देश-विदेश में घर की छोटी-मोटी जरूरतों से लेकर उद्योग में रबड़ की खपत (Rubber Usage) बढ़ती जा रही है। भारत रबड़ का चौथा चौथा बड़ा उत्पादक देश है। अगर आप कम लागत में कई गुना ज्यादा मुनाफा कमाने की सोच रहे हैं तो रबड़ की खेती (Rubber Farming) खेती से बंपर कमाई कर सकते हैं। केंद्र और राज्य सरकारें यहां तक कि विश्व बैंक भी रबड़ की खेती के लिए आर्थिक सहायता मुहैया कराती है। केरल सबसे ज्यादा रबड़ उत्पादन करने वाला राज्य है। इसके बाद दूसरे नंबर पर त्रिपुरा का नाम आता है। यहां से दूसरे देशों को रबड़ निर्यात किया जाता है।
इन दिनों भारत के कई राज्यों में भी रबड़ की खेती (Rubber Cultivation) की जाती है। रबड़ बोर्ड के मुताबिक, त्रिपुरा में 89, 264 हेक्टेयर, असम में 58,000 हेक्टेयर क्षेत्र, मेघालय में 17,000 हेक्टेयर, नागालैंड में 15,000 हेक्टेयर, मणिपुर में 4,200 हेक्टेयर, मिजोरम में 4,070 हेक्टेयर और अरुणाचल प्रदेश में 5,820 हेक्टेयर भूमि पर प्राकृतिक रबड़ की खेती हो रही है।
यहां से जर्मनी, ब्राजील, अमेरिका, इटली, तुर्की, बेल्जियम, चीन, मिस्र, नीदरलैंड, मलेशिया, पाकिस्तान, स्वीडन, नेपाल और संयुक्त अरब अमीरात को नेचुरल रबड़ निर्यात किया जाता है। एक रिसर्च के मुताबिक, भारत से साल 2020 में 12000 मीट्रिक टन से ज्यादा नेचुरल रबड़ का निर्यात हुआ। अब देश के प्रमुख रबड़ उत्पादकों की लिस्ट में उड़ीसा का नाम भी जुड़ने जा रहा है। रबड़ का उपयोग शोल, टायर, इंजन की सील, गेंद, इलास्टिक बैंड व इलेक्ट्रिक उपकरणों जैसी चीज़ों को बनाने में किया जाता है। रबड़ की खेती से 40 साल तक मुनाफा कमा सकते हैं। रबड़ का पौधा 5 वर्ष में पेड़ बन जाता है। इसके बाद इसमें उत्पादन शुरू हो जाता है। रबड़ के पेड़ों को रोजाना कम से कम 6 घंटे धूप जरूरी है।
रबड़ के लिए कैसी हो जलवायु
रबड़ की खेती के लिए लेटेराइट लाल दोमट मिट्टी बेहतर मानी जाती है। मिट्टी का पीएच लेवल 4.5 से 6.0 के बीच होना चाहिए। पौधों को लगाने का सही समय जून-जुलाई है। रबड़ के पौधों को अधिक पानी की जरुरत होती है। सूखापन में पौधा कमजोर हो जाता है। इसमें बार बार सिंचाई की जरूरत होती है। इसकी खेती के लिए अधिक प्रकाश और नमी युक्त जमीन की जरूरत रहती है।
रबड़ की खेती के लिए मिलती है आर्थिक सहायता
रबड़ की खेती करने वाले किसानों को केंद्र सरकार और विश्व बैंक से भी आर्थिक सहायता मिलती है। जंगल में उगने वाले रबड़ के पेड़ आमतौर पर 43 मीटर ऊंचे होते हैं वहीं कारोबार के मकसद से उगाए जाने वाले पेड़ कुछ छोटे होते हैं।
पेड़ से कैसे मिलता है रबड़?
रबड़ के पेड़ में छेद करके इस पेड़ का दूध एकत्र किया जाता है। इसे लेटेक्स (रबरक्षीर) कहते हैं। इसके बाद इकट्ठा हुए लेटेक्स को केमिकल के साथ परीक्षण किया जाता है। जिसमें अच्छी क्वालिटी की रबड़ तैयार की जाती है।
रबड़ के पेड़ से प्राप्त लेटेक्स को सुखाया जाता है। जिससे रबड़ शीट और दूसरे प्रोडक्ट्स बनाए जाते हैं। रबड़ शीट का इस्तेमाल टायर, ट्यूब के अलावा कई उत्पाद बनाने में किया जाता है। यानी कि रबड़ के पौधे से मिले लेटेक्स को कई बार प्रोसेसिंग की प्रकिया से गुजरना होता है। इसके बाद कई तरह के प्रोडक्ट्स बनाए जाते हैं। इस तरह से रबड़ की खेती के जरिए बंपर कमाई कर सकते हैं।