आपके पास कैशलेस मेडीक्लेम पॉलिसी है तो भी हॉस्पिटल एडवान्स पेमेंट के लिए कह सकता है, जानिए क्यों
आम तौर पर लोग यह समझते हैं कि बीमा कंपनी से कैशलेस कार्ड मिल जाने के बाद आपको इमर्जेंसी के मामले में भी नेटवर्क के तहत आने वाले हॉस्पिटल को कोई पेमेंट नहीं करना पड़ता है। लेकिन, यह सच नहीं है
बीमा कंपनियों को फर्स्ट एप्रूवल (प्री-अथॉराइजेशन) देने में आम तौर पर 6 से 24 घंटे का समय लगता है। लेकिन, इमर्जेंसी की स्थिति में आपके पास इंतजार करने के लिए वक्त नहीं होता है।
पहले अगर परिवार में कोई बीमार पड़ता था तो हमें हॉस्पिटल में उसके इलाज का खर्च अपनी जेब से देना पड़ता था। फिर, बीमा कंपनी से खर्च का क्लेम करना पड़ता था। इस प्रोसेस को Reimbursement Claim कहा जाता है। इसके लिए आपके बैंक अकाउंट में थोड़ा इमर्जेंसी फंड होना जरूरी है। लेकिन, यह Cashless Facility शुरू होने के पहले की बात थी।
अब बीमा कंपनियों के पास नेटवर्क हॉस्पिटल्स की लिस्ट होती है। इन हॉस्पिटल्स में इलाज कराने पर आपको तुरंत बीमा कंपनी का एप्रूवल मिल जाता है। बीमा कंपनी आपका क्लेम जल्द एप्रूव कर देती है और इलाज का खर्च सीधे हॉस्पिटल के बैंक अकाउंट में आ जाता है। इस प्रोसेस को Cashless Claim कहा जाता है।
आम तौर पर लोग यह समझते हैं कि बीमा कंपनी से कैशलेस कार्ड मिल जाने के बाद आपको इमर्जेंसी के मामले में भी नेटवर्क के तहत आने वाले हॉस्पिटल को कोई पेमेंट नहीं करना पड़ता है। लेकिन, यह सच नहीं है। आइए इस बारे में विस्तार से जानते हैं।
कैशलेस क्लेम प्रोसेस में क्लेम का सेटलमेंट जल्द और आसानी से हो जाता है। आपको बहुत पेपरवर्क की जरूरत नहीं पड़ती है। बीमा कंपनी और हॉस्पिटल आपस में सीधे संपर्क कर लेते हैं। अस्पताल जरूरी डॉक्युमेंट बीमा कंपनी को भेज देता है।
आम तौर पर कैशलेस हॉस्पिटलाइजेशन के मामले में प्री-अथॉराइजेशन जरूरी होता है। अगर आप पहले से प्लान बनाकर इलाज के लिए हॉस्पिटल जा रहे हैं तो आपको कुछ प्रोसेस पूरे करने होते हैं।
आपको बीमा कंपनी को अस्पताल में भर्ती होने के प्लान के बारे में बताना होगा। यह भी बताना होगा कि आप किस बीमारी का इलाज करा रहे हैं और उस पर कितना खर्च आएगा। आप हॉस्पिटल के इंश्योरेंस डेस्क के जरिए यह काम कर सकते हैं।
हॉस्पिटल इंश्योरेंस डेस्क आपसे कई तरह के डॉक्युमेंट जमा करने के लिए कहेगा। इनमें आपका हेल्थ कार्ड, आइडेंटिटी प्रूफ, पॉलिसी डॉक्युमेंट्स आदि हो सकते हैं। फिर, इंश्योरेंस डेस्क ये डॉक्युमेंट्स सीधे बीमा कंपनी को भेज देगा।
इंश्योरेंस कंपनी डॉक्युमेंट्स की जांच करेगी। फिर वह इलाज पर आने वाले अमाउंट को एप्रूव करेगी। इलाज के खर्च के पेमेंट के लिए प्री-अथॉराइजेशन सबसे पहला प्रोसेस है। इसके बाद आप हॉस्पिटल में भर्ती हो जाते हैं और इलाज शुरू हो जाता है।
पेशेंट के डिस्चार्ज होने से पहले हॉस्पिटल डेस्क बीमा कंपनी को एप्रूवल के लिए फाइनल बिल भेजेगा। बिल की जांच के बाद बीमा कंपनी फाइनल अथॉराइजेशन इश्यू करेगी। फिर यह पैसा बीमा कंपनी की तरफ से हॉस्पिटल को चुका दिया जाएगा। हॉस्पिटल आपसे अथॉराइज अमाउंट नहीं मांगेगा।
मुश्किल यह है कि कई ऐसी स्थितियां हैं, जिनमें यह प्रोसेस काम नहीं आता है। इमर्जेंसी हॉस्पिटलाइजेशन ऐसी ही एक स्थिति है। यह जान लेना जरूरी है कि कैशलेस सुविधाजनक है, लेकिन यह एक इमर्जेंसी सर्विस नहीं है।
इमर्जेंसी हॉस्पिटलाइजेशन में भी ऊपर बताया गए कैशलेस प्रोसेस का इस्तेमाल किया जा सकता है। लेकिन, समय की कमी की वजह से अक्सर यह इफेक्टिव नहीं होता है। इसकी कई वजहे हैं।
बीमा कंपनियों को फर्स्ट एप्रूवल (प्री-अथॉराइजेशन) देने में आम तौर पर 6 से 24 घंटे का समय लगता है। लेकिन, इमर्जेंसी की स्थिति में आपके पास इंतजार करने के लिए वक्त नहीं होता है। इसलिए कैशलेस फैसिलिटी होने के बावजूद आपको हॉस्पिटल को एडवान्स पेमेंट करना पड़ सकता है। इसके बाद ही वह आपको भर्ती होने की इजाजत देगा।
हॉस्पिटल में थर्ड पार्टी एडमिनिस्ट्रेटर (TPA) डेस्क भी हफ्ते के सातों दिन 24 घंटे नहीं खुला रहता है। आम तौर पर टीपीए डेस्क 12 घंटे खुले रहते हैं। ये छुट्टियों के दिन बंद रहते हैं। अगर टीपीए डेस्क बंद होने के दौरान पेशेंट को भर्ती करना पड़ता है तो हॉस्पिटल में कैशलेस क्लेम प्रोसेस शुरू नहीं हो पाएगा। ऐसी स्थिति में हॉस्पिटल आपको रोगी को भर्ती करने और इलाज शुरू करने के लिए एडवान्स डिपॉजिट करने के लिए कहेगा।
इसलिए आपको हमेशा एक इमर्जेंसी फंड और एक एक्टिव क्रेडिट कार्ड रखना चाहिए। इससे अचानक हॉस्पिटलाइजेशन की स्थिति में आपको किसी तरह की दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ेगा।