भुवन भास्कर
भुवन भास्कर
चीन की अर्थव्यवस्था पिछले दो दशकों से पूरी दुनिया के लिए एक अद्भुत, आश्चर्यजनक घटना रही है। सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में साल दर साल दोहरे अंक में वृद्धि किसी भी देश के लिए एक स्वप्न सा है, लेकिन चीन ने इसे संभव किया। इस तेज अविश्वसनीय ग्रोथ रेट के भरोसे ही चीन अपने पिछले 40 वर्षों में 80 करोड़ लोगों को 1.90 डॉलर प्रति दिन से नीचे की आय स्तर से ऊपर उठाने में कामयाब रहा (स्रोतः विश्व बैंक, प्रेस रिलीज 1 अप्रैल 2022)।
लेकिन 2022 की शुरुआत से ही चीनी अर्थव्यवस्था के ढेर से कुछ ऐसा धुआं उठना शुरू हुआ है, जिससे यह आशंका गंभीर होती जा रही है कि ढेर के नीचे लगी आग कोई सामान्य चिंगारी नहीं है। जो खबरें आ रही हैं, वो विस्फोटक हैं और दुनिया भर में यह चर्चा शुरू हो गई है कि चीन में दिख रहे आर्थिक संकटों का परिणाम आने वाले दिनों में कितना गहरा हो सकता है।
चीन की अर्थव्यवस्था बर्बाद होने के संकेत
चीन से आने वाली खबरों में मुख्य रूप से चार ऐसी हैं, जो यह संकेत कर रही हैं कि चीन में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। जून लगातार 10वां महीना है, जब चीन में प्रॉपर्टी की कीमतें गिरी हैं। और यह तब है जब चीन की सरकार ने पिछले कुछ महीनों से रियल एस्टेट सेक्टर को संभालने के लिए कई कदम उठाए हैं। लेकिन गिरती प्रॉपर्टी कीमतें बता रही हैं कि सरकारी कदम कुछ खास सफल नहीं हो रहे।
दरअसल चीन के रियल एस्टेट सेक्टर में गड़बड़ी की शुरुआत पिछले साल हुई थी, जब सरकार ने रियल एस्टेट कंपनियों की कर्ज पर निर्भरता कम करने के लिए तीन नियम बनाए गए, जिन्हें ‘थ्री रेड लाइंस’ के नाम से जाना जाता है। चीन की सबसे बड़ी रियल एस्टेट कंपनी एवरग्रैंड इन नियमों के टेस्ट में फेल हो गई। नतीजा यह हुआ कि एवरग्रैंड को और कर्ज जुटाने में मुश्किल होने लगी और उसका विशाल निर्माण साम्राज्य ठहर गया।
क्या अमेरिका जैसे सबप्राइम संकट की शुरुआत है?
एवरग्रैंड का साम्राज्य ठहरने का मतलब समझने के लिए पहले उस साम्राज्य की सीमाओं को समझना होगा। एवरग्रैंड के 1300 से ज्यादा प्रोजेक्ट हैं, जो चीन के 280 शहरों में फैले हुए हैं। कंपनी की कुल संपत्ति 2 ट्रिलियन युआन है, जो चीन की कुल जीडीपी का 2% है। कंपनी की पूरी ग्रोथ स्ट्रैटेजी कर्ज आधारित रही है और नए कर्ज से कारोबार बढ़ाकर होने वाली आमदनी से पुराना कर्ज चुकाना और फिर नया कर्ज लेकर और विस्तार करना – यही कंपनी की रणनीति है।
अब जब उसे नया कर्ज नहीं मिल रहा है, तो यह दरअसल अमेरिका में 2007-08 के सब-प्राइम संकट की सी स्थिति है। एवरग्रैंड के ग्राहकों की संख्या इस समय 15 लाख है, जिनका पैसा फंस गया है। रिपोर्ट्स के मुताबिक करीब 50 शहरों की 100 से ज्यादा परियोजनाओं के ग्राहकों ने भुगतान बंद कर दिया है और अपना पैसा मांग रहे हैं। कंपनी पर 300 अरब डॉलर से ज्यादा की देनदारी है और उसने कई बॉन्ड का भुगतान करने में पहले ही डिफॉल्ट शुरू कर दिया है।
Evergrande से शुरू हुआ संकट
जाहिर है कि एवरग्रैंड (Evergrande) सिर्फ एक कंपनी नहीं है, वह चीन के उस रियल एस्टेट सेक्टर की सबसे बड़ी मछली है। रियल एस्टेट सेक्टर की हिस्सेदारी चीन के जीडीपी में 12% है। इसलिए एवरग्रैंड यदि दिवालिया हुई तो उसका असर पूरे चीन की अर्थव्यवस्था पर होना तय है क्योंकि इससे सीमेंट, स्टील, सैनेटरी वेयर और कई दूसरे उद्योगों से मांग कम हो जाएगी।
फिलहाल स्थिति यह है कि लगातार 12वें महीने में घरों की बिक्री घटी है, जो 1990 के बाद से निजी प्रॉपर्टी मार्केट में यह सबसे लंबी मंदी है। यद्यपि अब तक चीन सरकार ने ऐसा कोई संकेत नहीं दिया है वह एवरग्रैंड को बचाने के लिए हस्तक्षेप करेगी, लेकिन उद्योग जगत को अभी इसकी उम्मीद है। आगे चीन की अर्थव्यवस्था पर इस संकट का कितना गहरा असर होगा, यह चीन सरकार के रुख पर ही निर्भर करेगा।
बिजली की कमी से जूझ रहा है चीन
चीन से आने वाली दूसरी खबर वहां बिजली उत्पादन से जुड़ी है। चीन कोयले की कमी से बुरी तरह जूझ रहा है और इसका नतीजा यह हुआ है कि चीन के औद्योगिक इलाकों में घंटों बिजली जा रही है। बिजली जाने से चीन का मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर बुरी तरह प्रभावित हुआ है। चीन अपनी मैन्युफैक्चरिंग के लिए कच्चा माल दुनिया के कई देशों से लेता है और यदि चीनी उद्योगों ने उत्पादन में कटौती की तो इससे पूरी दुनिया की सप्लाई चेन प्रभावित होगी।
बदहाली की कगार पर हैं बैंक
लेकिन जो सबसे बड़ी और झटका देने वाली खबर चीन से आ रही है, वह है बैंकों के वित्तीय सेहत के बारे में। इस साल अप्रैल में चीन के हेनान प्रांत के कई छोटे बैंक, जिनकी सम्मिलित परिसंपत्ति 6 अरब डॉलर (40 अरब युआन) और लगभग 4 लाख ग्राहक थे, असफल हो गए। चीनी नियामक के नियम के मुताबिक किसी भी बैंक में जमा रकम पर वहां के ग्राहकों को 5 लाख युआन की सॉवरेन गारंटी होती है।
यानी हर ग्राहक को इतनी रकम सरकार से मिलनी चाहिए। लेकिन रकम लौटाने की जगह चीनी अधिकारियों ने इन ग्राहकों को चुप कराने के लिए हर संभव कोशिश की है। जब ये ग्राहक 10 जुलाई को हेनान की राजधानी में प्रदर्शन के लिए इकट्ठे हुए तो सरकार ने सादे कपड़े में सुरक्षाकर्मियों को भेज कर उन पर हमला करवा दिया, जबकि वहां मौजूद पुलिस मूकदर्शक बनी रही।
विशेषज्ञों का मानना है कि हेनान प्रांत में कुव्यवस्था, भ्रष्टाचार, कमजोर नियमन और खराब जोखिम प्रबंधन के जिन कारकों ने इन छोटे बैंकों को दिवालिया करने में भूमिका निभाई, वे सब कारक चीन के ग्रामीण और कस्बाई इलाकों में काम करने वाले छोटे और मझोले आकार के लगभग 4,000 और बैंकों में मौजूद हैं, जिनकी सम्मिलित परिसंपत्ति 14 लाख करोड़ डॉलर है।
यदि ये बैंक दिवालिया होना शुरू हुए तो चीन में एक भयावह आर्थिक अराजकता फैल जाएगी, जिसे रोकना सरकार के बूते से भी बाहर होगा। चीन में 2009 के बाद से कर्ज के आधार पर ग्रोथ की रणनीति पर अमल हो रहा है, जिसका नतीजा यह हुआ है कि आज चीनी बैंकिंग तंत्र 264% के कर्ज-जीडीपी अनुपात पर बैठा है। यहां यह सवाल हो सकता है कि यदि दशकों से चीन ने इस मॉडल पर अपनी अर्थव्यवस्था को चमका रखा है, तो आखिर अब ऐसा संकट क्यों आएगा?
दरअसल कर्ज आधारित किसी भी ग्रोथ में ग्रोथ ही सबसे बड़ी चीज होती है। एवरग्रैंड के उदाहरण में भी यही बात सामने आई है। जब तक ग्रोथ चलती रहती है, तब तक कर्ज का चक्र बना रहता है। लेकिन यदि ग्रोथ डगमगा जाए तो यही चक्र दुष्चक्र बन जाता है। चीन में 2011 से 2020 के बीच औसत 6.8% की वृद्धि दर रही है। लेकिन पिछले दो वर्षों में कोविड ने चीन की अर्थव्यवस्था के मूल स्तंभों को हिला दिया है।
इस साल दूसरी तिमाही में चीन की अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 0.4% पर आ गई है जबकि पहली तिमाही की तुलना में देखें तो यह 2.6% संकुचित हुई है। रियल एस्टेट मार्केट 1990 के बाद सबसे लंबी मंदी में चल रहा है। इन सबका नतीजा यह हुआ है कि चीन की स्थानीय सरकारों की आमदनी में इस साल 6 लाख करोड़ युआन की कमी आने का अनुमान है।
यहां तक कि चीन के बड़े बैंकों के लिए भी आने वाले दिन चुनौतीपूर्ण हो सकते हैं क्योंकि चीन ने अपने महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट के लिए अरबों डॉलर का कर्ज ऐसे एशियाई और अफ्रीकी देशों को दिया है, जो आर्थिक तौर पर कमजोर हैं। मौजूद वैश्विक परिस्थिति में उनके लिए उस कर्ज का ब्याज चुकाना मुश्किल हो सकता है, जैसा कि हमने श्रीलंका के मामले में देखा है। इसलिए हो सकता है कि इन कर्जों का एक बड़ा हिस्सा चीनी बैंकों को को राइट ऑफ करना पड़े।
ये सारी परिस्थितियां यही संकेत कर रही हैं कि चीन की अर्थव्यवस्था में जो कठिनाई दिख रही है, वह दीर्घकालिक और चुनौतीपूर्ण हो सकती हैं। चीन का वैश्विक अर्थव्यवस्था में जो स्थान है, उसमें यदि चीन लड़खड़ाया तो छोटी अवधि में दर्द सबको झेलना होगा। लेकिन लंबी अवधि में यह न सिर्फ आर्थिक तौर पर, बल्कि भू-राजनैतिक तौर पर भी भारत समेत पूरी दुनिया के लिए राहत का कारण बन सकता है।
(लेखक कृषि और राजनीतिक मामलों के जानकार हैं)
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