादा गिर कर 16248 पर बंद हुआ। यदि 200 DMA के रेफरेंस में बात करें, तो यह उससे लगभग 650 अंक नीचे था।


टेक्निकल लिहाज से यह बाजार में आने वाले समय के लिए भारी कमजोरी का संकेत था। लेकिन यह संकेत अगले ही कारोबारी सत्र में ध्वस्त हो गया जब 25 फरवरी को निफ्टी 250 अंकों बढ़ कर खुला और कारोबार का अंत होते-होते 410 अंक बढ़कर बंद हुआ। यह तेजी उसके अगले दिन यानि 28 फरवरी को भी जारी रही। उस दिन हालांकि निफ्टी करीब 170 अंक नीचे खुला लेकिन पूरे सत्र में खरीदार बिकवालों पर हावी रहे और आखिर में बाजार बंद होते-होते 135 अंकों की बढ़त आ चुकी थी। यानी सिर्फ दो सत्रों में निफ्टी अपने निचले स्तर 16203 से लगभग 600 अंक बढ़ चुका है।

तो क्या खतरा टल चुका है?

निवेशकों के सामने सबसे बड़ा सवाल यही है। इस सवाल का सीधा जवाब तलाशने से बेहतर है कि बाजार के सामने मौजूद बुनियादी कारणों पर नजर डाला जाए और पिछले हफ्ते बने टेक्निकल पैटर्न के साथ जोड़ कर इसे समझा जाए। पिछले हफ्ते गुरुवार की भारी गिरावट के बाद आई शुक्रवार और सोमवार की तेजी के बावजूद शेयर बाजार के संवेदी सूचकांक अब भी 200 DMA से काफी नीचे है जो 16913 है। बाजार में सुधार के लिए यह बहुत जरूरी है कि निफ्टी 200 DMA के ऊपर बंद हो। लेकिन मार्केट फंडामेंटल्स देख कर ऐसा लगता नहीं कि बाजार फिलहाल सभी चिंताओं को पीछे छोड़ चुके हैं। इनमें छोटी और मध्यम, दोनों अवधि की चिंताएं हैं।

चारा घोटाले ने कई IAS अफसरों की जिंदगी बर्बाद कर दी लेकिन सबक किसी ने नहीं सीखा

छोटी अवधि में यूक्रेन में चल रहा रूसी हमला सबसे बड़ी चिंता है और हालांकि बाजार में हमले के पहले दिन दहशत का जो माहौल दिखा, वह अब गायब सा हो गया है, लेकिन हमला अब भी जारी है। अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी देश नए-नए आर्थिक और सामाजिक प्रतिबंध रूस पर लगा रहे हैं, लेकिन ये हमले और प्रतिबंध कहां जा कर रुकेंगे, कहना अभी जल्दबाजी होगी। इतना तय है कि रूस का हमला किसी निर्णायक परिणाम से पहले नहीं रुकेगा और पश्चिमी देशों पर प्रतिबंधों को और कड़ा करने का दबाव बढ़ता रहेगा। लेकिन इसका दूसरा पहलू यह भी है कि पश्चिमी देशों के लिए रूसी हीटिंग ऑयल का कोई विकल्प नहीं है, इसलिए कई विशेषज्ञों का मानना है कि तमाम जबानी खर्च के बावजूद पश्चिमी प्रतिबंध बहुत तीख नहीं होंगे।

ऐसे में हमले और प्रतिबंधों से जुड़ी हर छोटी-बड़ी खबर शेयर बाजार में हलचल पैदा करती रहेगी। यदि प्रतिबंध सचमुच वैश्विक अर्थतंत्र को प्रभावित करने वाले हुए, तो शेयर बाजार में बिकवाली बढ़ेगी, अन्यथा बाजार वर्तमान स्तरों पर ही स्थिर हो सकते हैं।

क्रूड पर बढ़ रहा है प्रेशर

कच्चे तेल पर पहले ही दबाव है और ब्रेंट क्रूड एक बार फिर 100 डॉलर प्रति बैरल को पार कर गया है। लेकिन कच्चे तेल में आने वाली बढ़ोतरी को सिर्फ भारतीय अर्थव्यवस्था और सरकारी खजाने पर बढ़ने वाले बोझ के लिहाज से देखना ठीक नहीं होगा। देश के साथ इसका बहुत बड़ा असर अमेरिका में महंगाई दर पर पड़ेगा। अमेरिका पहले ही बढ़ती महंगाई से हलकान है और वहां महंगाई दर 40 वर्षों के बाद वापस 7% पार कर चुकी है।

नतीजतन अमेरिकी फेड ने लिक्विडिटी कम करने के लिए बॉन्ड खरीद की अपनी योजना पर ब्रेक लगाने का फैसला कर लिया है। नवंबर तक फेड हर महीने 120 अरब डॉलर के बॉन्ड खरीद रहा था, जिसे उसने हर महीने 15 अरब डॉलर की दर से कम करने का फैसला किया। यानी जुलाई तक बॉन्ड खरीद पूरी तरह बंद हो जानी थी। उसके बाद यह संभावना थी कि ब्याज दरें धीरे-धीरे बढ़नी शुरू होंगी।

लेकिन जब नवंबर 2021 में अमेरिका में शहरी उपभोक्ताओं के लिए खुदरा महंगाई दर 6.8% पर पहुंची, तो अमेरिकी फेडरल बैंक के हाथ-पांव फूल गये। इससे पहले ठीक 40 साल पूर्व जून 1982 में अमेरिका में खुदरा महंगाई दर इस स्तर पर (7.1%) पहुंची थी। फेड ने अपनी पुरानी योजना में संशोधन किया और बॉन्ड खरीद में कटौती को दोगुना कर हर महीने 30 अरब डॉलर कर दिया।

यानी अब मार्च 2022 तक फेडरल रिजर्व की बॉन्ड खरीद पूरी तरह बंद हो जाएगी। फेड ने यह भी साफ कर दिया है कि 2022 के दौरान वह 3-4 बार ब्याज दरें बढ़ा सकता है और इसकी शुरुआत मार्च से हो जाएगी। हालांकि कई लोगों का मानना है कि यह कटौती 6 बार तक हो सकती है। ऐसे में यदि कच्चे तेल के कारण अमेरिकी फेड और भी दूसरे तरीकों से लिक्विडिटी कम करने पर काम शुरू करता है, तो भारतीय शेयर बाजारों में उसका असर भीषण बिकवाली के रूप में सामने आ सकता है।

नैस्डेक ने बनाया डेथ क्रॉस फॉर्मेशन

अमेरिकी बाजारों में भी टेक्निकल्स पूरी तरह से बियरिश हो चुके हैं। 18 फरवरी को नैस्डेक ने अप्रैल 2020 के बाद पहली बार ‘डेथ क्रॉस’ फॉर्मेशन बनाया, जो कि टेक्निकल संकेत के लिहाज से कई बार आने वाले दिनों में भारी बिकवाली का संकेत होता है। डेथ क्रॉस वह स्थिति होती है जब किसी चार्ट का 50-DMA उसके 200-DMA से नीचे चला जाता है। निफ्टी में भी 6 जनवरी से 50-DMA चार्ट के 100-DMA से नीचे चल रहा है, लेकिन 200-DMA से अभी यह काफी ऊपर है। नैस्डेक में डेथ फॉर्मेशन जून 2000 और जनवरी 2008 में भी बना था, जिसके बाद वहां भयावह बिकवाली हुई थी।

हालांकि इस फॉर्मेशन का भी एक दूसर पहलू है। पोटोमैक फंड मैनेजमेंट के एक अध्ययन के मुताबिक 1971 के बाद से 31 बार यह फॉर्मेशन बना है, लेकिन 77% मामलों में छह महीने बाद सूचकांक ने नया उच्चतम स्तर छुआ है। अप्रैल 2020 भी एक ऐसा ही उदाहरण है, जब यह फॉर्मेशन गिरावट के बाद देखने को मिला था।

निष्कर्ष यह है कि शेयर बाजार पूरी तरह अनिश्चितता की जकड़ में हैं। ऐसे में निवेशकों या कारोबारियों के लिए दो ही तरह की रणनीति है। या तो 3-5 साल का लक्ष्य लेकर सिर्फ उच्च गुणवत्ता वाले शेयरों में निवेश करें। या फिर कड़े स्टॉपलॉस के साथ बहुत छोटी अवधि के लिए अच्छे शेयरों में गिरावट के समय रकम लगाएं और 5-7% मुनाफा मिल जाए, तो मुनाफावसूली कर लें। ऐसे बाजार में यही रणनीति सबसे कारगर प्रतीत होती है।

(लेखक कृषि और आर्थिक मामलों के जानकार हैं)

हिंदी में शेयर बाजार स्टॉक मार्केट न्यूज़,  बिजनेस न्यूज़,  पर्सनल फाइनेंस और अन्य देश से जुड़ी खबरें सबसे पहले मनीकंट्रोल हिंदी पर पढ़ें. डेली मार्केट अपडेट के लिए Moneycontrol App  डाउनलोड करें।