जिमीत मोदी, CEO और फाउंडर, SAMCO Securities
जिमीत मोदी, CEO और फाउंडर, SAMCO Securities
पिछले हफ्ते जब मुंबई में सदी की सबसे भारी बारिश हुई, तो कई निवासियों ने मान लिया कि अगले दिन भी बाढ़ आएगी। जब सालों में एक बार कोई प्लेन क्रैश होता है, तो यात्री महीनों तक उड़ान भरने से बचते हैं। वहीं कुछ ज्यादा सेफ खिड़की वाली सीटों के लिए एक्स्ट्रा पेमेंट करने के लिए भी संघर्ष करते हैं। निवेश में भी यही जाल दिखाई देता है। निवेशक सबसे हालिया घटना को ऐसे लेते हैं, जैसे कि वह नियति हो। फिर चाहे वह घटना कितनी भी दुर्लभ क्यों न हो। इसे रीसेंसी बायस कहते हैं।
रीसेंसी बायस यह मानने की प्रवृत्ति है कि जो कुछ अभी हुआ है वह होता रहेगा। हम लॉन्ग पैटर्न को नजरअंदाज करते हुए लेटेस्ट ईवेंट को ज्यादा महत्व देने लगते हैं। इसमें और बुरा यह है कि अक्सर बार-बार होने वाली घटनाओं के बजाय दुर्लभ, असाधारण घटनाएं ही हमारे फैसले पर हावी होती हैं।
रीसेंसी बायस के रोज के उदाहरण
उदाहरण के तौर पर इस साल की शुरुआत में एयर इंडिया प्लेन क्रैश हुआ, जो कि एक बेहद दुखद घटना थी। 11A सीट पर बैठा केवल एक यात्री ही बच पाया। फिर क्या था अचानक से प्लेन की 11A सीट को सबसे सुरक्षित माना जाने लगा। एयर ट्रैवल के दौरान इसे पाने के लिए मांग में भारी बढ़ोतरी हुई।
एक और उदाहरण लें 19 अगस्त, 2025 का। इस दिन मुंबई और आसपास के जिलों में रिकॉर्ड तोड़ बारिश दर्ज की गई। हालांकि अगले दिन आसमान साफ हो गया, लेकिन कई लोगों ने इस डर से काम छोड़ दिया कि कहीं फिर से बाढ़ न आ जाए।
ये दोनों ही दुर्लभ घटनाएं हैं, अक्सर नहीं होतीं। फिर भी इनसे लोगों के व्यवहार पर सालों की सुरक्षित उड़ानों या हजारों सूखे मानसूनों से कहीं ज्यादा गहरा असर पड़ा।
शेयर बाजार में रोज दिखता है रीसेंसी बायस
अब अगर शेयर बाजार की बात करें तो रीसेंसी बायस रोजाना दिखाई देता है। तेज गिरावट आने पर निवेशकों को डर लगा रहता है कि क्रैश अंतहीन है। इसी तरह मार्केट में तेजी के बाद वे उम्मीद करते हैं कि शेयर हर महीने पैसे डबल कर देंगे। यह पूर्वाग्रह घबराहट और उत्साह, दोनों को बढ़ावा देता है, जिससे निवेशक बाजारों की साइक्लीकल रिएलिटी से अनजान हो जाते हैं।
शेयर बाजार का इतिहास रीसेंसी बायस के उदाहरणों से भरा पड़ा है। जैसे कि 2000 का आईटी बुलबुला, 2008 का वैश्विक वित्तीय संकट (जीएफसी), और 2020 का कोविड-19 संकट। हर एक ने बड़े पैमाने पर पैनिग सेलिंग को जन्म दिया। हर घटना के बाद न केवल रिकवरी हुई, बल्कि मार्केट ने नए पीक भी दर्ज किए गए। जो लोग रीसेंसी बायस के आगे झुक गए, वे घाटे में रहे और रिकवरी में क्रिएट हुई वेल्थ से वंचित रह गए।
वेल्थ को कैसे खाता है रीसेंसी बायस
जब निवेशक शॉर्ट टर्म की अनिश्चितताओं को अपने फैसले लेने देते हैं, तो वेल्थ चुपचाप नष्ट हो जाती है। निवेशकों के जो फैसले इसका कारण बनते हैं, उनमें शामिल हैं- डर के मारे अच्छी क्वालिटी वाले शेयर बेचना, उत्साह के दौरान मोमेंटम के लिए ज्यादा पे करना। शॉर्ट टर्म की अनिश्चितताओं के चलते कुछ ही वक्त में शेयर बेचने पर निवेशक, इनवेस्टेड बने रहने यानि कि पैसा लगाए रखने पर हासिल होने वाली कंपाउंडिंग पावर को मिस कर देते हैं। समस्या अक्सर खराब बिजनेस की नहीं होती, बल्कि खराब व्यवहार की होती है।
वहीं जो निवेशक रीसेंसी बायस के ट्रैप में नहीं फंसते हैं, उन्हें एक अच्छी बढ़त मिलती है। वे जब बाजार में घबराहट छा जाती है, तब खरीदारी करते हैं। अस्थायी अस्थिरता के दौरान निवेश को बरकरार रखते हैं। सुर्खियों पर नहीं, बल्कि बुनियादी बातों पर भरोसा करते हैं।
उदाहरण के लिए, जब इस साल अप्रैल में अमेरिकी टैरिफ की घोषणा हुई, तो निफ्टी ने साल 2025 का अपना निचला स्तर देखा। तब से यह उस स्तर से नीचे नहीं गया है। यह हमें याद दिलाता है कि घबराहट अक्सर अवसर के साथ मेल खाती है।
रीसेंसी बायस पर काबू पाने के तरीके
याद रखें कि बाजार हमेशा आपदा और उत्साह के बीच झूलते रहेंगे लेकिन दोनों ही स्थायी नहीं हैं। वेल्थ क्रिएशन लेटेस्ट हेडलाइन पर रिएक्ट करके नहीं, बल्कि इस बात का विरोध करके होता है कि हाल का अतीत भविष्य की भविष्यवाणी करता है।
रीसेंसी बायस नेचुरल है, लेकिन यह हमें बड़ी तस्वीर को देखने से रोक देता है। बाजार, साइकिल्स में चलते हैं, सीधी रेखाओं में नहीं। एक गिरावट या एक तेजी कभी भी लॉन्ग टर्म को परिभाषित नहीं करती। निवेश में, सबसे बड़ी उपलब्धि अधिक जानकारी तक पहुंच नहीं है, बल्कि तब तर्कसंगत बने रहने की क्षमता है जब दूसरे ऐसा न कर पाएं।
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