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क्या भारत की वजह से ग्लोबल मार्केट में खत्म हुई चांदी? जानिए ऐतिहासिक 'चांदी संकट' की पूरी कहानी

दिवाली से पहले भारत में चांदी की रिकॉर्ड डिमांड दिखी। अंतरराष्ट्रीय निवेश भी बढ़ा। लेकिन, इन सबके बीच ग्लोबल मार्केट में चांदी की किल्लत हो गई। समझिए चांदी की डिमांड में रिकॉर्डतोड़ तेजी की कहानी। साथ ही, जानिए कैसे एक वक्त हंट ब्रदर्स और वॉरेन बफे की वजह से आया था चांदी संकट।

अपडेटेड Oct 19, 2025 पर 9:25 PM
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ट्रेडर्स और एनालिस्ट 2025 के चांदी संकट का कारण भारत को बताते हैं।

MMTC-Pamp India Pvt. में ट्रेडिंग के हेड विपिन रैना को पता था कि दिवाली जैसे त्योहारी सीजन में चांदी की मांग में बड़ा उछाल आने वाला है। उन्होंने डिमांड को पूरा करने के लिए कई महीनों से तैयारी कर रखी थी। लेकिन, चांदी खरीदने का उन्माद शुरू हुआ, तो रैना खुद हैरान रह गए।

रैना की कंपनी देश की सबसे बड़ी कीमती मेटल रिफाइनरी है। इसके इतिहास में पहली बार चांदी का स्टॉक खत्म हो गया। रैना ने कहा, ' ज्यादातर लोग जो चांदी और चांदी के सिक्कों का व्यापार करते हैं, उनके पास स्टॉक ही नहीं बचा है। चांदी को लोग बड़ी मात्रा में खरीद रहे हैं। चांदी के लिए इस तरह का पागलपन मैंने अपने 27 साल के करियर में कभी नहीं देखा।'

पूरी दुनिया में चांदी की किल्लत


कुछ ही दिनों में चांदी की यह कमी भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया भर में महसूस की जाने लगी। भारत के त्योहार खरीदारों के साथ ही अंतरराष्ट्रीय निवेशक और हेज फंड भी कीमती धातुओं में निवेश करने लगे। कई इसे अमेरिकी डॉलर की कमजोरी पर दांव मान रहे थे, जबकि कुछ सिर्फ बाजार की तेजी का फॉलो कर रहे थे।

पिछले हफ्ते के अंत तक यह उन्माद लंदन के चांदी बाजार तक फैल गया, जहां वैश्विक कीमतें तय होती हैं। यहां तक कि बड़े बैंक भी बार-बार कॉल्स आने के कारण कीमत तय करने से पीछे हट गए। चांदी की डिमांड में जोरदार तेजी के कई कारण थे। सोलर पावर बूम, अमेरिका भेजने की जल्दी, कीमती धातुओं में निवेश की लहर और भारत से अचानक मांग शामिल थी।

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अगले सप्ताह में कीमतें और बढ़ गईं। शुक्रवार को यह $54 प्रति औंस से ऊपर पहुंच गई, फिर अचानक 6.7% तक गिर गई। ट्रेडर्स के लिए यह गिरावट चांदी बाजार में तनाव का नया संकेत थी। यह 45 साल पहले हंट ब्रदर्स द्वारा बाजार को नियंत्रित करने की कोशिश के बाद से सबसे बड़ी संकट की स्थिति थी।

क्या भारत की वजह से चांदी संकट?

ट्रेडर्स और एनालिस्ट 2025 के चांदी संकट का कारण भारत को बताते हैं। दिवाली के दौरान करोड़ों लोग देवी लक्ष्मी की पूजा के लिए अरबों रुपये के आभूषण खरीदते हैं। एशिया की रिफाइनरियां आमतौर पर सोने की मांग पूरी करती हैं, लेकिन इस साल कई लोगों ने चांदी खरीदी।

यह बदलाव अचानक नहीं था। महीनों से सोशल मीडिया पर प्रचार हो रहा था कि सोने के बाद चांदी अगली तेजी में होगी। अप्रैल में निवेश बैंकर और कंटेंट क्रिएटर सार्थक आहुजा ने अपने 30 लाख फॉलोअर्स को बताया कि चांदी का सोने के मुकाबले 100-टू-1 अनुपात इसे इस साल खरीदने के लिए सही विकल्प बनाता है। उनका वीडियो अक्षय तृतीया के दिन वायरल हुआ।

चीन में छुट्टियों से बड़ी मुश्किल

जैसे ही भारतीय मांग बढ़ी, चीन में एक हफ्ते की छुट्टी हो गई। चीन ही चांदी का सबसे बड़ा सप्लायर है। इसलिए डीलर्स लंदन की ओर रुख करने लगे। वहां भी भंडार काफी हद तक बिक चुके थे। वैश्विक ETFs में निवेश बढ़ने के कारण, लंदन में स्टॉक और कम हो गया। 2025 की शुरुआत से ETF निवेशकों ने 1 करोड़ से ज्यादा औंस चांदी खरीद ली, जिससे भारत की मांग को पूरा करने के लिए स्टॉक कम हो गया।

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लगभग दो सप्ताह पहले, JPMorgan ने अपने एक ग्राहक को बताया कि अक्टूबर महीने के लिए भारत को चांदी उपलब्ध नहीं है, और सबसे जल्दी सप्लाई नवंबर में होगी। जैसे ही भारत में खरीदारी तेज हुई, कोटक एसेट मैनेजमेंट के फंड मैनेजर सतीश डोंडापाटी ने देखा कि भारतीय बाजार में चांदी खत्म हो रही थी, जबकि स्थानीय प्रीमियम लगातार बढ़ रहे थे।

म्यूचुअल फंड ने सिल्वर ETF रोके

कोटक ने नए सब्सक्रिप्शन रोक दिए। UTI और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के फंड ने भी ऐसा ही किया। एनालिस्ट और बुलियन डीलर्स भारतीय मीडिया में चांदी के लिए इतने बड़े टारगेट दे रहे थे, जैसा कि पिछले 14 साल में नहीं देखा गया। इसने FOMO का काम किया यानी कई निवेशक इसलिए चांदी खरीदने लगे कि कहीं वे मुनाफा कमाने से चूक न जाएं।

मुंबई के व्यस्त गोल्ड बाजारों में डीलर्स अंतरराष्ट्रीय मानकों से ऊपर कीमतें लगा रहे थे। अमीर खरीदार कीमत की परवाह किए बिना उपलब्धता के लिए बोलियां लगा रहे थे। प्रीमियम $5 प्रति औंस से ऊपर चले गए। JPMorgan की भारत को चांदी भेजने में अनिच्छा यह बताती है कि सप्लाई पर ग्लोबल लेवल पर दबाव बढ़ रहा है।

धनतेरस से पहले बढ़ा चांदी का संकट

9 अक्टूबर को, यानी धनतेरस से ठीक एक हफ्ता पहले, लंदन का चांदी बाजार अब तक के सबसे बड़े संकट में पहुंच गया था। ट्रेडर्स के मुताबिक, यह स्थिति उन्होंने अपने पूरे करियर में कभी नहीं देखी थी।

लंदन में अचानक बाजार में तरलता (Liquidity) खत्म हो गई, यानी विक्रेताओं की कमी हो गई। इससे पैनिक (घबराहट) फैल गया और रातों-रात चांदी उधार लेने की लागत 200% तक बढ़ गई। बड़े बैंक इस जोखिम से बचने के लिए बाजार से पीछे हटने लगे। नतीजतन, बोली (Bid) और पूछ (Ask) कीमतों में भारी अंतर आ गया, जिससे ट्रेडिंग लगभग ठप हो गई।

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एक वरिष्ठ बैंकर ने बताया कि ग्राहक लगातार कॉल कर रहे थे, लेकिन बैंक खुद कीमत तय करने से डर रहे थे। कुछ लोग तो फोन पर गुस्से में चिल्लाने लगे। वहीं एक ट्रेडर ने कहा कि उस वक्त अलग-अलग बैंक इतने अलग रेट दे रहे थे कि वह एक बैंक से खरीदकर दूसरे को बेचकर तुरंत मुनाफा कमा सकता था, जो सामान्य बाजार में तकरीबन नामुमकिन होता है।

स्विस रिफाइनर Argor-Heraeus के CEO रॉबिन कोल्वेनबैक के शब्दों में, 'लंदन में लीज के नजरिए से लगभग कोई लिक्विडिटी नहीं बची थी।' यानी बाजार में चांदी उधार देने या लेने के लिए कोई तैयार नहीं था और यही संकट का सबसे बड़ा कारण बना।

चांदी के बाजार में पहले भी आ चुके हैं ऐसे संकट

1980 में अमेरिका के मशहूर कारोबारी नेल्सन और विलियम हंट ने चांदी (Silver) के बाजार पर कब्जा करने की कोशिश की। हंट ब्रदर्स ने भारी मात्रा में फिजिकल सिल्वर और फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट खरीदकर इसकी कीमतें कृत्रिम रूप से बढ़ा दीं। 1979 के अंत तक उन्होंने इतनी चांदी जमा कर ली थी कि ग्लोबल मार्केट में सिल्वर की कीमत कुछ ही महीनों में 6 डॉलर प्रति औंस से बढ़कर लगभग 50 डॉलर प्रति औंस पहुंच गई। इस उछाल से पूरी दुनिया में हड़कंप मच गया और इसे 'सिल्वर बुल रन' कहा गया।

लेकिन जनवरी 1980 में अमेरिकी एक्सचेंजों- खासकर COMEX और Chicago Board of Trade ने स्थिति को संभालने के लिए सख्त कदम उठाए। उन्होंने सिल्वर की फ्यूचर्स ट्रेडिंग पर मार्जिन लिमिट बढ़ा दी और नए कॉन्ट्रैक्ट खरीदने पर रोक लगा दी। इन कदमों से सिल्वर की कीमतें तेजी से गिरने लगीं और हंट ब्रदर्स को अरबों डॉलर का नुकसान हुआ।

इस घटना को इतिहास में 'Silver Thursday' कहा गया, जिसने दिखाया कि कैसे एक्सचेंजों के हस्तक्षेप से किसी भी कमोडिटी पर कृत्रिम कब्जे की कोशिश को रोका जा सकता है।

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वॉरेन बफे ने भी खरीदी थी भारी चांदी

1998 में मशहूर निवेशक वॉरेन बफे की Berkshire Hathaway ने दुनिया में बनने वाली सालाना चांदी का लगभग 25% खरीद लिया। यानी, उस साल जितनी चांदी पूरी दुनिया में खानों से निकलती थी, उसका एक चौथाई हिस्सा सिर्फ एक कंपनी ने खरीद लिया। इतनी बड़ी खरीदारी ने बाजार में हलचल मचा दी और कीमतों को ऊपर की तरफ धकेल दिया। इससे ट्रेडर्स और निवेशकों के लिए बाजार असामान्य और चुनौतीपूर्ण हो गया, क्योंकि इतनी बड़ी मात्रा में धातु का अचानक खरीदना आम तौर पर नहीं होता।

इस घटना के बाद, LBMA (London Bullion Market Association) ने नियम बदल दिए। पहले, बड़ी खरीद-बिक्री के बाद तुरंत डिलीवरी करना जरूरी नहीं था। नए नियम के तहत अब खरीदी गई चांदी को 15 दिनों के भीतर वॉल्ट में डिलीवरी करना अनिवार्य कर दिया गया। इसका मतलब यह है कि खरीदी गई चांदी को सुरक्षित स्टॉक में रखा जाएगा और बाजार में तरलता बनी रहेगी। इससे बड़े लेन-देन के बावजूद बाजार ज्यादा स्थिर और नियंत्रित रहेगा।

इस निवेश पर बफे की बर्कशायर हैथवे को भारी नुकसान हुआ, क्योंकि चांदी की कीमतें अचानक से नीचे आ गईं। यही वजह है कि बफे का लंबे समय से कीमती धातुओं को लेकर काफी उदासीन रवैया रहा है। सोने को तो वह 'बेकार' मानते हैं, जो कोई कैश फ्लो नहीं देता।

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