रियल एस्टेट कंपनी का फ्लैट की डिलीवरी में देर करना आम बात है। बहुत कम खरीदारों को समय पर घर की डिलीवरी मिल पाती है। कई लोगों को तो तय समय बीत जाने के कई साल बाद घर की डिलीवरी मिलती है। रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी (रेरा) के नियम में इस बात का साफ उल्लेख है कि अगर ग्राहक के समय पर पैसे का भुगतान करने के बावजूद रियल एस्टेट कंपनी घर की डिलीवरी में दे करती है तो उसे मुआवजा देना होगा।
ज्यादातर रियल एस्टेट कंपनियां मुआवजा ऑफर नहीं करती
ज्यादातर बिल्डर या रियल एस्टेट कंपनियां (Real Estate Companies) घर की डिलीवरी में देरी के बावजूद अपनी तरफ से मुआवजा ऑफर नहीं करती हैं। ज्यादातर ग्राहक भी ऐसे मामलों की रेरा में शिकायत नहीं करना चाहते। इससे रियल एस्टेट कंपनियों की मनमानी बढ़ती है। कर्नाटक रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी (Real Estate Regulatory Authority) ने हाल में ऐसे ही एक मामले में घर खरीदार को बड़ी राहत दी है। एक ग्राहक ने 2018 में एक घर खरीदा था। बिल्डर ने तय समय पर फ्लैट की डिलीवरी नहीं की। उसने डिलीवरी का समय आगे बढ़ाने के बारे में भी ग्राहक को सूचित नहीं किया।
तय समय पर किस्त का पेमेंट करने पर ग्राहक मुआवजे का हकदार
ग्राहक ने जब डिलीवरी में देरी की शिकायत बिल्डर से की तो उसने 1.75 लाख रुपये का मुआवजा ऑफर किया। ग्राहक ने यह मुआवजा लेने से इनकार कर दिया। आखिर में बिल्डर ने पिछले साल 22 सितंबर को घर का पजेशन ग्राहक को दिया। ग्राहक ने पजेशन में देरी की शिकायत करने का फैसला किया। उसका मानना था कि उसने कोविड की महामारी के दौरान भी फ्लैट की किस्त तय समय पर जमा किया था। इसमें उसे काफी दिक्कत का सामना करना पड़ा था। ग्राहक की दलील थी कि जब लाख दिक्कत के बावजूद उसने समय पर पैसे जमा किए थे तो बिल्डर को कम से कम अपनी तरफ से फ्लैट के पजेशन में देरी के बारे में ग्राहक को बताना चाहिए था।
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रेरा ने ग्राहक की शिकायत पर बिल्डर को दिया मुआवजा चुकाने का आदेश
कर्नाटक रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी (रेरा) ने ग्राहक की शिकायत पर सुनवाई की। जज ने कहा कि बिल्डर और ग्राहक के बीच जो एग्रीमेंट हुआ है उसका हर शब्द अहम है। उन्होंने यह भी कहा कि घर का पजेशन के बाद भी एग्रीमेंट की सभी शर्तें लागू होती है। इस तरह के मामलों में शिकायत करने की जिम्मेदारी ग्राहक पर होती है। इसलिए घर खरीदार को रेरा के तहत अपने अधिकार को लेकर जागरूक रहने की जरूरत है। जज ने यह माना कि बिल्डर ने एग्रीमेंट की शर्तों का पालन नहीं किया है। उन्होंने डिलीवरी में देरी पर बिल्डर को 7.12 लाख रुपये का मुआवजा ग्राहक को देने का आदेश बिल्डर को दिया।