लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी खरीदना आसान है और सरेंडर करना मुश्किल, जानिए क्यों

कई लोग जल्दबाजी में लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी खरीद लेते हैं। बाद में उन्हें पता चलता है कि उन्होंने जो पॉलिसी खरीदी है, वह उनके फाइनेंशियल प्लान में फिट नहीं बैठती है। ऐसे में उन्हें पॉलिसी को जारी रखने में कोई फायदा नजर नहीं आता

अपडेटेड Nov 20, 2024 पर 5:57 PM
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एक्सपर्ट्स का कहना है कि ऐसी पॉलिसी खरीदने में समझदारी है, जिसे बाद में सरेंडर करने की जरूरत नहीं पड़े।

लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी खरीदने में सावधानी जरूरी है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी सोचसमझ कर खरीदना चाहिए। जल्दबाजी में पॉलिसी खरीदने पर बाद में काफी नुकसान हो सकता है। इसकी वजह यह है कि कंपनियां पॉलिसी बेचने में काफी उत्साह दिखाती हैं। लाइफ इंश्योरेंस कंपनी का एजेंट कई बार आपके घर का चक्कर लगाने को तैयार रहता है। आप जब बुलाते हैं वह आने को तैयार दिखता है। लेकिन, प्रीमियम का पैसा आपके बैंक अकाउंट से ही निकलते ही वह आपको नजर नहीं आता है।

पॉलिसी सरेंडर करने में काफी नुकसान

कंपनियों का लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी (Life Insurance Policy) ग्राहक को बेचने का प्रोसेस जितना आसान है, पॉलिसी सरेंडर करने का नियम उतना ही मुश्किल है। अव्वल तो लाइफ इंश्योरेंस कंपनी पॉलिसी सरेंडर के रिक्वेस्ट पर बहुत ठंडी प्रतिक्रिया देती हैं। दूसरा, कुछ समय पहले तक पॉलिसी खरीदने के शुरुआती 2-3 साल में सरेंडर करने पर ग्राहक को कोई पैसा वापस नहीं मिलता था। पॉलिसी 3 साल तक चलने के बाद सरेंडर की जा सकती थी। इससे पहले सरेंडर की इजाजत नहीं थी। इसका मतलब है कि अगर किसी व्यक्ति ने 2 साल या ढाई साल तक प्रीमियम जमा किया है तो उसका पूरा पैसा डूब जाता था। अब IRDAI ने नियम बदला है। नए नियम ग्राहकों के हित में हैं।


कई लोग कुछ साल के बाद प्रीमियम चुकाना बंद कर देते हैं

कई लोग जल्दबाजी में लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी खरीद लेते हैं। बाद में उन्हें पता चलता है कि उन्होंने जो पॉलिसी खरीदी है, वह उनके फाइनेंशियल प्लान में फिट नहीं बैठती है। ऐसे में उन्हें पॉलिसी को जारी रखने में कोई फायदा नजर नहीं आता। वे कई साल तक प्रीमियम चुकाने के बाद पॉलिसी डिसकंटिन्यू कर देते हैं। इससे उन्हें काफी नुकसान उठाना पड़ता है। आम तौर पर लाइफ इंश्योरेंस कंपनियों के एजेंट ग्राहक को एन्डॉमेंट पॉलिसी बेचने में दिलचस्पी दिखाते हैं। इसकी वजह यह है कि ऐसी पॉलिसी में उन्हें ज्यादा कमीशन मिलता है।

जरूरत के हिसाब से खरीदें पॉलिसी

एन्डॉमेंट पॉलिसी से व्यक्ति का बीमा का मकसद पूरा नहीं होता है। इसकी वजह यह है कि आम तौर पर ऐसी पॉलिसी का कवर अमाउंट कम होता है। ऐसी पॉलिसी में सेविंग्स का भी कंपोनेंट शामिल होता है। इसलिए ऐसी पॉलिसी का फोकस इंश्योरेंस पर नहीं होता है। यही वजह है कि एक्सपर्ट्स लोगों को टर्म पॉलिसी खरीदने की सलाह देते हैं। टर्म पॉलिसी में कवर अमाउंट ज्यादा होता है और प्रीमियम कम होता है। लेकिन, इसमें एजेंट को कमीशन कम मिलता है। इससे वे टर्म पॉलिसी बेचने में दिलचस्पी नहीं दिखाते हैं।

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ऐसी पॉलिसी खरीदें जिसे सरेंडर करने की जरूरत नहीं पड़े

एक्सपर्ट्स का कहना है कि ऐसी पॉलिसी खरीदने में समझदारी है, जिसे बाद में सरेंडर करने की जरूरत नहीं पड़े। इसकी दो वजहें हैं। पहला पॉलिसी सरेंडर करने में ग्राहक को काफी नुकसान उठाना पड़ता है। दूसरा, ग्राहक अगर तीन-चार साल बाद एक पॉलिसी का प्रीमियम जमा करने के बाद दूसरी पॉलिसी खरीदने का फैसला करता है तो उम्र बढ़ जाने की वजह से उसका प्रीमियम अमाउंट बढ़ जाता है। इसलिए लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी जितनी कम उम्र में खरीदा जाए, उतना फायदा है।

MoneyControl News

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First Published: Nov 20, 2024 5:49 PM

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