रिजर्व बैंक ने पिछले हफ्ते इंटरेस्ट रेट में 25 बेसिस प्वाइंट्स की कमी कर दी। रेपो रेट में कमी बैंकों के फिक्स्ड डिपॉजिट में पैसे रखने वाले लोगों के लिए अच्छी खबर नहीं है। रेपो रेट में कमी के बाद बैंक भी एफडी पर इंटरेस्ट घटा देते हैं। ऐसे में एफडी से पैसे निकालकर बॉन्ड में लगाने का विकल्प है। सवाल है कि क्या ऐसा करना सही है?
बॉन्ड्स में भी निवेश करने में रिस्क
बॉन्ड्स में निवेश के साथ भी रिस्क जुड़ा होता है। इसमें पहला क्रेडिट रिस्क है। सरकारी बॉन्ड्स पर सरकार की गारंटी होती है। कॉर्पोरेट बॉन्ड्स में आपके निवेश से जुड़ा रिस्क उस कंपनी की वित्तीय सेहत पर निर्भर होता है। उसके बाद इंटरेस्ट रेट रिस्क आता है। इंटरेस्ट रेट बढ़ने पर बॉन्ड्स की कीमतें गिर सकती है। खासकर लंबी अवधि के बॉन्ड्स के साथ ऐसा होता है।
बॉन्ड्स में लिक्विडिटी एफडी से कम
ग्रोथवाइन कैपिटल के को-फाउंडर शुभम गुप्ता ने कहा, "कई इनवेस्टर्स लिक्विडिटी को नजरअंदाज कर देते हैं। बैंक एफडी को किसी समय ब्रेक कर आप पैसे निकाल सकते हैं। आपको थोड़ी पेनाल्टी चुकानी पड़ सकती है। मैच्योरिटी से पहले बॉन्ड्स को बेचने पर कई बार फेयर प्राइस नहीं मिलता है।" एफडी में निवेश पर DICGC के तहत 5 लाख रुपये तक इंश्योरेंस होता है। बॉन्ड्स में इस तरह का कोई इंश्योरेंस नहीं होता।
सरकारी बॉन्ड्स में सबसे ज्यादा सेफ्टी
एक्सपर्ट्स का कहना है कि जब इंटरेस्ट रेट में कमी आ रही हो तो इनवेस्टर्स को सरकार के बॉन्ड्स, स्टेट डेवलपमेंट लोन (एसएलडी) और कॉर्पोरेट बॉन्ड्स में से किसी में निवेश करना चाहिए। सरकारी बॉन्ड्स उन निवेशकों के लिए सही है, जो ज्यादा सेफ्टी चाहते हैं। उन्हें यील्ड घटने से सीधे फायदा होता है। भारत में सरकारी बॉन्ड्स की यील्ड आम तौर पर 5.6 से 6.7 फीसदी होती है।
AAA रेटिंग वाले बॉन्ड्स की यील्ड 7-8.5 फीसदी के बीच
भारत में एएए यानी ट्रिपल ए रेटिंग वाले कॉर्पोरेट बॉन्ड्स की यील्ड 7 से 8.5 फीसदी के बीच रहती है। BBB रेटिंग वाले बॉन्ड्स का रिटर्न 9 से 12 फीसदी के बीच रह सकता है। लेकिन, इसमें डिफॉल्ट का रिस्क बढ़ जाता है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि जो इनवेस्टर्स रिस्क नहीं लेना चाहते हैं, उन्हें AAA रेटिंग वाले बॉन्ड्स में निवेश करना चाहिए।
मिनिमम इनवेस्टटमेंट 1-2 लाख रुपये
रिटेल इनवेस्टर्स को बॉन्ड्स में सीधे निवेश करने के लिए मिनिमम इनवेस्टमेंट अमाउंट का ध्यान रखना होता है, जो थोड़ा ज्यादा होता है। अग्रवाल ने कहा, "आम तौर पर बॉन्ड्स सीधे निवेश करीब 1-2 लाख रुपये से किया जा सकता है। करीब 5 लाख रुपये के निवेश को ज्यादा प्रैक्टिकल माना जाता है, क्योंकि इससे मल्टीपल इश्यूअर्स के साथ इनवेस्टमेंट को स्प्रेड करने का मौका मिलता है।"
डेट म्यूचुअल फंड्स में निवेश का भी विकल्प
रिटेल इनवेस्टर्स सीधे बॉन्ड्स में निवेश करने की जगह डेट म्यूचुअल फंड के विकल्प का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। इसमें सिप के जरिए 500 से 5000 रुपये के बीच निवेश की शुरुआत की जा सकती है। आनंद राठी ग्लोबल फाइनेंस के ईवीपी एंड हेड (ट्रेजरी) हरसिमरन साहनी ने कहा कि यील्ड घटने पर लॉन्ग ड्यूरेशन बॉन्ड्स में सबसे ज्यादा फायदा होता है। लेकिन, इनमें उतारचढ़ाव ज्यादा होता है, जिससे ये उन इनवेस्टर्स के लिए ठीक हैं, जो रिस्क ले सकते हैं।
निवेश में बैलेंस्ड एप्रोच जरूरी
अग्रवाल ने कहा कि इनवेस्टर्स बैलेंस्ड एप्रोच के साथ बॉन्ड्स में निवेश कर सकते है। इसका मतलब यह है कि उन्हें कुछ निवेश लॉन्ग ड्यूरेशन बॉन्ड्स और कुछ निवेश शॉर्ट ड्यूरेशन बॉन्ड्स में करना चाहिए। इससे रिस्क को मैनेज करने में आसानी होती है। लेकिन, निवेश से पहले यह बात ध्यान में रखना जरूरी है कि बॉन्ड्स में निवेश में भी रिस्क जुड़ा होता है।