Satish ND, Fund Manager, Kotak Mahindra AMC
Satish ND, Fund Manager, Kotak Mahindra AMC
पिछले 6-7 महीनों में सोने की कीमतों में भारी बढ़ोतरी देखी गई है। यह उछाल मुख्य रूप से प्रमुख ब्याज दरों में कटौती की उम्मीदों, महंगाई को लेकर लगातार बरकरार चिंताओं, अमेरिकी राजकोषीय नीतियों की लॉन्ग टर्म स्थिरता को लेकर संदेह, चल रही भू-राजनीतिक अस्थिरता और अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करने के लिए इससे हटकर डायवर्सिफिकेशन के उद्देश्य से केंद्रीय बैंकों द्वारा गोल्ड की मजबूत खरीद के कारण हुआ है। सुरक्षित निवेश के तौर पर सोने की मांग में और इजाफा हुआ है।
सोना हाल ही में यूरो को पीछे छोड़ते हुए दूसरा सबसे बड़ा ग्लोबल रिजर्व एसेट बन गया है। केंद्रीय बैंकों के रिजर्व में अब इसका हिस्सा लगभग 27 प्रतिशत है, वहीं यूरो का हिस्सा 23 प्रतिशत है। केंद्रीय बैंकों के पास वर्तमान में लगभग 4.5 लाख करोड़ डॉलर का सोना मौजूद है। वहीं अमेरिकी ट्रेजरी में उनकी होल्डिंग लगभग 3.5 लाख करोड़ डॉलर है। यह बदलाव बाजार में उतार-चढ़ाव और वैश्विक अनिश्चितता के बीच वैल्यू के एक विश्वसनीय भंडार के रूप में सोने में बढ़ते विश्वास का संकेत देता है।
निवेशक बरतें सावधानी
सोने की कीमतें रिकॉर्ड ऊंचाई पर हैं। ऐसे में निवेशकों को सावधानी से आगे बढ़ना चाहिए। ब्याज दरों में कटौती में कोई भी देरी या भू-राजनीतिक डायनैमिक्स में बदलाव सोने की तेजी में कमी ला सकते हैं या इसे कुछ वक्त के लिए रोक सकते हैं। फिर भी सोने में धीरे-धीरे निवेश करना एक समझदारी भरा कदम है। सोने में आक्रामक रूप से खरीदारी करने के बजाय, जोखिम उठाने की व्यक्तिगत क्षमता के हिसाब से पोर्टफोलियो का 10-20 प्रतिशत निवेश गोल्ड में होना उचित है।
ब्याज दरें और घटीं तो जारी रह सकता है सोने में उछाल
अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने सितंबर की मीटिंग में प्रमुख ब्याज दरों में 0.25 प्रतिशत की कटौती की। साथ ही 2025 में दो और कटौती का भी संकेत दिया। इस डेवलपमेंट के बाद सोना और भी आकर्षक हो गया है। अगर ब्याज दरों में कटौती होती है और टैरिफ के कारण महंगाई बढ़ती है, तो सोने को उच्च स्तर पर सपोर्ट मिल सकता है। वहीं अगर निकट भविष्य में महंगाई कम होती है और अमेरिकी इकोनॉमी के आंकड़े बेहतर होते हैं, तो सख्त मौद्रिक नीति या मजबूत डॉलर, गोल्ड प्राइस पर दबाव डाल सकते हैं। लॉन्ग टर्म में गोल्ड प्राइस केंद्रीय बैंकों की ओर से डिमांड, भू-राजनीतिक संघर्ष, अमेरिकी डॉलर के रुझान और ट्रेड पॉलिसीज से प्रभावित होगा।
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