सरकार अब सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड नहीं बेचेगी, क्योंकि यह 'महंगा' और जटिल उत्पाद है। सरकारी सूत्रों ने सीएनबीसी टीवी18 (CNBC-TV18) को यह जानकारी दी है। सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड (कागजों पर गोल्ड में निवेश) की शुरुआत 2015 में हुई थी। उस वक्त इसका मकसद सोने के इंपोर्ट में बढ़ोतरी को रोकना था। सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा भारत सरकार की ओर से जारी किए जाने वाली स्कीम है, जो बाजार से कम मूल्य पर सोना खरीदने का विकल्प देती है और 8 साल की मैच्योरिटी पूरी होने के बाद गोल्ड मार्केट के आधार पर रिटर्न देती है।
क्या है सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड स्कीम?
इस योजना के तहत सरकार लोगों को बाजार से कम भाव पर सोने में निवेश करने का विकल्प देती है। साथ ही, ऑनलाइन खरीदारी पर 50 रुपये प्रति ग्राम की छूट भी मिलती है। इसके अलावा, 2.5 पर्सेंट का निश्चित ब्याज दिया जाता है। इस योजना के तहत परिवार का हर सदस्य अधिकतम 4 किलो सोना खरीद सकता है। सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड की मैच्योरिटी 8 साल में पूरी होती है।
पहली बार जब 2015 में सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड स्कीम (Sovereign Gold Bond) पेश किया गया था तो इसका इश्यू प्राइस 2,684 प्रति ग्राम तय हुआ था। उस समय इश्यू प्राइस (Issue Price) को 999 प्योरिटी वाले गोल्ड की जारी की गई कीमतों के एक सप्ताह के औसत के हिसाब से तय किया गया था। 2023 में इसकी मैच्योरिटी पूरी हुई थी, जिसका रिडेम्पशन प्राइस 6,132 रुपये प्रति ग्राम तय किया गया था यानी निवेशकों को आठ साल के दौरान 128.5 पर्सेंट का मुनाफा हुआ था।
रिजर्व बैंक द्वारा सरकार की तरफ से जारी सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड में निवेशकों ने 72,274 करोड़ रुपये का निवेश किया था। हालिया बजट दस्तावेज के मुताबिक सरकार का इस मद में निवेशकों का बकाया तकरीबन 9 गुना बढ़कर 85,000 करोड़ रुपये हो चुका है, जो मार्च 2020 में 10,000 करोड़ रुपये था।