हेल्थ इंश्योरेंस के ग्राहकों के लिए अच्छी खबर है। प्रीमियम बढ़ाने में इंश्योरेंस कंपनियों की मनमानी पर लगेगी रोक। इंश्योरेंस रेगुलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी (आईआरडीएआई) हेल्थ इंश्योरेंस के प्रीमियम में हर साल होने वाली वृद्धि की लिमिट तय करने पर विचार कर रहा है। यह प्रोडक्ट और पोर्टफोलियो दोनों के लिए होगा। अभी इंश्योरेंस कंपनियां हर साल प्रीमियम अपने मन से बढ़ा देती है। इससे ग्राहकों को काफी दिक्कत का सामना करना पड़ता है।
शुरुआत में प्रीमियम कम बाद में ज्यादा वृद्धि
कई इंश्योरेंस कंपनियां शुरुआत में हेल्थ पॉलिसी का प्रीमियम कम रखती हैं। फिर, हर साल प्रीमियम अपनी मर्जी से बढ़ाती हैं। इससे कुछ ही साल में पॉलिसी ग्राहक के लिए बहुत महंगी हो जाती है। ऐसे में उसके पास सीमित विकल्प रह जाता है। फाइनेंशियल ईयर 2024-25 में जनरल इंश्योरेंस इंडस्ट्री के कुल प्रीमियम कलेक्शन में हेल्थ इंश्योरेंस की हिस्सेदारी 40 फीसदी रहने का अनुमान है।
बुजुर्गों के लिए प्रीमियम में वृद्धि की सीमा तय
कोविड के बाद इंश्योरेंस कंपनियों ने हेल्थ पॉलिसी का प्रीमियम तेजी से बढ़ाया है। इससे प्रीमियम में वृद्धि रेगुलेटर की निगरानी और इसके लिए ठोस पॉलिसी की मांग बढ़ी है। इस साल की शुरुआत में IRDAI ने सीनियर सिटीजंस के लिए हेल्थ पॉलिसी के प्रीमियम में वृद्धि के लिए 10 फीसदी की सीमा तय की थी। इसका मकसद बुजुर्गों को प्रीमियम में होने वाली मनमानी वृद्धि से बचाना था। लेकिन, एक्सपर्ट्स का कहना है कि बीमा कंपनियां 60 साल से कम उम्र के लोगों के प्रीमियम में ज्यादा वृद्धि कर इस लॉस की भरपाई करने की कोशिश कर सकती हैं।
कुल प्रीमियम में हेल्थ पॉलिसी की ज्यादा हिस्सेदारी
जनरल इंश्योरेंस कंपनियों के कुल प्रीमियम कलेक्शन में हेल्थ इंश्योरेंस की हिस्सेदारी काफी ज्यादा है। इसका मतलब है कि रेवेन्यू के लिहाज से उनकी ज्यादा निर्भरता हेल्थ पॉलिसी पर है। ICICI Lombard के कुल प्रीमियम में हेल्थ इंश्योरेंस प्रोडक्ट्स की हिस्सेदारी करीब 30 फीसदी है। न्यू इंडिया इंश्योरेंस के कुल प्रीमियम में हेल्थ इंश्योरेंस की हिस्सेदारी करीब 50 फीसदी है। Go Digit के कुल प्रीमियम में हेल्थ पॉलिसी की हिस्सेदारी करीब 14 फीसदी है। इससे पता चलता है कि जनरल इंश्योरेंस कंपनियों के प्रीमियम में हेल्थ पॉलिसी की हिस्सेदारी बढ़ रही है।
रेगुलेटर जल्द पेश कर सकता है कंसल्टेंशन पेपर
IRDAI इस बारे में जल्द एक कंसल्टेशन पेपर पेस कर सकती है। इसमें हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी के प्रीमियम में वृद्धि की सीमा तय की जा सकती है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि हेल्थ इंश्योरेंस की प्राइसिंग के लिए ठोस नियम जरूरी हैं। इसका असर इंडिया में हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी के इस्तेमाल पर पड़ेगा। प्रीमियम ज्यादा होने से पॉलिसी में लोगों की दिलचस्पी घट जाती है।