SEBI Report on SME IPO: आईपीओ मार्केट में पिछले कुछ समय से काफी चहल-पहल दिख रही है। हालांकि इसके चलते अनियमितताएं भी बढ़ी हैं। SME की लिस्टिंग को लेकर इसके चलते नियम भी बना दिया कि अब एसएमई के शेयर अधिकतम 90 फीसदी प्रीमियम पर ही लिस्ट हो सकते हैं। इसके अलावा बाजार नियामक सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (SEBI) ने एसएमईज के आईपीओ को लेकर 6 घरेलू इनवेस्टमेंट बैंकों की जांच की। सेबी की इस जांच के बारे में न्यूज एजेंसी रॉयटर्स को सूत्रों ने बताया। जानकारी के मुताबिक सेबी ने इस साल की शुरुआत में जांच शुरू की थी और इसमें फोकस इस बात पर था कि बैंकों ने कितनी फीस ली।
कितनी फीस वसूल रहे इनवेस्टमेंट बैंक?
सूत्रों ने जो जानकारी दी, उसके मुताबिक सेबी ने अपनी जांच में पाया कि कम से कम आधा दर्जन छोटे निवेश बैंकों ने कंपनियों से IPO के जरिए जुटाए गए पैसों का 15% फीस के रूप में ले लिया। यह देश में 1-3 फीसदी के स्टैंडर्ड फीस से बहुत ही अधिक है। हालांकि यह नहीं पता चल पाया कि इस मामले में किन बैंकों की जांच हुई है। देश में 60 से अधिक इनवेस्टमेंट बैंक हैं जो एसएमई आईपीओ पर सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं। सूत्र ने यह भी बताया कि सेबी ने ऑडिटर्स और एक्सचेंजों को चौकन्ना रहने को कहा है ताकि उन कंपनियों की लिस्टिंग को रोका जा सके, जिनके आईपीओ ड्राफ्ट में जानकारी उन्हें सही नहीं लग रही है। सेबी 12-15 बिंदुओं पर काम कर रही है।
SEBI ने जांच क्यों शुरू की?
सेबी ने छोटे बिजनेसेज में निवेश के खतरों को लेकर पहले ही निवेशकों को चेतावनी दे चुकी यह और इसकी योजना इनके आईपीओ को लेकर सख्त नियम बनाने की है। इन्हीं कोशिशों के तहत सेबी ने जांच शुरू की। बता दें कि देश में 5 करोड़ रुपये से 250 करोड़ रुपये तक के टर्नओवर वाली कंपनियों की बीएसई या एनएसई के एसएमई प्लेटफॉर्म पर अलग-अलग होती है और इनके लिए कम खुलासे करने पड़ते हैं। एसएमई के आईपीओ ड्राफ्ट में दी गई डिटेल्स की जांच एक्सचेंज करते हैं, और एक्सचेंजों की ही मंजूरी लेनी होती है, वहीं मेनबोर्ड के आईपीओ के लिए सेबी की मंजूरी लेनी होती है।
ऐसे में निवेशकों को रिस्क से बचाने के लिए सेबी ने जांच शुरू की और पाया कि अधिक फीस इसलिए ली जा रही है ताकि आईपीओ अधिक से अधिक सब्सक्राइब हो सके। सूत्र ने बताया कि सेबी बैंकों और कुछ निवेशकों के बीच गठजोड़ तोड़ने की कोशिश में है जो नियमों का उल्लंघन करते हुए हाई नेटवर्थ इंडिविजुअल्स और रिटेल इनवेस्टर्स के रूप में बड़ी-बड़ी बोलियां लगाते हैं जो आवंटन के समय रद्द कर दी जाती है लेकिन हाई सब्सक्रिप्सन से बाकी निवेशक आईपीओ की तरफ आकर्षित हो जाते हैं।