Warren Buffett: गोल्ड में निवेश के हमेशा खिलाफ रहे वॉरेन बफे, क्या ये है उनकी सबसे बड़ी गलती?
Warren Buffett: वॉरेन बफे हमेशा गोल्ड में निवेश के खिलाफ रहे, क्योंकि वे इसे नॉन-प्रोडक्टिव मानते थे। लेकिन 2025 की जबरदस्त गोल्ड रैली ने उनकी सोच को चुनौती दी है। क्या यह उनके करियर की सबसे बड़ी गलती साबित होगी?
Warren Buffett हमेशा से सोने को नॉन-प्रोडक्टिव और बेकार मानते रहे हैं।
Warren Buffett: क्या आप जानते हैं कि वॉरेन बफे (Warren Buffett) ने अपने आठ दशक लंबे इन्वेस्टमेंट करियर में किसी निवेश को लेकर गलती की हो? सुनने में भले अजीब लगे, लेकिन बफे ने सोने (Gold) को लेकर हमेशा एक ही राय बनाई रखी और दशकों तक उसे नहीं बदला। इसके चलते वह एक हैरतंगेज गोल्ड रैली का हिस्सा बनने से चूक गए।
इतिहास में सोने की मांग
पिछले 100 सालों में कई भीषण आर्थिक और सामाजिक संकट आए। जैसे कि ग्रेट डिप्रेशन (Great Depression, 1929-1939), द्वितीय विश्व युद्ध (World War II), 1970 का तेल संकट (Oil Crisis), डॉटकॉम क्रैश (Dotcom Crash, 2000), ग्लोबल डेट क्राइसिस (Global Debt Crisis, 2008), कोविड-19 महामारी (COVID-19 Pandemic) और रूस-यूक्रेन युद्ध (Russia-Ukraine War)।
इन कठिन समयों में स्टॉक्स (Stocks) और बॉन्ड्स (Bonds) की बजाय सोने को सुरक्षित माना गया। हर बार आर्थिक अस्थिरता के समय निवेशक सोने (Gold) की ओर भागे। गोल्ड ने भी संकट के समय निवेशकों को रिटर्न देने के मामले में कभी निराश नहीं किया।
बफे सोने के खिलाफ क्यों?
बफेट 94 साल के हो चुके हैं। उनकी संपत्ति लगभग 150 बिलियन अमेरिकी डॉलर है। वह हमेशा से सोने को नॉन-प्रोडक्टिव और बेकार मानते हैं। उनका कहना है कि सोना कोई इनकम या प्रोडक्शन पैदा नहीं करता। इसलिए यह उनके वैल्यू इन्वेस्टिंग (value investing) के सिद्धांत में फिट नहीं बैठता।
2025 में सोने की चमक
2025 में सोने ने जबरदस्त प्रदर्शन किया। MCX (Multi Commodity Exchange) के अनुसार, भारत में 24 कैरेट सोने की कीमत 10 ग्राम के लिए ₹1,22,000 पार कर गई। एक साल पहले यह कीमत ₹77,400 थी। इसका मतलब है कि सिर्फ 12 महीनों में 58% की हैरतंगेज बढ़त।
तीन साल और पांच साल में भी सोने ने शानदार रिटर्न दिया। पिछले तीन साल में सोने ने 116% और पांच साल में 147% का रिटर्न दिया। इसके मुकाबले, भारतीय शेयर बाजार (Sensex और Nifty) ने पिछले एक साल में बेहद बढ़त दिखाई। वहीं, तीन साल और पांच साल में रिटर्न क्रमशः 40% और 102% रहा। इसका मतलब है कि सोने ने हर अवधि में शेयर बाजार को पीछे छोड़ दिया।
बफे का सोने न पसंद करने का कारण
बफे के मुताबिक, 'सोना बस वहीं बैठा रहता है, कुछ नहीं करता।' बेशक उनका मानना सही था कि सोना कोई इनकम पैदा नहीं करता, जैसे कि फिक्स्ड डिपॉजिट (Fixed Deposit) या कंपनियों के स्टॉक्स (Company Stocks) करते हैं। लेकिन हाल के वर्षों में सोने ने कई इन्वेस्टमेंट क्लास को पीछे छोड़ दिया।
बफे का मानना है कि असली निवेश वही है जो मूल्य पैदा करे और इकम दे। सोना केवल बैठा रहता है और इसकी कीमत इस बात पर निर्भर करती है कि कोई भविष्य में इसे अधिक कीमत पर खरीदेगा या नहीं।
‘बेकार’ संपत्ति की वापसी
2025 में सोना (Gold) बाजार में सबसे चमकदार बन गया है, जिसे दशकों तक बेकार कहा गया। इसकी बढ़त के पीछे कई कारण हैं। दुनिया भर के केंद्रीय बैंक सोने का भंडार (Gold Reserves) बढ़ा रहे हैं, भू-राजनीतिक तनाव और वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता बढ़ रही है। अमेरिकी डॉलर कमजोर हो रहा है, और लगातार मुद्रास्फीति (Inflation) का डर निवेशकों को सुरक्षित संपत्तियों की ओर धकेल रहा है।
सोना भरोसा और सुरक्षा का प्रतीक बन गया है। जब अन्य बाजार अस्थिर होते हैं, तो निवेशक पुराने भरोसेमंद मित्र सोने की ओर लौटते हैं।
बफे की इन्वेस्टमेंट फिलॉसफी
सोना बेशक आज सुर्खियों में है, लेकिन बफे के प्रोडक्टिव इन्वेस्टमेंट ने उन्हें पिछले कई वर्षों में बेशुमार दौलत दी है। जैसे कि एप्पल (Apple), कोका-कोला (Coca-Cola) और अमेरिकन एक्सप्रेस (American Express)। बफे मानते हैं कि असली सफलता केवल एक शानदार साल में नहीं, बल्कि लगातार धैर्य और लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट में है।
इसलिए, भले ही आज गोल्ड का समय है, लेकिन बफे की फिलॉसफी अपनी जगह सही रही है। यही वजह है कि बफे की इस मूल मंत्र को ज्यादातर लॉन्ग टर्म इन्वेस्टर अपनाते हैं- असली संपत्ति वही है जो पैदा हो, जमा नहीं।