Dhanteras 2025: कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को धनतेरस का त्योहार हर साल धूमधाम से मनाया जाता है। दीपावली के पांच दिनों के त्योहार की शुरुआत इसी दिन से होती है और लोग मां लक्ष्मी के स्वागत की तैयारी करते हैं। इस साल ये त्योहार आज 18 अक्टूबर शनिवार के दिन मनाया जा रहा है। इस बार धन त्रयोदशी के साथ शनि प्रदोष और यम दीपम का शुभ संयोग भी बन रहा है, जिसकी वजह से ये त्योहार और भी खास हो जाता है।
धनतेरस का एक नाम धनत्रयोदशी भी है, क्योंकि आरोग्य के दाता और आयुर्वेद के जनक धनवंतरी भगवान समुद्र मंथन से 13 रत्न के रूप में अमृत कलश के साथ प्रकट हुए थे। इसलिए यह दिन स्वास्थ्य, दीर्घायु और समृद्धि का प्रतीक है। आयुर्वेद में अच्छी सेहत को भी पूंजी माना गया है। धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि के साथ माता लक्ष्मी और कुबेर देव की पूजा की जाती है। कहते हैं इस दिन खरीदी गई चीजों में 13 गुणा वृद्धि होती है इसलिए इस दिन नया बर्तन, सोना या चांदी खरीदना शुभ माना जाता है।
अभिजीत मुहूर्त : सुबह 11:43 बजे से दोपहर 12:29 बजे तक
राहुकाल : सुबह 9:15 बजे से 10:40 बजे तक
धनतेरस का पर्व त्रयोदशी तिथि को प्रदोष काल में मनाया जाता है। सूर्यास्त के बाद लगभग 2 घंटे 24 मिनट की अवधि को प्रदोष काल कहते हैं। इस समय स्थिर लग्न, खासकर वृषभ लग्न, में पूजा करना सबसे शुभ माना जाता है, क्योंकि इससे मां लक्ष्मी घर में स्थायी रूप से विराजमान होती हैं।
इस साल धनतेरस पर यम दीपम और शनि प्रदोष का विशेष संयोग बन रहा है। शनि त्रयोदशी का उल्लेख शिव पुराण और स्कंद पुराण दोनों में मिलता है। यह व्रत चंद्र मास की दोनों त्रयोदशी को किया जाता है। प्रदोष व्रत के दिन के अनुसार, इसे सोम प्रदोष, भौम प्रदोष और शनि प्रदोष कहा जाता है।
धनतेरस के दिन संध्या समय यम दीप जलाने की परंपरा है। त्रयोदशी तिथि को घर के मुख्य द्वार पर दक्षिण दिशा में एक दीपक जलाएं। यह दीपक यमराज को समर्पित होता है। मान्यता है कि इससे यमदेव प्रसन्न होते हैं और परिवार के सदस्यों की अकाल मृत्यु से रक्षा करते हैं।
भगवान शिव शनिदेव के गुरु हैं, इसलिए शनि प्रदोष व्रत शनि ग्रह से संबंधित दोषों, कालसर्प दोष और पितृ दोष के निवारण के लिए भी उत्तम माना जाता है। इस व्रत को करने से भगवान शिव की कृपा से सभी ग्रह दोषों से मुक्ति मिलती है। इस दिन सूर्यास्त के समय प्रदोष काल में शिवलिंग की पूजा की जाती है और शनि मंत्रों के जाप और तिल, तेल व दान-पुण्य किया जाता है। यह व्रत विशेष रूप से उन लोगों के लिए लाभकारी है जो शनि की दशा से पीड़ित हैं।