शेयर बायबैक से जुड़े टैक्स के नियम 1 अक्टूबर से बदल जाएंगे। अगले महीने से बायपैक पर टैक्स के नए नियम लागू होंगे, जिसका एलान यूनियन बजट में हुआ था। 23 जुलाई को पेश यूनियन बजट में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने शेयर बायबैक पर टैक्स के नियमों में बदलाव का ऐलान किया था। उन्होंने कहा था कि ये नियम 1 अक्टूबर, 2024 से लागू होंगे। सवाल है कि नए नियमों का इनवेस्टर्स पर क्या असर पड़ेगा?
शेयर बायबैक का मतलब क्या है?
पहले यह जान लें कि शेयर बायबैक (Share Buyback) क्या है। जब कोई कंपनी निवेशकों से अपने ही शेयर खरीदती है तो उसे शेयर बायबैक कहा जाता है। इसके लिए कंपनी शेयर बायबैक प्रोग्राम का ऐलान करती है। वह बायबैक के लिए शेयर की कीमत तय करती है। आम तौर पर यह मार्केट में चल रहे शेयर के प्राइस से ज्यादा होता है। शेयर बायबैक के लिए कंपनी अपने रिजर्व फंड का इस्तेमाल करती है। कई वजहों से कंपनी शेयर बायबैक करती है।
नियम में क्या बदलाव होगा?
1 अक्टूबर से कंपनी के शेयर बायबैक प्रोग्राम में पार्टिसिपेट करने वाले इनवेस्टर को कैपिटल गेंस पर टैक्स चुकाना होगा। अभी नियम अलग है। इसके मुताबिक, अगर कोई कंपनी इनवेस्टर्स से अपने शेयर खरीदती है तो उसे 20 फीसदी टैक्स चुकाना पड़ता है। इनवेस्टर को कोई टैक्स नहीं चुकाना पड़ता है। इस तरह से बायबैक से होने वाला फायदा इनवेस्टर के लिए टैक्स-फ्री होता है। इसलिए बायबैक में पार्टिसिपेट करने में निवेशक दिलचस्पी दिखात हैं।
इनवेस्टर्स पर किस तरह पड़ेगा असर?
अगल महीने से कंपनी किसी तरह का टैक्स डिडक्ट नहीं करेगी। बायबैक से इनवेस्टर को होने वाला गेंस को डिविडेंड माना जाएगा। इस पर इनकम टैक्स के स्लैब के हिसाब से टैक्स लगेगा। इसका मतलब है कि कम टैक्स स्लैब में आने वाले इनवेस्टर को गेंस पर कम टैक्स चुकाना पड़ेगा, जबकि ज्यादा टैक्स स्लैब में आने वाले इनवेस्टर को गेंस पर ज्यादा टैक्स चुकाना होगा। इस तरह एक ही कंपनी के शेयर बायबैक प्रोग्राम में हिस्सा लेने वाले अलग-अलग इनवेस्टर के लिए टैक्स के रेट्स अलग-अलग हो सकते हैं।
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एक्सपर्ट्स की क्या राय है?
एक्सपर्ट्स का कहना है कि शेयर बायबैक पर टैक्स के नियम सही नहीं हैं, क्योंकि बायबैक के जरिए कंपनी का मकसद अतिरिक्त पैसा निवेशकों को वापस करना होता है। इससे पहले सरकार ने 2013 में शेयर बायबैक पर टैक्स के नियमों में बदलाव किया था। तब शेयर बायबैक पर होने वाले गेंस पर शेयरहोल्डर को टैक्स चुकाना होता था। तब कैपिटल गेंस के कैलकुलेशन के लिए कॉस्ट ऑफ एक्विजिशन के डिडक्शन की इजाजत थी। लेकिन, 2013 में डिविडेंड डिस्ट्रिब्यूशन टैक्स शुरू होने के बाद बायबैक पर टैक्स चुकाने की जिम्मेदारी कंपनी पर आ गई।