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अस्पताल में नहीं चलती एंबुलेंस में जन्में 2,400 बच्चे!

उत्तराखंड के एक गांव में पिछले तीन सालों में करीब 2,400 बच्चों ने चलती एंबुलेंस में जन्म लिया है।

MoneyControl Newsअपडेटेड Jun 23, 2011 पर 5:16 PM
अस्पताल में नहीं चलती एंबुलेंस में जन्में 2,400 बच्चे!

23 जून 2011
आईबीएन-7


उत्तराखंड में बच्चे  अस्पतालों में नहीं बल्कि एंबुलेंस में पैदा हो रहे हैं। स्वास्थ्य सेवाओं  की हालत ये है कि राज्य में पिछले तीन सालों में करीब 2,400 बच्चों ने चलती एंबुलेंस में जन्म लिया है। इस बात पर शर्मिंदा होने के बजाए राज्य सरकार इसे विश्व रिकॉर्ड मानती है।

उत्तराखंड  की राजधानी देहरादून से करीब 25 किलोमीटर दूर पर एक गांव मौजूद है। इस  गांव में दूर-दूर तक अस्पताल तो क्या डिस्पेंसरी तक नहीं है। शहर से दूरी इतनी कि मुसीबत में अगर किसी तरह की मदद मंगाई भी जाए तो भी घंटों लग जाएं।

करीब दस महीने पहले इसी गांव की नइमा पर मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ा। तब नइमा गर्भवती थी। अचानक उसे प्रसव पीड़ा शुरू हुआ और परिवारवालों के हाथ-पांव फूल गए। वजह दूर-दूर तक कोई डिस्पेंसरी तक नहीं थी। ऐसे में नइमा के देवर को फोन नंबर-108 याद आया।

नइमा के देवर ने 108 पर फोन कर एंबुलेंस बुलाया। नइमा को एंबुलेंस में डालकर परिवार के लोग अस्पताल की ओर भागे। नइमा अस्पताल पहुंचती इसके पहले  ही उसने एंबुलेंस में ही बच्चे को जन्म दे दिया। नइमा का बच्चा अब दस महीने का है। नइमा और उसका बच्चा खुशकिस्मत था कि दोनों बच गए। लेकिन चलती एंबुलेंस में पैदा होने की वजह से इस बच्चे की पीठ की नसें दबी रह गईं।  डॉक्टरों के मुताबिक इसका ईलाज बेहद मुश्किल है। डॉक्टरों की माने तो नाभी की नसें ठीक से नहीं काटे जाने की वजह से अब इस बच्चे की जान पर बन आई है।

सिर्फ नइमा ही नहीं उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में रहने वाली करीब-करीब सभी महिलाओं के साथ ऐसी ही मुश्किल है। महमूदा भी उनमें से एक है। महमूदा की इस बच्ची ने डेढ़ साल पहले चलती  एंबुलेंस में जन्म लिया था। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक महमूदा और नइमा की  तरह उत्तराखंड में पिछले तीन सालों में 2,400 बच्चों ने चलती एंबुलेंस में जन्म लिया है।

दरअसल  उतराखंड के 13 जिलों में 16,000 गांव हैं। यहां दूर-दूर तक अस्पतालों का  नामोनिशान नहीं है। पहाड़ी इलाका होने की वजह से अस्पताल पहुंचने में ही  घंटों वक्त लग जाता है। इनमें से नौ जिलों की तो हालत और भी खराब हैं क्योंकि ये सभी 9 जिला पहाड़ी इलाकों में आते हैं। यहां रहने वाले लोगों के लिए सहारा अस्पताल नहीं बल्कि 108 नंबर का ये एंबुलेंस है।

108 नंबर के  कंट्रोल रूम में हर 5 सेकेंड में एक कॉल आती है। हर पांच मिनट में एक  इमरजेंसी कॉल आती है और हर 12 मिनट में आने वाली कॉल प्रसूति यानि गर्भ से संबंधित होती है। और हर 12 घंटे में उतराखंड में एक बच्चा एंबुलेंस में  जन्म लेता है।

देवों की इस भूमि में मांए चलती एंबुलेंस में बच्चों को जन्म देने पर मजबूर हैं। 108 नंबर के संचालकों का दावा है कि उनकी एंबुलेंस सेवा एक चलता फिरता  मिनी अस्पताल है जिसमें चिकित्सा की सारी सुविधाएं मौजूद हैं और ये सेवा उत्तराखंड के करीब-करीब हर गांव में पहुंच चुकी है।

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