देश के 12 राज्य वित्तीय वर्ष 2025-26 में महिलाओं के लिए बिना शर्त नकद ट्रांसफर (Unconditional Cash Transfer - UCT) योजनाओं पर कुल 1.68 लाख करोड़ रुपये खर्च करने जा रहे हैं। तीन साल पहले यह संख्या केवल दो राज्यों तक सीमित थी, जो अब तेजी से बढ़कर 12 राज्यों तक पहुंच गई है। इन योजनाओं का मकसद आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों की महिलाओं को हर महीने नकद सहायता देकर उन्हें सशक्त बनाना है। यह जानकारी PRS Legislative Research की रिपोर्ट में दी गई है।
खजाने पर बढ़ता वित्तीय दबाव
रिपोर्ट के अनुसार, इन 12 राज्यों में से छह को इस साल राजस्व घाटे का सामना करना पड़ सकता है। अर्थात, इन राज्यों की आय से ज्यादा खर्च बढ़ रहा है। हालांकि, यदि नकद ट्रांसफर योजनाओं पर किया गया खर्च हटा दिया जाए तो कई राज्यों की आर्थिक स्थिति बेहतर नजर आती है। इससे साफ होता है कि महिलाएं सशक्त हो रही हैं, पर योजनाओं के बढ़ते खर्च ने राज्यों के बजट पर भारी दबाव डाला है।
तमिलनाडु की 'कलैग्नार मगलिर उरीमाई थोगै थित्तम', मध्य प्रदेश की 'लाड़ली बहना योजना', कर्नाटक की 'गृह लक्ष्मी योजना' जैसी प्रमुख योजनाओं के तहत महिलाओं को हर महीने 1,000 से 1,500 रुपये की नकद सहायता दी जा रही है। कई राज्यों ने अपने बजट आवंटन में भी बढ़ोतरी की है, जैसे असम ने 31% और पश्चिम बंगाल ने 15% तक की वृद्धि की है।
राज्यों की रणनीति और RBI की चेतावनी
कुछ राज्यों ने आर्थिक दबाव को देखते हुए योजनाओं में बदलाव भी किए हैं, जैसे महाराष्ट्र ने 'लाडकी बहिन योजना' की राशि घटाई जबकि झारखंड ने 'मइयां सम्मान योजना' का भुगतान बढ़ाया। RBI ने चेतावनी दी है कि महिलाओं, युवाओं और किसानों को दी जा रही नकद सहायता और सब्सिडी में बढ़ोतरी से राज्यों के बजट पर नकारात्मक प्रभाव होगा, जिससे उत्पादन और विकास के लिए संसाधन कम रहेंगे।
ये नकद सहायता योजनाएं महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण में अहम भूमिका निभा रही हैं लेकिन बढ़ते खर्च पर कंट्रोल और वित्तीय स्थिरता पर ध्यान देना जरूरी है ताकि राज्यों की आर्थिक सेहत खराब न हो और महिलाओं को दी जा रही मदद निरंतर बनी रहे।