Growth Investing: तेजी से बढ़ने वाले स्टॉक्स में कैसे करें निवेश, एक्सपर्ट से जानें सही स्ट्रैटेजी और रिस्क
Growth Investing: एक दमदार इनवेस्टमेंट पोर्टफोलियो बनाने की सबसे बेहतर रणनीति ग्रोथ इन्वेस्टिंग है। यह रणनीति लंबी अवधि में बड़ा रिटर्न दे सकती है, लेकिन इसमें जोखिम, वोलैटिलिटी और सेक्टर-स्पेसिफिक चुनौतियां भी जुड़ी होती हैं। समझिए कैसे काम करती है निवेश रणनीति।
ग्रोथ इन्वेस्टिंग धैर्य और लॉन्ग टर्म अप्रोच की मांग करती है।
Growth Investing: तेजी से बदलते बाजार में निवेशकों के लिए जरूरी हो गया है कि वे सिर्फ सुरक्षित नहीं, बल्कि स्मार्ट फैसले भी लें। ऐसे में ग्रोथ इन्वेस्टिंग (Growth Investing) एक अहम अप्रोच बनकर उभरा है, जो उन कंपनियों पर फोकस करता है, जो इनोवेशन, स्केलेबिलिटी और लॉन्ग-टर्म एक्सपेंशन के जरिए इंडस्ट्री को दोबारा परिभाषित कर सकती हैं।
Borderless के फाउंडर और सीईओ सिताश्व श्रीवास्तव (Sitashwa Srivastava) कहते हैं, “हाई-ग्रोथ पोर्टफोलियो को ऐसे डिजाइन करना होता है जहां आक्रामक रिटर्न की संभावना हो, लेकिन साथ ही रिस्क मैनेजमेंट भी उतना ही मजबूत हो। ये पोर्टफोलियो आम तौर पर टेक्नोलॉजी, प्राइवेट इक्विटी और अल्टरनेटिव एसेट्स में केंद्रित होते हैं।”
यह अप्रोच आमतौर पर टेक और हेल्थकेयर सेक्टर से जुड़ी होती है। लेकिन, यह उन सभी इंडस्ट्रीज में लागू हो सकती है, जहां तेज बदलाव और इनोवेशन के जरिए बड़ा रिटर्न संभव है।
जोखिम को समझना सबसे जरूरी
Share.Market के हेड ऑफ इन्वेस्टमेंट प्रोडक्ट्स निलेश डी. नाइक (Nilesh D Naik) कहते हैं, “2020 की मार्केट गिरावट में 100% इक्विटी पोर्टफोलियो करीब 40% तक टूट गया था। बहुत से लोग अपनी रिस्क लेने की क्षमता को तब तक नहीं समझते जब तक उन्हें नुकसान का अनुभव न हो। निवेश से पहले ये सोचना जरूरी है कि आप 35–40% गिरावट का सामना कैसे करेंगे।”
हाई-ग्रोथ पोर्टफोलियो की स्ट्रैटेजी
Scripbox के सीईओ अतुल शिंगल (Atul Shinghal) के अनुसार, हाई-ग्रोथ पोर्टफोलियो तैयार करने के लिए ये उपाय कारगर हो सकते हैं:
अग्रेसिव एसेट एलोकेशन: शुरुआती सालों में 70–90% तक इक्विटी में निवेश करें, लेकिन बाजार कैप और जियोग्राफिकल डायवर्सिफिकेशन जरूरी है।
पोस्ट-टैक्स रिटर्न को बढ़ाना: सेक्शन 80C के तहत ELSS का इस्तेमाल करें, और हाइब्रिड या इक्विटी ओरिएंटेड फंड्स चुनें जिनमें LTCG टैक्स दरें कम हों। NPS भी इस उद्देश्य के लिए बेहतर हो सकता है।
सिस्टमैटिक इन्वेस्टिंग: सिस्टमैटिक इनवेस्टमेंट प्लान (SIP) के जरिए नियमित निवेश बनाए रखें, ताकि एवरेजिंग का फायदा मिले।
लोन का स्मार्ट इस्तेमाल : 6-12 महीनों का इमरजेंसी फंड रखें। लोन का इस्तेमाल शॉर्ट-टर्म गोल्स या पोर्टफोलियो बैलेंसिंग के लिए करें, न कि ग्रोथ के लिए।
ऑल्टरनेटिव इन्वेस्टमेंट्स: PMS, AIFs, प्राइवेट इक्विटी या वेंचर कैपिटल फंड्स में निवेश तभी करें जब पोर्टफोलियो का आकार बड़ा हो।
अपना स्टार्टअप फंड करना: DINK (Dual Income, No Kids) कपल्स के पास अतिरिक्त बचत होती है। ऐसे में 'Fail Fast' मॉडल पर स्टार्टअप शुरू करना आसान होता है, कम नुकसान में आइडिया बदल सकते हैं।
रीबैलेंसिंग और रिव्यू: हर साल पोर्टफोलियो का आकलन करें और जरूरत हो तो डेट से इक्विटी या इक्विटी से डेट में बैलेंस बनाएं।
लाइफ स्टेज की प्लानिंग: माता-पिता की देखभाल, पैरेंटहुड या FIRE (Financial Independence, Retire Early) जैसे संभावित जिम्मेदारियों को ध्यान में रखकर प्लानिंग करें।
ग्रोथ इन्वेस्टिंग में क्या फायदे हैं?
कमाई का तेज स्कोप (Earnings Growth): ऐसी कंपनियां अक्सर तेजी से मुनाफा बढ़ाती हैं, नए प्रोडक्ट लॉन्च से लेकर मार्केट एक्सपेंशन तक।
कंपाउंडिंग रिटर्न: मुनाफे को दोबारा निवेश करके ये कंपनियां वैल्यू तेजी से बढ़ा सकती हैं।
इनोवेशन से फायदा: AI, रिन्यूएबल एनर्जी, बायोटेक्नोलॉजी जैसे सेक्टर्स में ग्रोथ स्टॉक्स तेजी से ट्रेंड पकड़ते हैं।
ग्रोथ पोर्टफोलियो में गोल्ड और कमोडिटी की भूमिका
Borderless के फाउंडर और सीईओ सिताश्व श्रीवास्तव के अनुसार, कमोडिटीज जैसे गोल्ड, एनर्जी और एग्री-लिंक्ड एसेट्स को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। ये मुद्रास्फीति और करेंसी अस्थिरता के खिलाफ सुरक्षा देते हैं और पारंपरिक एसेट्स से अलग डायवर्सिफिकेशन प्रदान करते हैं।
लिक्विडिटी प्लानिंग भी उतनी ही जरूरी है। कैश रिजर्व या क्रेडिट की सुविधा होने से निवेशकों को वोलैटाइल मार्केट में मजबूरी में एसेट नहीं बेचना पड़ता। वहीं टैक्स प्लानिंग जैसे QSBS छूट, टैक्स-लॉस हार्वेस्टिंग और डोनर-अडवाइज्ड फंड्स से टैक्स एफिशिएंसी बढ़ाई जा सकती है।
लेकिन रिस्क भी हैं...
शार्प करेक्शन: भविष्य की ग्रोथ पर आधारित कंपनियों का वैल्यूएशन अधिक होता है, ऐसे में अगर उम्मीद से कम कमाई हो तो बड़ी गिरावट आ सकती है।
वोलैटिलिटी: ग्रोथ स्टॉक्स अक्सर ब्याज दरों, सेंटिमेंट और साइक्लिकल बदलावों के प्रति संवेदनशील होते हैं।
एग्जीक्यूशन रिस्क: अगर स्केलेबिलिटी के दौरान कोई गलती हुई या प्रतिस्पर्धा बढ़ी तो ग्रोथ प्रभावित हो सकती है।
सेक्टर-केंद्रित जोखिम: ऐसे पोर्टफोलियो आमतौर पर टेक या बायोटेक में केंद्रित होते हैं, जिससे सेक्टर स्पेसिफिक रिस्क बढ़ जाता है।
कुल मिलाकर, ग्रोथ इन्वेस्टिंग धैर्य और लॉन्ग टर्म अप्रोच की मांग करती है। यह रणनीति उन निवेशकों के लिए सही है, जो रिस्क लेने को तैयार हैं और ट्रांसफॉर्मेटिव इंडस्ट्रीज में लॉन्ग टर्म मौकों को पहचान सकते हैं। अगर सही तरीके से किया जाए, तो ग्रोथ इन्वेस्टिंग लंबे समय में भारी पूंजी वृद्धि (capital appreciation) का जरिया बन सकती है।
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