Livestock Insurance Coverage: ग्रामीण भारत में करोड़ों लोगों की आजीविका पशुपालन से जुड़ी है, लेकिन पशु बीमा अब भी हाशिये पर है। बीमारियों और जलवायु संकट के इस दौर में यह सुरक्षा कवच बन सकता है। फिर भी इसकी पहुंच बेहद सीमित और जागरूकता बेहद कम है। जानिए इसकी वजह क्या है और किसानों को क्या करना चाहिए।
पशु बीमा को अहमियत क्यों नहीं देते किसान?
ग्रामीण भारत में लाखों परिवारों की आजीविका पशुपालन पर टिकी है, लेकिन पशु बीमा जैसी सुविधा अब भी कम ही उपयोग में आती है। यह बीमा पशु की मृत्यु या बीमारी से होने वाले नुकसान से आर्थिक सुरक्षा दे सकता है। फिर भी, किसानों में इसके प्रति जागरूकता की भारी कमी है। इससे उन्हें मौसम और बीमारी से जुड़ी अचानक की हानियों से जूझना पड़ता है।
कर्ज से जुड़े बीमा उत्पादों का सीमित दायरा
Finhaat के CFO और को-फाउंडर संदीप कटियार का कहना है कि फिलहाल ज्यादातर पशु बीमा योजनाएं सिर्फ लोन से जुड़े प्रोडक्ट के रूप में दी जाती हैं। इनका लाभ उन्हीं पशुपालकों को मिलता है, जो लोन लेते हैं। वहीं, बाकी पशुपालक इससे वंचित रह जाते हैं। इसका मतलब है कि पशु बीमा की सुविधा सभी किसानों को नहीं मिल रहा। बीमा को व्यापक बनाने के लिए इसकी पहुंच को लोन से अलग भी करना होगा।
महिलाओं और सीमांत किसानों की अनदेखी
महिला किसान और छोटे पशुपालक अक्सर बीमा के दायरे में नहीं आ पाते। ये वही लोग हैं, जो जलवायु जोखिमों और आय की अनिश्चितता से सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। लेकिन उनके पास बीमा लेने की जानकारी या साधन नहीं होते। एक्सपर्ट का माना है कि नीति निर्माताओं को इस वर्ग को प्राथमिकता से कवर करना होगा।
रोगों और जलवायु जोखिमों से बढ़ता खतरा
पशुओं के लिए पारंपरिक बीमा योजनाएं केवल मृत्यु कवर करती हैं। वहीं, अब बीमारियां, हीट स्ट्रेस और प्रजनन समस्याएं ज्यादा आम हो गई हैं। जैसे लंपी स्किन डिजीज या तापमान आधारित बीमारियां व्यापक रूप से नुकसान कर रही हैं। फिर भी ये ज्यादातर पॉलिसियों से बाहर हैं। किसानों को इन नए खतरों से बचाने के लिए बीमा का दायरा बढ़ाना होगा।
कुछ राज्यों में बदल रही है सूरत
कुछ राज्यों में अब मौसम आधारित बीमा योजनाएं चलाई जा रही हैं, जो हीटवेव जैसी घटनाओं को कवर करती हैं। यह एक नई शुरुआत है, लेकिन अभी ये प्रयोगात्मक चरण में हैं। आम किसानों तक इनकी पहुंच सीमित है। इन्हें राष्ट्रीय स्तर पर विस्तारित किए बिना व्यापक प्रभाव संभव नहीं होगा।
पशु बीमा पर कितना खर्च करना होता है?
बीमा प्रीमियम पशु की नस्ल, उसका उत्पादन स्तर और क्षेत्र के आधार पर तय होता है। देशी नस्लों के मुकाबले हाई यील्ड यानी ज्यादा दूध या मांस देने वाले पशुओं पर ज्यादा प्रीमियम देना होता है। साथ ही, व्यक्तिगत बीमा की तुलना में लोन से जुड़े बीमा सस्ते होते हैं। इससे उन किसानों को असमान बीमा लागत का सामना करना पड़ता है, जो लोन नहीं लेते।
सब्सिडी से बीमा को सुलभ बनाने की कोशिश
‘नेशनल लाइवस्टॉक मिशन’ जैसी सरकारी योजनाएं अब पशु बीमा पर सब्सिडी उपलब्ध करा रही हैं। यह खासकर अनुसूचित जाति, जनजाति और महिला किसानों को टारगेट करती हैं। इनका मकसद है कि बीमा को हर वर्ग के लिए आर्थिक रूप से सुलभ बनाया जाए। लेकिन फिलहाल इसका कवरेज अब भी सीमित है।
जानकारी की कमी बनी सबसे बड़ी बाधा
बीमा के विकल्प मौजूद हैं, लेकिन उनके बारे में जानकारी न होना सबसे बड़ी रुकावट है। फिनहाट के को-फाउंडर संदीप कटियार के मुताबिक, कई किसान बीमा प्रक्रिया, दावा प्रणाली और लाभ की जानकारी ही नहीं रखते। यही कारण है कि बीमा योजनाएं लागू होने के बावजूद उपयोग नहीं हो पा रहीं। जागरूकता अभियान और जमीनी स्तर की भागीदारी इसमें अहम साबित हो सकती है।
डेटा की भी है एक बड़ी समस्या
सटीक बीमा योजनाएं तभी बन सकती हैं जब उनके पीछे मजबूत डेटा हो। स्थानीय जलवायु, रोग के पैटर्न और नस्ल आधारित जोखिमों का समुचित डेटा अब भी अधूरा है। इसके बिना उत्पादों को क्षेत्रीय जरूरतों के अनुसार अनुकूल बनाना मुश्किल है। डेटा कलेक्शनऔर मॉडलिंग को अब नीति का केंद्र बनाना होगा।
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पशु बीमा का भविष्य कैसा होगा?
भारत को पशु बीमा को ग्रामीण विकास के एक अनिवार्य स्तंभ के रूप में अपनाना होगा। इसके लिए उत्पादों को सरल बनाना, डिजिटल प्लेटफॉर्म्स से जोड़ना और समुदाय आधारित वितरण मॉडल अपनाना जरूरी है। बीमा की पहुंच जितनी व्यापक होगी, ग्रामीण अर्थव्यवस्था उतनी ही सुरक्षित होगी। खासकर जलवायु संकट के इस दौर में इसकी जरूरत और भी बढ़ गई है।