Rent vs EMI: हर व्यक्ति का सपना होता है कि उसका खुद का घर हो। लेकिन नौकरीपेशा लोगों के लिए यह फैसला लेना आसान नहीं होता कि घर खरीदें या किराये पर रहें। यह फैसला आपकी नौकरी की स्थिरता, इनकम और भविष्य की प्लानिंग पर निर्भर करता है। आइए समझते हैं कि दोनों विकल्पों में कौन सा आपके लिए बेहतर हो सकता है।
किराये पर रहने के फायदे और नुकसान
अगर आपकी नौकरी या आमदनी स्थिर नहीं है, तो किराये पर रहना ज्यादा समझदारी भरा कदम है। इसमें आपको कोई भारी डाउन पेमेंट या लोन लेने की जरूरत नहीं पड़ती। अगर कभी नौकरी चली जाए, तो किराया देना ईएमआई के मुकाबले आसान होता है। साथ ही किराये का घर आपको कहीं भी शिफ्ट होने की आजादी देता है। यानी नौकरी या शहर बदलने में कोई परेशानी नहीं।
हालांकि, किराये पर रहने के कुछ नुकसान भी हैं। हर साल मकान मालिक किराया बढ़ाता है और लंबे समय तक किराये पर रहना सिर्फ खर्च साबित होता है। किराये के पैसे से कोई संपत्ति नहीं बनती और आखिर में आपके पास कुछ नहीं बचता।
ईएमआई पर घर खरीदने के फायदे और नुकसान
अगर आपकी नौकरी स्थिर है और आमदनी लगातार बढ़ रही है, तो ईएमआई पर घर खरीदना बेहतर फैसला हो सकता है। किराये के मुकाबले ईएमआई आमतौर पर तय रहती है और कुछ सालों में यह घर आपकी खुद की संपत्ति बन जाता है। भविष्य में अगर संपत्ति की कीमत बढ़ती है, तो यह एक बड़ा निवेश साबित हो सकता है।
लेकिन ईएमआई पर घर खरीदने में भी जोखिम है। मान लीजिए किसी सॉफ्टवेयर इंजीनियर की सैलरी 1 लाख रुपये है और वह 60 लाख रुपये का फ्लैट खरीदता है, जिसकी ईएमआई 60,000 रुपये है। अगर नौकरी चली जाए, तो इतनी बड़ी ईएमआई चुकाना मुश्किल हो जाएगा। इसलिए, एक्सपर्ट्स सलाह देते हैं कि कम से कम 6 महीने की ईएमआई जितनी रकम सेविंग में रखनी चाहिए ताकि इमरजेंसी में काम आ सके।
क्या करें किराया या ईएमआई?
आखिरकार फैसला आपकी आर्थिक स्थिति और भविष्य की योजना पर निर्भर करता है। अगर आपकी नौकरी पक्की है और इनकम बढ़ने की उम्मीद है, तो घर खरीदना बेहतर विकल्प है। लेकिन अगर आपकी आमदनी अनिश्चित है या बार-बार शहर बदलना पड़ता है, तो किराये पर रहना सही है।
एक समझदारी भरा तरीका यह भी है कि अगर आपने घर खरीदा है, तो उसे किराये पर देकर आप खुद किसी सस्ते घर में रहें। इससे आपकी ईएमआई भी निकल जाएगी और संपत्ति भी आपकी बनी रहेगी।