प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किसानों के लिए 35,440 करोड़ रुपये की दो बड़ी कृषि योजनाओं के शुभारंभ के साथ ही भारत की IT और टेक्नोलॉजी इंडस्ट्री में भी बड़े बदलाव देखे जा रहे हैं। भारतीय IT सेक्टर में इस साल "साइलेंट लेऑफ" यानी चुपचाप नौकरियों की कटौती का खतरा बढ़ गया है, जिसमें लगभग 50,000 नौकरियां इस साल खत्म हो सकती हैं।
टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS) ने जुलाई में मार्च 2026 तक अपने कर्मचारियों में से लगभग 2% यानी करीब 12,000 लोगों को हटाने का एलान किया था। साथ ही Accenture जैसी बड़ी कंपनियों ने भी इसी रणनीति के तहत वैश्विक स्तर पर 23,000 से अधिक नौकरियां कम की हैं। कई कंपनियां सीधे कर्मचारियों को निकालने के बजाय उन्हें इस्तीफा देने को कह रही हैं, इस दौरान तीन महीने की सैलरी जैसे मुआवजे की पेशकश भी हो रही है।
आईटी कंपनियां आठों नवीं ऑटोमेशन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का ज्यादा इस्तेमाल कर रही हैं, जिससे मिड-लेवल मैनेजमेंट और दोहराए जाने वाले कार्यों के लिए मनुष्यों की जरूरत कम हो रही है। विशेषज्ञों के अनुसार, AI के कारण पिरामिड मॉडल में बदलाव आ रहा है और कंपनियां अब अधिक कुशल और विशेषज्ञ टीमों को प्राथमिकता दे रही हैं।
2023 और 2024 के बीच लगभग 25,000 कर्मचारियों की छंटनी हुई, और 2025 में यह संख्या दोगुनी हो सकती है। IT कंपनियों के लिए यह समय चुनौतीपूर्ण है क्योंकि वे वैश्विक मांग में कमी, यूएस देश की नीतिगत बदलाव और बढ़ती लागत के बीच अपने व्यवसाय को AI और डिजिटल टेक्नोलॉजी के अनुकूल ढाल रही हैं।
यह बदलाव समाप्ति की प्रक्रिया नहीं है बल्कि भारतीय तकनीकी उद्योग का AI युग के लिए पुनर्गठन और नई दिशा में विकास का संकेत है, जो लंबी अवधि में उद्योग को अधिक प्रतिस्पर्धी और स्थायी बनाएगा।