शॉर्ट टर्म में मार्केट्स में इन फैक्टर्स का बड़ा असर दिख सकता है, जानिए आपको क्या करना है

ट्रंप ने कई सेक्टर्स पर भी टैरिफ लगाए हैं। इनमें एल्युमीनियम/स्टील, कॉपर, ऑटो, फार्मा (संभावना) शामिल है। इन पर काफी ज्यादा टैरिफ लागू होगा। इसलिए इनफ्लेशन और ग्रोथ को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है। इससे फेड चेयरमैन जेरोम पॉवेल चिंतित हैं

अपडेटेड Jul 31, 2025 पर 1:01 PM
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फॉरेन फंड्स इंडिया में बिकवाली कर रहे हैं। जुलाई में उनकी बिकवाली 17,500 करोड़ रुपये की रही।

अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने 30 जुलाई को अपनी मॉनेटरी पॉलिसी में इंटरेस्ट रेट्स में कोई बदलाव नहीं किया। हालांकि, फेड ने सितंबर में इंटरेस्ट रेट में कमी के संकेत दिए। फेड चेयरमैन जेरोम पॉवले ने कहा कि साल 2025 के पहले छह महीनों में अमेरिकी इकोनॉमी की ग्रोथ 1.2 फीसदी रही। यह पिछले साल की 2.5 ग्रोथ से कम है। ग्रोथ में सुस्ती से पता चलता है कि लोग कम खर्च कर रहे हैं। पॉवेल ने कहा कि हालांकि, दूसरी तिमाही में जीडीपी की ग्रोथ 3 फीसदी रही।

फेडरल रिजर्व के दो गवर्नस ने रेट घटाने पक्ष में वोटिंग की

बीते कुछ महीनों में इनफ्लेशन में ज्यादा बदलाव नहीं दिखा। जून में पीसीई प्राइसेज में 2.7 फीसदी इजाफा हुआ। जहां तक लेबल मार्केट की बात है तो नौकरी के नए मौके बनने की रफ्तार सुस्त पड़ी है। वर्कर्स की सप्लाई में भी स्लोडाउन दिखा। बेरोजगारी दर स्थिर बनी हुई है, जबकि वेज (Wage) की ग्रोथ सुस्त पड़ी है, जिससे डिमांड के लिए रिस्क बढ़ता दिख रहा है। इस बार की मॉनेटरी पॉलिसी में फेड को दो गवर्नर्स क्रिस्टोफर वालर और माइकैल बोमैन की राय बाकी दूसरे गवर्नर्स से अलग रही। 1993 के बाद ऐसा पहली देखा गया है। दोनों गवर्नर्स ने इंटरेस्ट रेट में 25 बेसिस प्वाइंट्स की कमी के प्रस्ताव के पक्ष में वोट दिए।


अभी कई देशों के साथ डील नहीं कर पाया है अमेरिका

इंटरेस्ट रेट्स स्थिर बनाए रखने का पॉजिटिव असर इनफ्लेशन के सर्विसेज साइड पर पड़ा है। लेकिन, गुड्स की कीमतों में इजाफा की वजह से इसका ज्यादा फायदा नहीं मिला। गुड्स की कीमतें बढ़ने की वजह ज्यादा टैरिफ हो सकता है। हाल में अमेरिका ने कई देशों के साथ अच्छी ट्रेड डील की है। लेकिन, अभी कई देश हैं, जिनके गुड्स पर 2 अगस्त से ज्यादा टैरिफ लागू होगा। इनमें चीन, इंडिया, कोरिया, कनाडा और मैक्सिको शामिल हैं।

इनफ्लेशन और ग्रोथ को लेकर अनिश्चितता बरकरार

ट्रंप ने कई सेक्टर्स पर भी टैरिफ लगाए हैं। इनमें एल्युमीनियम/स्टील, कॉपर, ऑटो, फार्मा (संभावना) शामिल है। इन पर काफी ज्यादा टैरिफ लागू होगा। इसलिए इनफ्लेशन और ग्रोथ को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है। यह पॉवेल की चिंता की वजह है। हालांकि, फेड ने कहा है कि इनफ्लेशन पर पड़ने वाला असर कुछ समय के लिए होगा।

टैरिफ को लेकर अप्रैल के मुकाबले घटा है

IMF ने हाल में जीडीपी ग्रोथ के अपने अनुमान में बदलाव किए हैं। उसने कई देशों की जीडीपी ग्रोथ के अनुमान को बढ़ाया है। इनमें चीन, इंडिया, यूरो एशिया और अमेरिका शामिल हैं। इससे यह संकेत मिलता है कि दुनिया में टैरिफ को लेकर जो टेंशन अप्रैल में बढ़ा था, उसमें काफी कमी आई है। इसके अलावा कई देश अपनी वित्तीय स्थिति ठीक करने पर जोर दे रहे हैं।

चाइनीज मार्केट्स का अच्छा प्रदर्शन

इंडिया को भी मॉनेटरी और फिस्कल पर फोकस बढ़ाने, ग्रामीण इलाकों में कंजम्प्शन बढ़ने और अच्छे मानसून का फायदा मिलता दिख रहा है। चाइनीज मार्केट्स का प्रदर्शन अच्छा रहा है। इसे कम वैल्यूएशन और गैर-अमेरिकी इलाकों में एक्सपोर्ट्स बढ़ने के साथ ही अमेरिका के साथ चल रही ट्रेड डील की बातचीत का फायदा मिला है। अर्निंग्स सीजन उम्मीद से बेहतर रहने से S&P500 में अच्छी तेजी दिखी है।

फॉरेन फंड्स कर रहे बिकवाली

इंडिया की बात करें तो फॉरेन फंड्स बिकवाली कर रहे हैं। जुलाई में उनकी बिकवाली 17,500 करोड़ रुपये की रही। इससे पहले के तीन महीनों में उन्होंने 38,000 करोड़ रुपये का निवेश किया था। लेकिन, खास बात यह है कि पिछले कुछ महीनों में ग्लोबल इकोनॉमी को लेकर रिस्क घटा है।

ज्यादा वैल्यूएशन की वजह से मार्केट्स में आ सकती है गिरावट

कुछ मार्केट्स में वैल्यूएशन हाई है। इससे संकेत मिलता है कि उनमें गिरावट आ सकती है। इंडिया के लिए अमेरिका के साथ अच्छी ट्रेड डील का नहीं होना भी एक रिस्क है। ट्रंप ने इंडिया पर 25 फीसदी टैरिफ लगाने का ऐलान किया है। उन्होंने यह भी कहा है कि रूस से तेल और हथियार खरीदने के लिए इंडिया पर पेनाल्टी भी लगेगी। शॉर्ट टर्म में इसका इंडियन मार्केट्स पर काफी असर पड़ सकता है। अमेरिका के साथ ट्रेड डील में देरी का असर न सिर्फ उन सेक्टर्स पर पड़ेगा जो अमेरिका को ज्यादा एक्सपोर्ट करते हैं बल्कि इसका असर कंजम्प्शन की ग्रोथ पर भी पड़ेगा।

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इनवेस्टर्स का क्या करना चाहिए?

25 फीसदी टैरिफ लगने के बाद इंडिया वियतनाम जैसे देशों के मुकाबले नुकसान में आ गया है। हालांकि, एक्सपोर्ट में इंडिया के मुख्य प्रतिद्वंद्वी चीन के मामले में यह बात लागू नहीं होती। हां, यह सही है कि चीन और इंडिया पर लगे टैरिफ के बीच का फर्क उम्मीद से कम रहा है। इंडियन मार्केट्स की वैल्यूएशन इसकी लंबी अवधि की औसत वैल्यूएशन के मुकाबले करीब 10 फीसदी ज्यादा है। ऐसे में लंबी अवधि के इनवेस्टर्स मार्केट में बड़ी गिरावट के मौके का इस्तेमाल खरीदारी के लिए कर सकते हैं।

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