सेबी ने न्यू एज कंपनियों के की परफॉर्मेंस इंडिकेटर्स (केपीआई) से जुड़े डिसक्लोजर पर करीबी नजर रखनी शुरू कर दी है। मार्केट रेगुलेटर खासकर उन स्टार्टअप्स और डिजिटल कंपनियों के मामले में सख्ती बरत रहा है, जिन्होंने आईपीओ लॉन्च करने का प्लान बनाया है। इस मामले से जुड़े सूत्रों ने बताया कि सेबी ने कुछ कंपनियों के केपीआई में बदलाव पर रिपोर्ट मांगी है। सेबी जानना चाहता है कि फंड जुटाने के समय पेश किए गए केपीआई और पब्लिक इश्यू के दौरान पेश किए केपीआई में बदलाव कितना सही है। सेबी का मकसद यह सुनिश्चित करना है कि किसी कंपनी के आईपीओ में बोली लगाने वाले निवेशकों से शेयरों की बहुत ज्यादा कीमत वसूल नहीं की जाए।
KPI का मतलब ऐसे डेटा से है, जिनकी मदद से कंपनी के प्रदर्शन के बारे में पता चलता है। इनमें नेट प्रॉफिट (Net Profit), रेवेन्यू (Revenue) और दूसरे तरह के रेशियो शामिल हैं। कंपनी के केपीआई को ट्रैक करने के लिए एनालिटिक्स सॉफ्टवेयर और रिपोर्टिंग टूल्स का इस्तेमाल होता है। केपीआई को की सक्सेस इंडिकेटर्स भी कहा जाता है। अलग-अलग कंपनी और अलग-अलग इंडस्ट्री के हिसाब से केपीआई अलग-अलग हो सकते हैं।
केपीआई पर सेबी क्यों रख रहा करीबी नजर
मामले से जुड़े एक व्यक्ति ने बताया कि सेबी यह देखना चाहता है कि आईपीओ के लिए कंपनी की वैल्यूएशन और पहले पीई/वीसी से फंड जुटाने के लिए उसकी वैल्यूएश के बीच कितना संबंध है। इसीलिए उसने केपीआई पर निगरानी बढ़ा दी है। SEBI ने सितंबर 2022 में KPI का कॉन्सेप्ट पेश किया था। इसमें कंपनियों को उस प्राइस की जानकारी देने सहित कई जानकारियां देने को कहा गया था, जिस पर उसने पहले फंड जुटाए हैं।
सेबी ने केपीआई डिसक्लोजर को अनिवार्य बनाया था
आईपीओ पेश करने वाली कंपनियों को 18 महीने पहले तक के सभी प्राइमरी और सेकेंडरी ट्रांजेक्शन की जानकारी देना जरूरी है। आईपीओ फाइलिंग प्रोसेस से जुड़े एक दूसरे व्यक्ति ने बताया कि सेबी ने पहले कंपनियों के लिए केपीआई डिसक्लोजर को अनिवार्य बनाया। उब उसने इस दिशा में कदम बढ़ाते हुए यह कहा है कि कंपनी जिस केपीआई के बारे में किसी एक निवेशक या निवेशकों के समूह को जानकारी देती है, उसे उस केपीआई के बारे में दूसरों को भी बताना होगा।
अगर वैल्यूएशन बढ़ी है तो केपीआई में भी बदलाव होने चाहिए
उन्होंने बताया कि दरअसल सेबी की नजरें केपीई में होने वाले बदलाव पर है। इससे वैल्यूएशन में की गई वृद्धि सही है या गलत है, यह पता चलता है। इस बारे में सेबी को भेजे ईमेल का जवाब नहीं मिला। इंडसलॉ के पार्टनर मंसूर नाजकी का मानना है कि केपीआई पर करीबी नजर का मकसद न्यू एज और नॉन-ट्रेडिशनल कंपनियों को लेकर सख्ती है। इससे सेबी को यह समझने में मदद मिलेगी की कंपनी की वैल्यूएशन किस आधार पर तय की गई है।
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ज्यादा वैल्यूएशन पर आईपीओ पेश करने से स्टॉक के लुढकने का डर
उन्होंने बताया कि न्यू एज की कई ऐसी कंपनियां हैं, जिनकी कोई लिस्टेड प्रतिद्वंद्वी कंपनी नहीं हैं। ऐसे में यह तय करने के लिए कि उसकी वैल्यूएशन सही है या नहीं, केपीआई सेबी के लिए अहम हो जाता है। सेबी यह देखता है कि अगर वैल्यूएशन बढ़ाई गई है तो क्या उसके हिसाब से केपीआई में भी ग्रोथ दिख रही है। 2021 में Zomato, Paytm और Nykaa जैसी कंपनियों की लिस्टिंग के बाद सेबी ने केपीआई को लेकर सख्ती बढ़ाई है। लिस्टिंग के बाद इन कंपनियों के शेयरों में तेज गिरावट देखने को मिली थी।