भारत में ज्यादातर किराए के समझौते 11 महीने के लिए होते हैं क्योंकि इसके तहत रजिस्ट्रेशन की आवश्यकता नहीं होती, जिससे किराएदार और मकान मालिक दोनों के लिए खर्च और कागजी कार्रवाई कम होती है। छोटे अनुबंध मकान मालिकों को जल्दी किराया बढ़ाने या प्रॉपर्टी वापस लेने में मदद करते हैं, जबकि किराएदारों को नौकरी या जीवनस्थिति बदलने पर आसानी से स्थानांतरित होने की सुविधा मिलती है। हालांकि, ये समझौते कोर्ट में विवाद होने पर लागू कराना मुश्किल हो सकता है।
अगर आप एक जगह लंबे समय तक रहने या फर्नीचर जैसी चीजों में निवेश करने का विचार कर रहे हैं, तो कई साल के अनुबंध फायदेमंद होते हैं। लंबी अवधि के अनुबंध में किराया स्थिर रहता है और मासिक नवीनीकरण की झंझट नहीं होती। इसके साथ ही, नोटिस पीरियड, किराए में बढ़ोतरी, और रखरखाव के नियम कानूनी रूप से अधिक सुरक्षित होते हैं। मकान मालिक को नियमित आय का भरोसा मिलता है, जबकि किराएदार को अनावश्यक किराए की बढ़ोतरी से राहत मिलती है।
छोटे अनुबंधों में स्टाम्प ड्यू चुकानी होती है, लेकिन लंबी अवधि के समझौतों को रजिस्टर करना पड़ता है, जो अधिक खर्चीला होता है। स्टाम्प ड्यू की गणना हर राज्य में अलग-अलग नियमों अनुसार होती है, इसलिए समझौता करने से पहले स्थानीय कानूनों की जाँच जरूरी है।
यदि आपकी नौकरी या जीवन योजना अनिश्चित है, तो 11 महीने का किराया अधिक लचीलापन देता है। लेकिन यदि आप शहर में लंबे समय तक रहेंगे, तो 2-3 साल का अनुबंध चुनकर किराए में वार्षिक वृद्धि को लॉक करना बेहतर होगा।
समझौते में हर महत्वपूर्ण बात जैसे किराया, जमा राशि, अवधि, नोटिस पीरियड, और रखरखाव की शर्तें स्पष्ट रूप में लिखें। सही स्टाम्प ड्यू भुगतान करें और सभी हस्ताक्षर गवाहों के साथ करवाएं।
किराए की अवधि चुनते समय अपनी जीवनशैली, योजनाओं, और कानूनी सुरक्षा को ध्यान में रखना चाहिए। छोटे टर्म अनुबंध अधिक लचीलापन देते हैं, जबकि लंबे टर्म अनुबंध आर्थिक स्थिरता और कानूनी सुरक्षा प्रदान करते हैं। दोनों पक्षों के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे अपनी जरूरतों के अनुसार ठीक से समझौता कर लें।