सेबी बड़ी कंपनियों को छोटे साइज के आईपीओ पेश करने की इजाजत दे सकता है। ऐसे आईपीओ में प्रमोटर्स को कंपनी में कम हिस्सेदारी बेचनी होगी। रेगुलेटर अभी इस प्रस्ताव पर विचार कर रहा है। इससे बड़ी और अमीर कंपनियों के लिए खुद को स्टॉक एक्सचेंजों पर लिस्ट कराना आसान हो जाएगा। उन पर मिनिमम पब्लिक शेयरहोल्डिंग के नियमों के पालन का बोझ नहीं होगा। रेगुलेटर इस प्रस्ताव के तहत कंपनियों को 2.5 फीसदी प्लस 2,500 करोड़ रुपये मूल्य की हिस्सेदारी बेचने की इजाजत दे सकता है।
ईज ऑफ डूइंग बिजनेस को मिलेगा बढ़ावा
एक सूत्र ने कहा, "इस बदलाव से प्रमोटर्स और मौजूदा शेयरहोल्डर्स को काफी सुविधा हो जाएगी। खासकर उन कंपनियों को इससे काफी फायदा होगा जिन्हें आईपीओ के जरिए बड़ा फंड जुटाने की जरूरत नहीं होती है।" SEBI के इस प्लान का मकसद ईज ऑफ डूइंग बिजनेस को बढ़ाना है। इस प्लान से बड़ी कंपनियों के साथ सरकारी कंपनियों (PSU) को भी फायदा मिलेगा। इस मसले की जानकारी रखने वाले एक दूसरे सूत्र ने कहा कि इस प्लान पर अभी आंतरिक रूप से विचार हुआ है। इस बारे में लोगों की राय जानने के लिए जल्द कंसल्टेशन पेपर जारी किया जा सकता है।
मार्केट कैपिटलाइजेशन के मौजूदा स्लैब में भी बदलाव
सूत्र ने बताया कि सेबी मार्केट कैपिटलाइजेशन के मौजूदा स्लैब में भी बदलाव पर विचार किया है, जिसका इस्तेमाल इश्यू का मिनिमम साइज तय करने के लिए होता है। अभी के नियम के मुताबिक, आईपीओ के बाद 4000 करोड़ से 1,00,000 करोड़ रुपये के मार्केट कैपिटलाइजेशन वाली कंपनियों को इश्यू के खास साइज का ध्यान रखना पड़ता है। सेबी मार्केट कैपिटलाइजेशन की इस रेंज को घटाकर 50,000 करोड़ रुपये कर सकता है।
अभी क्या है आईपीओ को लेकर सेबी का नियम
अभी सेबी के नियम के मुताबिक, आईपीओ के बाद 1,00,000 करोड़ रुये वैल्यूएशन वाली कंपनियों को आईपीओ में कम से कम 5 फीसदी हिस्सेदारी के बराबर शेयर इश्यू करना जरूरी होता है। इसके अलावा उन्हें 2 साल के अंदर पब्लिक शेयरहोल्डिंग बढ़ाकर 10 फीसदी और 5 साल के अंदर 25 फीसदी करना जरूरी होता है। इंडस्ट्री से जुड़े कुछ लोगों का कहना है कि इस नियम की वजह से ऐसी कंपनियों को भी मिनिमम शेयरहोल्डिंग के नियमों की वजह से अपनी हिस्सेदारी घटानी पड़ती है, जिन्हें पूंजी की जरूरत नहीं है। इस वजह से कई कंपनियां आईपीओ पेश करने में दिलचस्पी नहीं दिखाती हैं।