नेपाल में उठी फिर से राजशाही लाने की मांग! पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह के समर्थन में एयरपोर्ट पर उतरे हजारों समर्थक

एयरपोर्ट के बाहर भीड़ नारे लगा रही थी, "राजा के लिए रॉयल पैलेस खाली करो। वापस आओ राजा, देश बचाओ। हमारे प्यारे राजा जिंदाबाद। हम राजशाही चाहते हैं।" इतनी भीड़ की वजह से यात्रियों को हवाई अड्डे तक पैदल जाने और वापस आने के लिए मजबूर होना पड़ा। सैकड़ों दंगा निरोधक पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को एयर पोर्ट में एंट्री करने से रोक दिया और कोई हिंसा नहीं हुई

अपडेटेड Mar 09, 2025 पर 10:48 PM
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नेपाल में उठी फिर से राजशाही लाने की मांग! पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह के समर्थन में एयरपोर्ट पर उतरे हजारों समर्थक

रविवार को हजारों समर्थकों ने नेपाल के पूर्व राजा का राजधानी काठमांडू में स्वागत किया और मांग की कि उनकी खत्म की गई राजशाही को बहाल किया जाए और हिंदू धर्म को राज्य धर्म के रूप में वापस लाया जाए। पश्चिमी नेपाल के दौरे से लौट रहे ज्ञानेंद्र शाह के करीब 10,000 समर्थकों ने काठमांडू के त्रिभुवन इंटरनेशनल एयर पोर्ट के मेन एंट्री गेट को ब्लॉक कर दिया।

एयरपोर्ट के बाहर भीड़ नारे लगा रही थी, "राजा के लिए रॉयल पैलेस खाली करो। वापस आओ राजा, देश बचाओ। हमारे प्यारे राजा जिंदाबाद। हम राजशाही चाहते हैं।" इतनी भीड़ की वजह से यात्रियों को हवाई अड्डे तक पैदल जाने और वापस आने के लिए मजबूर होना पड़ा।

सैकड़ों दंगा निरोधक पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को एयर पोर्ट में एंट्री करने से रोक दिया और कोई हिंसा नहीं हुई।


2006 में बड़े पैमाने पर सड़कों पर हुए विरोध प्रदर्शनों ने ज्ञानेंद्र को अपना तानाशाही शासन छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया, और दो साल बाद संसद ने राजशाही को खत्म करने के लिए मतदान किया। इसी के चलते ज्ञानेंद्र ने एक आम आदमी की जिंदगी जीने के लिए शाही महल छोड़ दिया था।

लेकिन कई नेपाली इस गणतंत्र से निराश हो चुके हैं, उनका कहना है कि यह राजनीतिक स्थिरता लाने में फेल रहा है। ये लोग गणतंत्र को देश की हमेशा संघर्ष करती अर्थव्यवस्था और भ्रष्टाचार के लिए दोषी ठहराते हैं। 2008 में राजशाही के खत्म होने के बाद से नेपाल में 13 सरकारें बनी हैं।

रैली में भाग लेने वालों ने कहा कि वे देश को और ज्यादा बिगड़ने से रोकने के लिए राजनीतिक व्यवस्था में बदलाव की उम्मीद कर रहे हैं।

ज्ञानेंद्र ने राजशाही की वापसी की इतनी बड़ी अपील पर कोई टिप्पणी नहीं की है। पूर्व राजा के लिए बढ़ते समर्थन के बावजूद, ज्ञानेंद्र के तुरंत सत्ता में लौटने की संभावना कम है।

2002 में वे राजा बने, जब उनके भाई और परिवार के लोगों की महल में हत्या कर दी गई। उन्होंने 2005 तक बिना किसी कार्यकारी या राजनीतिक शक्तियों के संवैधानिक प्रमुख के रूप में शासन किया, उसके बाद उन्होंने पूर्ण शक्ति पर कब्जा कर लिया।

उन्होंने सरकार और संसद को भंग कर दिया, राजनेताओं और पत्रकारों को जेल में डाल दिया, कम्युनिकेशन व्यवस्था काट दी, इमरजेंसी की घोषणा कर दी और देश पर शासन करने के लिए सेना का इस्तेमाल किया।

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First Published: Mar 09, 2025 10:42 PM

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