Chhoti Diwali 2025: छोटी दिवाली का पर्व दिवाली के एक दिन पहले मनाया जाता है। कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाये जाने वाले इस त्योहार को नरक चतुर्दशी या रूप चौदस के नाम से भी जाना जाता है। इस साल ये पर्व 19 अक्टबर रविवार के दिन मनाया जाएगा। नरक चतुर्दशी का ये नाम कैसे पड़ा और क्यों इस दिन को छोटी दिवाली के तौर पर मनाया जाता है? जैसे सवाल आमतौर पर सभी के मन में उठते हैं। तो चलिए आज जानते हैं इन सभी सवालों के जवाब।
इस साल कार्तिक मार्स की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि 19 अक्टूबर को दोपहर 1.51 बजे से लग रही है। इसका समापन 20 अक्टूबर को दोपहर 3.44 बजे होगा। इसलिए इस साल छोटी दिवाली 19 अक्टूबर, रविवार को मनाई जाएगी। बड़ी दिवाली या दिवाली का त्योहार 20 अक्टूबर 2025 को मनाया जाएगा।
छोटी दिवाली पूजा का शुभ मुहूर्त
19 अक्टूबर को रात 11.41 बजे से देर रात 12.31 बजे तक
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार नरकासुर नामक राक्षस के अत्याचारों से तीनों लोकों में लोग परेशान थे। मनुष्यों से लेकर देवता तक उसके अत्याचारों से दुखी थे। नरकासुर को यह श्राप मिला हुआ था कि उसकी मृत्यु केवल किसी स्त्री के हाथों ही होगी, इसलिए उसने लगभग 16 हजार स्त्रियों को बंदी बनाकर कारागार में डाल दिया था। इस स्थिति से निपटने के लिए इंद्रदेव, भगवान श्रीकृष्ण से सहायता मांगने पहुंचे।
इंद्रदेव की प्रार्थना स्वीकार करते हुए, भगवान श्रीकृष्ण अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ नरकासुर का वध करने निकल गए। उन्होंने सत्यभामा को अपना सारथी बनाया और उनकी सहायता से नरकासुर का वध कर दिया। इसके बाद श्रीकृष्ण और सत्यभामा ने राक्षस की कैद से 16100 कन्याओं को मुक्त करवाया। ऐसी मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण द्वारा नकारासुर का वध कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर ही किया गया था। इसलिए हर साल इस तिथि को नरक चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है, जिसे हम सभी छोटी दीवाली के रूप में जानते हैं। इतनी कन्या की मुक्ति से प्रसन्न लोगों ने अपने घरों को दीपों से सजाया था। इसलिए ये दिन छोटी दिवाली के तौर पर मनाया जाने लगा।
भगवान कृष्ण के साथ होती है इन देवी-देवताओं की पूजा
नरक चतुर्दशी के दिन भगवान श्री कृष्ण के साथ ही मां लक्षमी और मृत्यु के देवता यम की भी पूजा की जाती है। इस दिन से जुड़ी परंपरा में यमराज के नाम का दीपक जलाने का नियम है। शाम के समय घर के बाद दक्षिण दिशा में यमराज के नाम का दीपक जलाया जाता है।
क्यों कहते हैं इसे रूप चौदस?
रूप चौदस का दिन जाहिर है, सुंदरता और समृद्धि से जुड़ा हुआ है। कुछ लोककथाओं के अनुसार, जब भगवान राम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्षमण के साथ 14 साल का वनवास पूरा करके अयोध्या लौट रहे थे, तो नगरवासी अपने राजा के लौटने की खबर से बहुत खुश थे। पूरे नगर को दुल्हन की तरह सजाया जा रहा था। लेकिन उनके स्वागत से पहले लोगों को खुद को भी तैयार करना था। इसलिए इस दिन उन्होंने उबटन आदि परंपरागत लेप लगाए और नहाकर साफ कपड़े पहनकर तैयार हुए। इसके बाद से इस दिन को रूप चौदस यानी रूप निखारने वाली चतुर्दशी तिथि कहा जाने लगा।