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Chhath Puja 2025 date: नहाय-खाय और खरना की नोट कर लें तारीख, दिवाली बाद इस दिन से शुरू होगा लोकआस्था का महापर्व

Chhath Puja 2025 date: छठी मैया और सूर्य देव को समर्पित लोकआस्था के महापर्व छठ का त्योहार दिवाली के बाद मनाया जाता है। ये पर्व कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। इस पर्व की शुरुआत नहाय खाय से होती है और इसका समापन सूर्यदेव को प्रात: अर्घ्य के साथ होता है।

अपडेटेड Oct 07, 2025 पर 8:00 AM
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हर साल कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को छठ का त्योहार मनाया जाता है।

Chhath Puja 2025 date: हर साल कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को छठ का त्योहार मनाया जाता है। ये त्योहार सूर्य देव और छठी मैया को समर्पित है। इस पर्व को कुछ जगहों पर सूर्य षष्ठी भी कहते हैं। इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को नहाय खाय के साथ होती है। इस पर्व में सूर्य देव को सांध्य अर्घ्य और प्रात: अर्घ्य दिया जाता है। मार्कंडेय पुराण में छठी माता को प्रकृति की अधिष्ठात्री देवी और भगवान सूर्य की बहन बताया गया है। छठी मैया संतान सुख और समृद्धि का वरदान देती हैं।

इस पर्व के दूसरे दिन खरना होता है। इस दिन व्रती महिलाएं रात को भोजन और पानी ग्रहण करती हैं और उसके बाद अगले 36 घंटे निर्जल उपवास करती हैं। ये व्रत संतान की लंबी आयु और परिवार की सुख-शांति के लिए किया जाता है। छठ को महापर्व इसलिए कहते हैं क्योंकि 4 दिनों तक चलने वाले इस पर्व में पूरा परिवार एकजुट होता है। इसे प्रकृति के प्रति आभार जताने का तरीका भी माना जाता है। ये पर्व खासतौर से बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, नेपाल के कुछ क्षेत्रों और बंगाल के कुछ क्षेत्रों में पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है। आइए जानते हैं इसके अहम दिन और सही तारीख

छठ पूजा तारीख

नहाय खाय : 25 अक्टूबर 2025, शनिवार

खरना : 26 अक्टूबर 2025, रविवार

संध्या अर्घ्य, छठ पूजा : 27 अक्टूबर 2025, सोमवार


सूर्यास्त : शाम 05:40 बजे

प्रात: अर्घ्य : 28 अक्टूबर 2025, मंगलवार

सूर्योदय सुबह : 6.30

छठ पर्व कैसे मनाते हैं ?

नहाय खाय से होती है शुरुआत : इस दिन व्रती स्नान करते हैं और शाकाहारी भोजन करते हैं। छठ व्रत का पालन करने वाली महिलाएं इस दिन केवल एक समय भोजन करती हैं।

दूसरा दिन खरना : इस दिन व्रती उपवास रखते हैं और शाम को गुड़ की खीर बनाकर छठी मैया को भोग लगाते हैं और फिर प्रसाद ग्रहण करते हैं। इसके बाद शुरू होता है 36 घंटे का निर्जला व्रत।

तीसरे दिन शाम का अर्घ्य : इस दिन सूर्य देव को सूर्यास्त के समय नदी या तालाब के किनारे खड़े होकर अर्घ्य देते हैं।

चौथा दिन प्रात: अर्घ्य : इस दिन व्रती उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं और फिर पारण करते हैं।

छठ पूजा का इतिहास

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, देवी सीता और भगवान राम ने वनवास से लौटने के बाद बिहार के मुंगेर जिले में पूजा की थी। इसके अलावा कुंती ने संतान की प्राप्ति के लिए इसे किया था। द्रौपदी ने भी अपना खोया हुआ राज्य वापस पाने के लिए पूजा की थी।

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