मैंने एक क्लाइंट को यह बताया कि एंप्लॉयी प्रोविडेंट फंड (ईपीएफ) पर 8.25 फीसदी का रिटर्न इक्विटी पर 16 फीसदी के रिटर्न से ज्यादा फायदेमंद हो सकता है, वह हंसने लगा। उसने कहा कि यह नामुमकिन है। बाद में मैंने उसको पूरा कैलकुलेशन समझाया।
मैंने एक क्लाइंट को यह बताया कि एंप्लॉयी प्रोविडेंट फंड (ईपीएफ) पर 8.25 फीसदी का रिटर्न इक्विटी पर 16 फीसदी के रिटर्न से ज्यादा फायदेमंद हो सकता है, वह हंसने लगा। उसने कहा कि यह नामुमकिन है। बाद में मैंने उसको पूरा कैलकुलेशन समझाया।
EPF के काम करने का तरीका अलग है। अगर आप प्राइवेट नौकरी करते हैं और ईपीएफ के तहत आते हैं तो आपकी बेसिक सैलरी का 12 फीसदी आपके ईपीएफ अकाउंट में हर महीने डिपॉजिट होता है। इतना ही पैसा एंप्लॉयर हर महीने आपके ईपीएफ अकाउंट में कंट्रिब्यूट करता है। ईपीएफ पर इंटरेस्ट रेट 8.5 फीसदी है। 5 साल के बाद विड्रॉल टैक्स-फ्री है।
EPF को टैक्स के मामले में EEE का दर्जा हासिल है। इसका मतलब है कि आपको जो पैसा इनवेस्ट करते हैं वह टैक्स-फ्री है। आपके पैसे पर जो इंटरेस्ट मिलता है वह टैक्स-फ्री है। रिटायरमेंट पर जो पैसा आपको मिलता है वह भी टैक्स-फ्री है। ईपीएफ अकाउंट में आपके कंट्रिब्यूशन पर सेक्शन 80सी के तहत डिडक्शन की इजाजत है। इनकम टैक्स की पुरानी और नई दोनों ही रीजीम में आपके ईपीएफ अकाउंट में एंप्लॉयर का कंट्रिब्यूशन आपकी टैक्सबेल इनकम का हिस्सा नहीं होता है।
ईपीएफ के मामले में दो लिमिट्स अहम हैं, जिनके बारे में जानना जरूरी है। पहला, अगर पीएफ + एनपीएस + सुपरएनुएशन में एंप्लॉयर का कुल कंट्रिब्यूशन एक साल में 7.5 लाख को पार कर जाता है तो एक्सेस अमाउंट पर टैक्स लगता है। दूसरा, अगर ईपीएफ/वीपीएफ में आपका कंट्रिब्यूशन एक साल में 2.5 लाख रुपये से ज्यादा है तो एक्सेस अमाउंट पर टैक्स लगता है।
कोई व्यक्ति जिसकी सैलरी 40 लाख रुपये (बेसिक सैलरी आम तौर पर सीटीसी का 50 फीसदी होता है, जो करीब 20 लाख होगा) है तो उस पर ऊपर बताई गई कोई शर्त लागू नहीं होगी क्योंकि 12 फीसदी का कंट्रिब्यूशन 2.4 लाख रुपये से कम होगा।
आइए इस कैलकुलेशन को एक उदाहरण की मदद से समझते हैं। मान लीजिए राधा और मधु दो दोस्त हैं। इनमें से प्रत्येक का सीटीसी 26 लाख रुपये है और बेसिक सैलरी हर महीने 1 लाख रुपये है। दोनों ने इनकम टैक्स की नई रीजीम को सेलेक्ट किया है। राधा अपनी बेसिक सैलरी का 12 फीसदी यानी 12,000 रुपये ईपीएफ में कंट्रिब्यूट करती है। उतना ही कंट्रिब्यूशन उनका एंप्लॉयर करता है। इससे कुल मंथली कंट्रिब्यूशन 24,000 रुपये हो जाता है।
उधर, मधु ईपीएफ के विकल्प का इस्तेमाल नहीं करती हैं। इससे उनकी टैक्सेबल सैलरी हर महीने 12,000 रुपये (एंप्लॉयर का कंट्रिब्यूशन) बढ़ जाती है। बढ़ी हुई सैलरी पर 3,744 रुपये टैक्स चुकाने के बाद उनके पास 20,256 रुपये (24,000-3,744) बचते हैं। इस पैसे का इस्तेमाल हर महीने वह शेयरों में कर सकती हैं।
दोनों पांच साल तक इनवेस्ट करते हैं। राधा को ईपीएफ में जमा अपने पैसे पर 8.25 फीसदी रिटर्न मिलता है, जबकि मधु को 11 फीसदी सीएजीआर रिटर्न मिलता है। 5 साल के बाद राधा का ईपीएफ में जमा पैसा 17.75 लाख रुपये हो जाता है। मधु का पोर्टफोलियो की वैल्यू बढ़कर 16.10 लाख रुपये हो जाती है। मधु को लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस पर 35,000 टैक्स चुकाना होगा। इसका मतलब है कि टैक्स के बाद उनके पास 15.75 लाख रुपये का फंड बचेगा।
इक्विटी में कंपाउंडिंग का फायदा ज्यादा इंटरेस्ट रेट पर मिलने के बावजूद राधा ज्यादा फायदे में रहती हैं क्योंकि ईपीएफ से उन्हें ज्यादा नेट इनवेस्टमेंट, गारंटीड स्टैबिलिटी और टैक्स के मामले में पूरी छूट मिलती है। पांच साल में राधा से ज्यादा रिटर्न कमाने के लिए मधु के इक्विटी पोर्टफोलियो का रिटर्न 16 फीसदी सीएजीआर होना चाहिए। इक्विटी में इतना रिटर्न हासिल करना व्याहवहारिक नहीं है।
नितेश बुद्धदेब
(लेखक चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं और निमित कंसल्टेंसी के फाउंडर हैं)
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