अपना घर हर व्यक्ति का सपना होता है। पहली नौकरी लगते ही व्यक्ति घर खरीदने का प्लान बनाना शुरू कर देता है। लेकिन, दूसरी पीढी को घर की ओनरशिप का ट्रांसफर आज भी एक जटिल मसला है। इंडिया में आज कई परिवारों को रियल एस्टेट ट्रांजेक्शन से जुड़े कानूनी मसलों को लेकर मुश्किल का सामना करना पड़ता है। इनमें स्टैंप ड्यूटी और परिवार में संभावित विवाद के मसले भी शामिल हैं। प्रॉपर्टी ट्रांजेक्शन में स्टैंप ड्यूटी का मसला राज्य से जुड़ा है। जब कभी प्रॉपर्टी की ओनरशिप ट्रांसफर होती है, स्टैंप ड्यूटी चुकानी होती है। अलग-अलग राज्य में प्रॉपर्टी के ट्रासफर के लिए स्टैंप ड्यूटी के अलग-अलग रेट हैं। प्रॉपर्टी जिस राज्य में होती है, उस राज्य का स्टैंप ड्यूटी का रेट लागू होता है।
प्रॉपर्टी की ओनरशिप ट्रांसफर में स्टैंड ड्यूटी लगती है
कुछ राज्यों में अगर प्रॉपर्टी बच्चों या नाती-पोतों को ट्रांसफर की जाती है तो उस पर स्टैंप ड्यूटी या तो नहीं लगती है या उसका रेट बहुत कम है। लेकिन, अगर प्रॉपर्टी भाई-बहन या किसी दूर के रिश्तेदार को दी जाती है तो उस पर स्टैंड ड्यूटी का कम रेट लागू होता है। इंडिया में प्रॉपर्टी के ट्रांसफर में अक्सर पारिवारिक विवाद पैदा होते हैं। अदालतों में प्रॉपर्टी से जुड़े विवाद के मामले भरे पड़े हैं। खासकर परिवार में प्रॉपर्टी के बंटवारे में ज्यादा विवाद पैदा होते हैं। इससे बचने के लिए परिवारों को प्रॉपर्टी के एक्विजिशन और ट्रांसफर का प्लान बनाने की सलाह दी जाती है। प्लान होने से प्रॉपर्टी के ओनरशिप का ट्रांसफर आसानी से हो जाता है। इसमें ज्यादा खर्च भी नहीं आता है।
ट्रस्ट स्ट्रक्चर का इस्तेमाल दुनिया के कई देशों में होता है
इंडिया में कई परिवार एक पीढी से दूसरी पीढी को प्रॉपर्टी के ट्रांसफर के लिए प्राइवेट टस्ट्स का इस्तेमाल कर रहे हैं। प्राइवेट ट्रस्ट्स का इस्तेमाल दुनिया के कई देशों में पहले से होता रहा है। अब इंडिया में भी परिवार की संपत्ति के प्रबंधन के लिए इसका इस्तेमाल हो रहा है। इसके कई फायदे हैं। खासकर परिवार की संपत्ति की सुरक्षा और प्रबंधन के लिहाज से यह काफी फायदेमंद है। रियल एस्टेट को ट्रस्ट के तहत रखने का एक बड़ा फायदा एसेट्स का कंसॉलिडेशन है। एक फैमिली ट्रस्ट में एक स्ट्रक्चर के तहत कई प्रॉपर्टीज शामिल की जा सकती हैं। परिवार के सभी सदस्य इसके लाभार्थी हो सकते हैं। इससे एसेट्स को छोटे-छोटे हिस्सों में बांटने की जरूरत नहीं पड़ती है। इसके अलावा ट्रस्ट के तहत आने वाली प्रॉपर्टी को बगैर अतिरिक्त खर्च के लाभार्थियों के बीच बांटा भी जा सकता है।
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प्रॉपर्टी के प्रबंधन में वसीयत से बेहतर है ट्रस्ट स्ट्रक्चर
सक्सेशन प्लानिंग के लिहाज से भी प्राइवेट ट्रस्ट के कई फायदे हैं। वसीयत को कोर्ट में चैलेंज किया जा सकता है। ट्रस्ट का लीगल स्ट्रक्चर ज्याद स्ट्रॉन्ग है, जिसे जल्द कोर्ट में चैलेंज नहीं किया जा सकता। इसकी वजह यह है कि ट्रस्ट व्यक्ति के जीवित रहते बनाया जाता है और उसका प्रबधन ट्रस्टी करता है। इससे एसेट्स के ट्रांसफर में आसानी होती है। ट्रस्ट के फर्जी होने का कोई सवाल नहीं होता। अक्सर वसीयत के मामले में यह समस्या आती है। इसके अलावा ट्रस्ट का प्रबंधन स्पष्ट कानूनी गाइडलाइंस के तहत होता है।