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LTCG टैक्स में बदलाव का असर क्या रियल एस्टेट सेक्टर में लंबी अवधि के निवेश पर पड़ेगा?

सरकार ने 23 जुलाई को प्रॉपर्टी के लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस टैक्स के नियमों में बदलाव का ऐलान किया। अब इंडेक्सेशन का फायदा 23 जुलाई से पहले खरीदी गई प्रॉपर्टी पर ही मिलेगा। इंडेक्सेशन के साथ लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस टैक्स 20 फीसदी होगा। बगैर इंडेक्सेशन यह 12.5 फीसदी होगा

अपडेटेड Aug 15, 2024 पर 11:08 AM
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सरकार के एलटीसीजी टैक्स में बदलाव करने के बाद निवेशक इनकम टैक्स की नई और पुरानी रीजीम में से किसी एक को सेलेक्ट कर सकता है।

वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने 23 जुलाई को पेश बजट में कैपिटल गेंस टैक्स के नियमों में बड़े बदलाव के ऐलान किए थे। प्रॉपर्टी के लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस टैक्स के मामले में इंडेक्सेशन बेनेफिट हटा दिया गया। 7 अगस्त को वित्तमंत्री ने कहा कि इंडेक्सेशन बेनेफिट्स हटाने और लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस (एलटीसीजी) टैक्स को 20 फीसदी से घटाकर 12.5 फीसदी करने का मकसद सरकार का रेवेन्यू बढ़ाना नहीं है। ऐसा रियल एस्टेट सहित सभी एसेट क्लास के कैपिटल गेंस टैक्स के नियमों को आसान बनाने के लिए किया गया है।

टैक्स के नियमों में क्या बदलाव हुआ है?

सरकार के एलटीसीजी टैक्स (LTCG Tax) में बदलाव करने के बाद निवेशक इनकम टैक्स की नई और पुरानी रीजीम में से किसी एक को सेलेक्ट कर सकता है। बगैर इंडेक्सेशन (Indexation) लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस टैक्स (Long Term Capital Gains Tax) 12.5 फीसदी होगा। 23 जुलाई से पहले खरीदी गई प्रॉपर्टी पर इंडेक्सेशन के साथ 20 फीसदी लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस टैक्स चुकाना होगा।


नई और पुरानी रीजीम में से कौन फायदेमंद?

एक्सपर्ट्स का कहना है कि अगर प्रॉपर्टी की वैल्यू इनफ्लेशन रेट के मुकाबले ज्यादा तेजी से बढ़ी है तो 12.5 फीसदी का रेट ज्यादा फायदेमंद होगा। इंडेक्सेशन ऐसे मामलों में फायदेमंद हो सकता है, जिनमें प्रॉपर्टी की कीमतों में वृद्धि और इनफ्लेशन के बीच ज्यादा फर्क नहीं है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि टैक्स के नियमों में बदलाव से रियल एस्टेट सेक्टर में छोटी अवधि में निवेश बढ़ सकता है।

नए निवेशक लिक्विडिटी को दे रहे प्राथमिकता

JLL India में सीनियर डायरेक्टर रीतेश मेहता ने कहा कि रियल एस्टेट हमेशा से लंबी अवधि का एसेट क्लास रहा है। इसमें निवेशक 10-15 साल से ज्यादा अवधि के लिए निवेश करते हैं। हालांकि, पिछले कुछ समय से नए निवेशकों की दिलचस्पी शेयरों में निवेश में ज्यादा दिख रही है। इसकी वजह रिटर्न नहीं है बल्कि लिक्विडिटी है। इसका मतलब है कि प्रॉपर्टी के मुकाबले शेयरों को बेचना काफी आसान है। इसलिए पांच साल के अंदर रियल एस्टेट में काफी खरीदफरोख्त दिख सकती है।

रियल एस्टेट में लंबी अवधि के निवेश पर पड़ सकता है असर

एक्सपर्ट्स का कहना है कि टैक्स के नियमों में बदलाव के बाद 102 करोड़ रुपये के ऐसे हाउसिंग सेगमेंट में ज्यादा निवेश दिख सकता है, जिनमें कीमतें बढ़ने की ज्यादा संभावना है और जल्द प्रॉफिट बुक किया जा सकता है। इसका लंबी अवधि के निवेश पर थोड़ा असर पड़ेगा, क्योंकि जुलाई 2024 के बाद खरीदी गई प्रॉपर्टी पर इंडेक्सेशन का बेनेफिट नहीं रह जाएगा। नाइट फ्रैंक इंडिया के रिसर्च हेड विवेक राठी ने कहा कि नए टैक्स का नए कंज्यूमर्स पर खराब असर पड़ सकता है। नई प्रॉपर्टी खरीदने वाले लोगों को इंडेक्सेशन का लाभ नहीं मिलेगा।

एफोर्डेबल हाउसिंग सेगमेंट में निवेश पर असर नहीं

कुल मिलाकर टैक्स में बदलाव के बाद खुद के इस्तेमाल के लिए प्रॉपर्टी खरीदने में दिलचस्पी बढ़ेगी। लग्जरी सेगमेंट यानी 5 करोड़ रुपये से ज्यादा की प्रॉपर्टी में करीब 95 फीसदी खरीदार ऐसे होंगे जो खुद के इस्तेमाल के लिए प्रॉपर्टी खरीदेंगे। बाकी निवेश के लिए खरीदेंगे। मिड सेगमेंट यानी 1-2 करोड़ रुपये की प्रॉपर्टी के मामले में 75 फीसदी खरीदार खुद के इस्तेमाल के लिए प्रॉपर्टी खरीदेंगे। 25 फीसदी इनवेस्टर्स होंगे। टैक्स के नए नियमों का एफोर्डेबल हाउसिंग सेगमेंट पर असर नहीं पड़ेगा।

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