Child mutual funds: क्या चाइल्ड म्यूचुअल फंड में करना चाहिए निवेश? एक्सपर्ट से जानिए फायदे और नुकसान
Child mutual funds: बच्चों की पढ़ाई या भविष्य के लिए निवेश सोच रहे हैं? चाइल्ड म्यूचुअल फंड्स सुरक्षित विकल्प लगते हैं, लेकिन इनमें लॉक-इन और पेनल्टी जैसे नियम हैं। जानिए एक्सपर्ट से इनके असली फायदे, नुकसान और निवेश से पहले क्या समझना जरूरी है।
चाइल्ड म्यूचुअल फंड्स में आमतौर पर पांच साल का लॉक-इन पीरियड होता है
Child mutual funds: बच्चों की पढ़ाई या भविष्य जैसे लंबे फाइनेंशियल गोल्स के लिए निवेश करना हर माता-पिता की पहली प्राथमिकता होती है। ऐसे में चाइल्ड म्यूचुअल फंड्स को एक आदर्श निवेश विकल्प के रूप में पेश किया जाता है। ये डिसिप्लिन के साथ सेविंग और लॉन्ग-टर्म ग्रोथ का भरोसा देते हैं।
लेकिन ये फंड्स उतने आसान नहीं हैं जितने दिखते हैं। इनमें लॉक-इन पीरियड और एग्जिट पेनल्टी जैसी शर्तें होती हैं, इसलिए इनमें पैसा लगाने से पहले इन्हें ठीक से समझना जरूरी है। आइए जानते हैं कि चाइल्ड म्यूचुअल फंड्स कैसे काम करते हैं, ये रेगुलर फंड्स से कैसे अलग हैं, और निवेश से पहले किन बातों पर ध्यान देना चाहिए।
चाइल्ड म्यूचुअल फंड्स क्या होता है?
चाइल्ड म्यूचुअल फंड्स में आमतौर पर पांच साल का लॉक-इन पीरियड होता है या तब तक जब तक बच्चा 18 साल का न हो जाए - जो भी पहले हो। इस दौरान अगर पैसा निकाला जाए तो लगभग 4% तक एग्जिट पेनल्टी लगती है।
आनंद राठी वेल्थ के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर चेतन शेनॉय बताते हैं, 'ये लॉक-इन भले ही लिक्विडिटी को सीमित करता है, लेकिन इससे निवेश में अनुशासन आता है। साथ ही, बच्चे की एजुकेशन जैसे बड़े टारगेट्स के लिए फंड्स को बढ़ने का पर्याप्त समय मिलता है।'
हालांकि, इसका नुकसान ये है कि जब बच्चा बालिग हो जाता है, तो रिडेम्प्शन तभी मुमकिन होता है, जब उसकी KYC अपडेट हो और बैंक अकाउंट लिंक किया गया हो। इसलिए बेहतर है कि निवेश को बच्चे की एजुकेशन या अन्य माइलस्टोन-बेस्ड टारगेट्स से जोड़ा जाए।
SEBI के नियमों के मुताबिक, ये 'सॉल्यूशन-ओरिएंटेड चिल्ड्रन फंड्स' कैटेगरी में आते हैं। ऐसे फंड्स इक्विटी, डेट और दूसरी सिक्योरिटीज में निवेश कर सकते हैं। इनमें जोखिम थोड़ा ज्यादा होता है क्योंकि इनका मकसद लंबी अवधि में पूंजी वृद्धि (कैपिटल ग्रोथ) हासिल करना होता है।
चाइल्ड म्यूचुअल फंड्स और रेगुलर फंड्स में फर्क
पॉइंट
चाइल्ड म्यूचुअल फंड्स
रेगुलर म्यूचुअल फंड्स
लॉक-इन पीरियड
5 साल या जब तक बच्चा 18 साल का न हो जाए
कोई तय लॉक-इन नहीं (ELSS छोड़कर)
लिक्विडिटी
सीमित, जल्दी पैसे निकालने पर 4% तक एग्जिट पेनल्टी
कभी भी रिडीम कर सकते हैं
टैक्स बेनिफिट
नहीं मिलता (80C लागू नहीं)
ELSS पर 80C बेनिफिट मिलता है
कंट्रोल
18 साल तक गार्जियन के पास
निवेशक के पास पूरा नियंत्रण
जोखिम स्तर
ज़्यादातर हाई-रिस्क (लॉन्ग-टर्म ग्रोथ के लिए)
निवेशक अपनी रिस्क प्रोफाइल चुन सकता है
उद्देश्य
बच्चों की पढ़ाई या भविष्य के गोल्स
सामान्य निवेश और वेल्थ क्रिएशन
लचीलापन
सीमित
अधिक लचीला
अगर आपका लक्ष्य सिर्फ बच्चे की पढ़ाई या भविष्य के लिए लंबी अवधि की सेविंग है और आप निवेश में अनुशासन चाहते हैं, तो चाइल्ड म्यूचुअल फंड्स एक अच्छा विकल्प हो सकते हैं। ये आपको मजबूरन पैसे बचाने में मदद करते हैं और टाइम के साथ कंपाउंड ग्रोथ देते हैं।
लेकिन अगर आप लचीलापन और पैसे निकालने की आजादी चाहते हैं, तो रेगुलर म्यूचुअल फंड्स ज्यादा फायदेमंद रहेंगे। खासकर, जब आप खुद अपने निवेश अनुशासन को बनाए रख सकते हैं।
चाइल्ड फंड में निवेश कैसे करें
ग्रोथवाइन कैपिटल के को-फाउंडर शुभम गुप्ता के मुताबिक, 'माइनर के नाम पर म्यूचुअल फंड अकाउंट ऑनलाइन खोला जा सकता है। इसके लिए गार्जियन के KYC डॉक्यूमेंट्स और बच्चे का बर्थ सर्टिफिकेट या पासपोर्ट जरूरी होता है।'
गार्जियन ही आवेदन फॉर्म भरता है, स्कीम चुनता है और निवेश की रकम ट्रांसफर करता है। निवेश AMC की वेबसाइट या किसी म्यूचुअल फंड प्लेटफॉर्म से किया जा सकता है। निवेश गार्जियन या बच्चे के बैंक अकाउंट से हो सकता है, लेकिन पैसा निकालने की अनुमति सिर्फ बच्चे के अकाउंट में होती है।
अगर निवेश किसी डिस्ट्रीब्यूटर के जरिए किया जा रहा है, तो ये प्रोसेस NSE MF Invest Portal या AMC वेबसाइट के माध्यम से पूरी होती है।
टैक्स और लॉक-इन का सच
बच्चे के 18 साल का होने से पहले जो इनकम होती है, वो माता-पिता की इनकम में जोड़ दी जाती है और उसी हिसाब से टैक्स लगता है। 18 साल के बाद ये इनकम बच्चे के नाम पर टैक्स होती है, जो आमतौर पर कम टैक्स स्लैब में आती है।
शुभम गुप्ता बताते हैं, 'चाइल्ड म्यूचुअल फंड्स पर धारा 80C के तहत कोई टैक्स छूट नहीं मिलती। यानी इसका लॉक-इन सिर्फ अनुशासन बनाए रखने के लिए है, टैक्स बेनिफिट के लिए नहीं। वहीं ELSS, PPF या 5 साल की FD में ये सुविधा मिलती है।'
चाइल्ड फंड नाम से धोखा न खाएं
ZFunds के को-फाउंडर मनीष कोठारी कहते हैं, 'हर चाइल्ड फंड असली म्यूचुअल फंड नहीं होता। कई बार इंश्योरेंस या ULIP प्रोडक्ट्स को भी ‘चाइल्ड फंड’ नाम से बेचा जाता है, जिनकी फीस ज्यादा और रिस्क प्रोफाइल अलग होता है। इसलिए निवेश करने से पहले जांच लें कि प्रोडक्ट प्योर म्यूचुअल फंड है या इंश्योरेंस-बेस्ड प्लान।'
कुछ फंड्स झूठे वादे करते हैं कि वे पांच साल में गारंटीड रिटर्न देंगे। असल में इनमें 5 साल का लॉक-इन, 4% तक का एग्जिट लोड और गार्जियन बदलने या आंशिक निकासी पर पाबंदियां होती हैं।
चेतन शेनॉय बताते हैं, 'बच्चे के 18 साल के होने के बाद अकाउंट का कंट्रोल उसी के पास चला जाता है और री-KYC जरूरी होती है। कुछ प्लेटफॉर्म इस प्रक्रिया के लिए अतिरिक्त फीस भी लेते हैं। इसलिए निवेश से पहले इन शर्तों को अच्छी तरह समझ लेना जरूरी है।'
क्या चाइल्ड फंड में निवेश करना चाहिए?
फाइनेंशियल एक्सपर्ट के मुताबिक, अगर आप अपने निवेश में अनुशासन लाना चाहते हैं और बच्चे की पढ़ाई जैसे लंबे टारगेट्स के लिए फोर्स्ड सेविंग चाहते हैं, तो चाइल्ड म्यूचुअल फंड एक अच्छा विकल्प हो सकता है।
लेकिन अगर आप लिक्विडिटी और फ्लेक्सिबिलिटी को ज्यादा महत्व देते हैं, तो रेगुलर डायवर्सिफाइड म्यूचुअल फंड्स बेहतर रहेंगे। बशर्ते आप खुद अपने निवेश अनुशासन पर टिके रहें।
Disclaimer:मनीकंट्रोल.कॉम पर दिए गए सलाह या विचार एक्सपर्ट/ब्रोकरेज फर्म के अपने निजी विचार होते हैं। वेबसाइट या मैनेजमेंट इसके लिए उत्तरदायी नहीं है। यूजर्स को मनीकंट्रोल की सलाह है कि कोई भी निवेश निर्णय लेने से पहले हमेशा सर्टिफाइड एक्सपर्ट की सलाह लें।