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10वीं पास इंफोसिस के ऑफिस बॉय से CEO! दादासाहेब भगत ने 9000 रुपये सैलरी से बनाया इंडिया का Canva

हम अक्सर सुनते हैं कि बिजनेस शुरू करने के लिए बहुत पैसा चाहिए। लेकिन कुछ लोग केवल अपने सपनों और मेहनत के दम पर असंभव को संभव कर दिखाते हैं। महाराष्ट्र के बीड जिले के छोटे से गांव से आने वाले दादासाहेब भगत की कहानी इसका बेस्ट उदाहरण है

अपडेटेड Oct 15, 2025 पर 5:21 PM
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10वीं पास दादासाहेब इंफोसिस में ऑफिस बॉय का काम करते-करते सीईओ बन चुके हैं।

हम अक्सर सुनते हैं कि बिजनेस शुरू करने के लिए बहुत पैसा चाहिए। लेकिन कुछ लोग केवल अपने सपनों और मेहनत के दम पर असंभव को संभव कर दिखाते हैं। महाराष्ट्र के बीड जिले के छोटे से गांव से आने वाले दादासाहेब भगत की कहानी इसका बेस्ट उदाहरण है। 10वीं पास दादासाहेब इंफोसिस में ऑफिस बॉय का काम करते-करते सीईओ बन चुके हैं। अब उनकी कंपनी Canva जैसी विदेशी साइट्स को टक्कर दे रही है।

दादासाहेब का इलाका सूखा पड़ा रहता था, खेती-बाड़ी मुश्किल थी और परिवार में पढ़ाई को महत्व नहीं दिया जाता था। उन्होंने बस 10वीं तक पढ़ाई की और फिर आईटीआई का छोटा सा कोर्स किया। इसके बाद वे रोजगार की तलाश में पुणे पहुंचे और 4000 रुपये महीने की नौकरी करने लगे।

थोड़े समय बाद उन्हें इन्फोसिस (Infosys) में ऑफिस बॉय की नौकरी मिली, जिसमें 9000 रुपये मिलते थे। उनके लिए यह बड़ी बात थी, इसलिए उन्होंने तुरंत यह काम स्वीकार कर लिया। इस नौकरी में उन्हें सफाई करना, सामान लाना और गेस्ट हाउस में छोटे-मोटे काम करने पड़ते थे।


इसी दौरान उन्होंने देखा कि इन्फोसिस के कर्मचारी कंप्यूटर पर काम करके अच्छा कमा रहे हैं। यही देखकर उनके मन में बदलाव आया। उन्होंने सोचा कि अगर वह मेहनत दिमाग से करें तो उनकी जिंदगी बदल जाएगी।

उन्होंने लोगों से पूछा कि वो भी ऐसा काम कैसे कर सकते हैं। जब सबको पता चला कि वह केवल 10वीं पास हैं, तो कई लोगों ने कहा कि यह मुश्किल होगा। लेकिन कुछ ने उन्हें ग्राफिक डिजाइन और एनीमेशन की पढ़ाई करने की सलाह दी, जहां डिग्री से ज्यादा टैलेंट मायने रखता है।

यह बात दादासाहेब को छू गई। बचपन में वे एक मंदिर के चित्रकार से पेंटिंग सीखते थे और उन्हें कला से हमेशा लगाव था। उन्होंने दिन में डिजाइन सीखना और रात में नौकरी करना शुरू कर दिया। कुछ महीनों में ही वह एक डिजाइनर बन गए और कंप्यूटर पर काम से पैसे कमाने लगे।

बड़ी कंपनी में नौकरी ढूंढने की बजाय उन्होंने खुद का काम शुरू करने का फैसला किया। धीरे-धीरे उन्होंने डिजाइन टेंपलेट नाम से अपनी कंपनी शुरू की। शुरुआत में मुश्किलें आईं, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। कोविड-19 लॉकडाउन के समय जब सब कुछ बंद हो गया, तो उन्हें पुणे से वापस अपने गांव लौटना पड़ा। गांव में बिजली और इंटरनेट की दिक्कत थी, लेकिन उन्होंने इसे रुकावट नहीं बनने दिया। वे अपने साथियों के साथ पास की पहाड़ी पर गए, वहां एक गायशाला के पास कंप्यूटर लगाकर काम शुरू किया।

यहीं से उनका असली सफर शुरू हुआ। उनके डिजाइन टेम्पलेट्स को देशभर में पहचान मिली। धीरे-धीरे उनकी कहानी वायरल हुई और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उनके काम की सराहना की, इसे ‘मेक इन इंडिया’ की भावना से जोड़ा।

आज दादासाहेब भगत की कंपनी Canva जैसी विदेशी साइट्स को टक्कर दे रही है। उनका सपना है कि भारत के लोग भारतीय सॉफ्टवेयर पर काम करें और देश के लिए डिजाइन बनाएं।

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