तीन राज्यों के चुनावों में भाजपा के क्लीन स्वीप के बाद मार्सेलस इन्वेस्टमेंट मैनेजर्स की स्थापना करने वाले सौरभ मुखर्जी का कहना है कि विदेशी संस्थागत निवेशक भारत की ओर फिर से रुख कर रहे रहे हैं। अगले 12 महीनों में इनकी तरफ से तेजी से निवेश होना शुरू हो जाएगा। मनीकंट्रोल से हुई बातचीत में उन्होंने कहा कि "यह काफी साफ है कि भाजपा की हैट-ट्रिक का मतलब यहा कि लगभग पूरा हिंदी भाषी बेल्ट उनका है। अभी की स्थिति में देखें तो 2024 के आम चुनाव को लेकर बाजार के लिए कोई जोखिम नहीं दिख रहा है। इसका मतलब है कि अगले 12 महीनों में एफआईआई का पैसा देश में आएगा"।
अपनी बात को और साफ करते हुए सौरभ मुखर्जी ने कहा कि ग्लोबल स्तर पर एफआईआई निवेश में भारत का हिस्सा बहुत कम है। विदेशी निवेशकों ने चीन में किए गए 3.5 ट्रिलियन डॉलर की तुलना में भारत में केवल 0.6 ट्रिलियन डॉलर निवेश किए हैं। डॉलर रिटर्न के मामले में चीन को निराशा हाथ लगी है। चीनी बाजार से मिला 10-ईयर सीएजीआर रिटर्न भारत मिले 13-14 फीसदी रिटर्न की तुलना में केवल 3 फीसदी है।
उन्होंने आगे कहा " अगर हम पिछले 12 महीनों के ट्रेंड पर नडर डालें तो पता चलता है कि हमारे बाजारों में एफआईआई की एक पूरी नई पीढ़ी आई है। ये ऐसे लोग हैं जिन्होंने भारत में कभी निवेश नहीं किया है। लेकिन अब ये अपने करियर में पहली बार भारत पर विचार कर रहे हैं। अपना पैसा चीन से भारत में शिफ्ट करने की कोशिश कर रहे हैं। अगर वे अपने चीनी आवंटन का छठा हिस्सा भी भारत में शिफ्ट करते हैं तो इससे भारत में एफआईआई निवेश की मात्रा लगभग दोगुना हो जाएगी"।
उन्होंने आगे कहा कि जब एफआईआई बड़े पैमाने पर वापसी करेंगे, तो वे स्मॉलकैप की तुलना में लार्जकैप में ज्यादा खरीदारी करेंगे। उन्होंने कहा, "नकदी की उपलब्धता की समस्या के कारण वे (एफआईआई) स्मॉलकैप नहीं खरीद सकते, उन्हें लार्जकैप में ही खरीदारी करनी पड़ेगी।" चीन की निराशाजनक तस्वीर भारत के लिए अच्छी बात है। सौरभ मुखर्जी ने बताया कि चीन की बैंकिंग प्रणाली की लगभग 30 फीसदी संपत्ति रियल एस्टेट है, जो संकट में है। चीन में एसएमई शटडाउन रिकॉर्ड स्तर पर चल रहा है। युवा बेरोजगारी बढ़ रही है। औद्योगिक अर्थव्यवस्था या तो मुश्किल से बढ़ रही है या कुछ तिमाहियों में संकुचित हो रही है। ऐसे में चीन की तुलना में भारत विदेशी निवेशकों के लिए ज्यादा आकर्षक हो गया है।
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