देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में ओडिशा के कोरापुट क्षेत्र की कॉफी की तारीफ की। उन्होंने इसे “अद्भुत” स्वाद वाला बताया और इस क्षेत्र की कॉफी उत्पादन की खूबियों पर जोर दिया, जो स्थानीय आदिवासी किसानों की मेहनत और जुनून का नतीजा है। दुनियाभर में इस कॉफी का अरबों का व्यापार किया जाता है।
कोरापुट की कॉफी को उच्च गुणवत्ता का माना जाता है क्योंकि यहां की कृषि-जलवायु परिस्थितियां अरेबिका कॉफी की खेती के लिए आदर्श हैं। इलाके में खासकर चंद्रगिरी और कैबेरी नाम की दो पोषण-समृद्ध कॉफी किस्में उगाई जाती हैं, जिनमें कैफीन की मात्रा कम होती है और अन्य पोषण तत्व अधिक पाए जाते हैं। यह कॉफी जैविक और अर्ध-जैविक तौर पर उगाई जाती है, जो इसे स्वस्थ्य और स्वादिष्ट बनाती हैं।
ओडिशा के कोरापुट जिले में लगभग 5,000 हेक्टेयर भूमि पर कॉफी की खेती होती है, जिसका प्रबंधन आदिवासी विकास सहकारी निगम लिमिटेड (टीडीसीसीओएल) करता है। यह संगठन खरीद, सुखाने, ग्रेडिंग और मार्केटिंग का कार्य करता है, जिससे कप कॉफी की गुणवत्ता बेमिसाल होती है। भारत के कुल कॉफी उत्पादन में कोरापुट का हिस्सा धीरे-धीरे बढ़ रहा है, और निर्यात में भी बढ़ोतरी हो रही है।
इस साल कॉफी का कमाई में उछाल
भारत के वित्त वर्ष 2025-26 के अप्रैल से सितंबर के बीच कॉफी के निर्यात में 15 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है, जो अब 1.05 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया है। इस दौरान कॉफी निर्यात में रुपये के संदर्भ में भी 19 प्रतिशत का उछाल आया है, जो किसानों और निर्यातकों के लिए आर्थिक रूप से लाभकारी साबित हुआ है।
पर्यटन और सांस्कृतिक महत्व
कोरापुट की कॉफी खेती ने पर्यटन को भी बढ़ावा दिया है। प्राकृतिक खूबसूरती और हरियाली से भरा यह क्षेत्र कॉफी प्रेमियों के लिए एक खास गंतव्य बन चुका है। पर्यटक यहां की कॉफी ट्रेल्स, प्राकृतिक वातावरण और आदिवासी संस्कृति का आनंद ले सकते हैं। यह क्षेत्र आंध्र प्रदेश के अराकू घाटी की तरह लोकप्रियता हासिल कर रहा है।
कोरापुट की कॉफी न केवल स्वाद में उत्कृष्ट है, बल्कि यह स्थानीय किसानों के लिए आर्थिक समृद्धि का स्रोत भी है। सरकार और कॉफी बोर्ड की तकनीकी सहायता से यह क्षेत्र तेजी से उभर रहा है।