Gold production in lab: डायमंड की तरह लैब में बन सकता है असली सोना, लेकिन ये है बड़ी चुनौती
Gold production in lab: लैब में सोना बनाना मुमकिन है, जैसा डायमंड लैब में बनाया जाता है। वैज्ञानिक ट्रांसम्यूटेशन से पारा या सीसा को सोने में बदल सकते हैं। लेकिन, इस प्रक्रिया में कई चुनौतियां हैं। जानिए डिटेल।
1900 के दशक की शुरुआत में जापानी भौतिक विज्ञानी हंतारो नागाओका (Hantaro Nagaoka) ने पारे (Mercury) पर न्यूट्रॉन बमबारी करके पहली बार सोना 'बनाया' था।
Gold production in lab: डायमंड अब सिर्फ धरती की गहराइयों से नहीं, बल्कि लैब से भी निकल रहे हैं। बिल्कुल असली जैसे, कार्बन से बने और वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित। लेकिन सवाल यह है कि क्या सोने (Gold) के साथ भी ऐसा ही किया जा सकता है? क्या इंसान लैब में असली सोना बना सकता है? वैज्ञानिकों ने इसकी कोशिश की है, लेकिन कहानी जितनी सुनने में रोचक है, उतनी ही जटिल भी है।
इंसानों ने जब पहली बार 'बनाया' सोना
1900 के दशक की शुरुआत में जापानी भौतिक विज्ञानी हंतारो नागाओका (Hantaro Nagaoka) ने पारे (Mercury) पर न्यूट्रॉन बमबारी करके पहली बार सोना 'बनाया' था। पारा इस प्रक्रिया के लिए सबसे आसान तत्व माना जाता है, क्योंकि इसके परमाणु सोने के परमाणुओं से काफी मिलते-जुलते हैं।
नागाओका के प्रयोग में पारे के कुछ परमाणु टूटकर सोने में बदल गए थे। यानी, उन्होंने सचमुच सोना 'बना' लिया था। लेकिन, बेहद सूक्ष्म मात्रा में, कुछ परमाणु स्तर पर। बाद में 1972 में सोवियत वैज्ञानिकों ने गलती से एक परमाणु रिएक्टर की सीसे (Lead) की ढाल को सोने में बदल दिया था।
अमेरिकी वैज्ञानिक ग्लेन टी. सीबोर्ग ने कई ट्रांसयूरेनिक तत्वों की खोज की थी। उन्होंने भी 1980 में सीसे से सोना बनाने का दावा किया। यानी वैज्ञानिक नजरिये से यह पूरी तरह मुमकिन है कि किसी तत्व के परमाणु को बदलकर सोना बनाया जा सके।
सोना लैब में कैसे बनता है
सोना किसी साधारण रासायनिक प्रक्रिया से नहीं बनाया जा सकता, लेकिन परमाणु स्तर पर 'ट्रांसम्यूटेशन' प्रक्रिया यह काम कर सकती है। इसमें वैज्ञानिक किसी अन्य तत्व, जैसे पारा (mercury) या सीसा (lead), के परमाणुओं में न्यूट्रॉन जोड़ते हैं। इससे उस तत्व का समस्थानिक (isotope) बदल जाता है यानी उसमें प्रोटॉन की संख्या वही रहती है, लेकिन न्यूट्रॉन की संख्या अलग हो जाती है।
जब यह बदलाव होता है, तो परमाणु अस्थिर (unstable) हो सकता है। ऐसे अस्थिर परमाणु धीरे-धीरे रेडियोधर्मी क्षय (radioactive decay) से गुजरते हैं। इसमें उनका नाभिक (nucleus) टूटकर किसी नए तत्व में बदल जाता है। इसी प्रक्रिया के दौरान पारा या सीसा जैसे भारी तत्व सोने में बदल सकते हैं। यानी वैज्ञानिक एक तत्व के परमाणु की संरचना में थोड़ी छेड़छाड़ करके उसे इतना अस्थिर बना देते हैं कि वह खुद-ब-खुद टूटकर सोने का रूप ले लेता है।
थर्मोन्यूक्लियर हथियारों के विस्फोटों में भी इसी तरह की प्रक्रिया होती है। जब बम फटता है, तो बहुत बड़ी मात्रा में न्यूट्रॉन निकलते हैं और आस-पास के तत्व उन्हें पकड़कर भारी तत्वों में बदल जाते हैं। ठीक वैसे ही जैसे तारों में सुपरनोवा के दौरान होता है, जिसकी वजह सोना स्पेस से धरती पर आया। हालांकि, इस तरीके को सोना बनाने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। क्योंकि यह बेहद महंगा, खतरनाक और अनियंत्रित होता है।
लेकिन इतना मुश्किल क्यों है?
डायमंड को लैब में बनाना अपेक्षाकृत आसान है क्योंकि वह कार्बन से बना है, जो कि एक सरल तत्व है। लेकिन सोना एक भारी परमाणु तत्व है, जिसका परमाणु क्रमांक 79 है। इसे बनाने के लिए किसी अन्य तत्व के न्यूक्लियस में प्रोटॉन और न्यूट्रॉन की संख्या बदलनी पड़ती है। यह सिर्फ न्यूक्लियर ट्रांसम्यूटेशन (nuclear transmutation) से ही मुमकिन है।
इसके लिए परमाणु रिएक्टर या पार्टिकल एक्सेलेरेटर जैसी तकनीक की जरूरत होती है। इसमें अरबों न्यूट्रॉन किसी धातु पर छोड़े जाते हैं ताकि उसके परमाणु टूटकर नई संरचना बना सकें। लेकिन यह प्रक्रिया हद से ज्यादा महंगी और ऊर्जा-खपत वाली होती है। इसमें जितना सोना बनता है, उसकी कीमत बनाने की लागत से लाखों गुना कम होती है।
वैज्ञानिक प्रयोग क्या कहते हैं?
विज्ञान के नजरिए से लैब में सोना बनाना बिल्कुल मुमकिन है। लेकिन, यह व्यावहारिक तो कतई नहीं है। इसके पीछे कुछ अहम कारण हैं।
1 ग्राम सोना बनाने के लिए इतनी ज्यादा ऊर्जा चाहिए कि उससे पूरे शहर को कई घंटों तक बिजली दी जा सकती है।
ट्रांसम्यूटेशन से बना सोना रेडियोएक्टिव (radioactive) भी हो सकता है, जो इंसानी उपयोग के लिए खतरनाक है।
सबसे बड़ी बात है कि सोना बनाने की प्रक्रिया को नियंत्रित तरीके से स्थायी रूप से दोहराना लगभग नाममुकिन ही है।
यही वजह है कि वैज्ञानिकों ने लैब में गोल्ड बनाने को सिर्फ 'संभावना' तक सीमित रखा है, न कि 'उद्योग' तक।
लैब में सोना बनाना भविष्य में मुमकिन होगा?
साइंटिस्टों का मानना है कि भविष्य में अगर न्यूक्लियर फिजिक्स और पार्टिकल एक्सेलेरेटर की लागत बहुत कम हो जाए, तो लैब में सोना बनाना एक 'साइंस फिक्शन से हकीकत' बन सकता है। लेकिन फिलहाल यह सैद्धांतिक रूप से संभव और आर्थिक रूप से असंभव प्रयोग है।
वैज्ञानिक मानते हैं कि ब्रह्मांड में सोना वैसे ही बना था, जब दो न्यूट्रॉन स्टार आपस में टकराए थे। लेकिन, उस प्रक्रिया को आज धरती पर उस बड़े पैमाने पर दोहराना नामुमकिन है। इसलिए, अभी के लिए इंसान सोना बना तो सकता है, लेकिन 'कमाई के लिए' नहीं, सिर्फ 'विज्ञान के लिए।'