Jitiya Vrat 2025: पूजा में मांएं पहनती हैं जीतिया लॉकेट, जानें क्या है ये परंपरा और इसका महत्व?

Jitiya Vrat 2025: जीतिया का व्रत संतान की लंबी उम्र और अच्छी सेहत के लिए किया जाता है। ये हर साल आश्विन कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन किया जाता है। इस व्रत में सोने या चांदी के जीतिया के लॉकेट पहनने की खास परंपरा है। आइए जानें क्या है ये परंपरा और इसका महत्व?

अपडेटेड Sep 12, 2025 पर 9:23 AM
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जीतिया व्रत की पूजा में महिलाएं सोने या चांदी का जीतिया पहनती हैं

Jitiya Vrat 2025: हिंदू धर्म जीतिया का व्रत संतान की खुशहाली और लंबी उम्र के लिए किया जाता है और इसका विशेष महत्व है। हर साल आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को महिलाएं निर्जला उपवास करती हैं। जीतिया व्रत की शुरुआत आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को नहाय खाय से होती है। इस दिन शाम को महिलाएं भोजन और जल ग्रहण करती हैं, इसके बाद सीधे नवमी तिथि को व्रत का पारण करने के बाद, तकरीबन 36 घंटों तक निर्जला रहने के बाद ही कुछ खाती हैं। इसलिए इसे हिंदू धर्म के सबसे कठिन व्रतों में से एक माना जाता है। इसे मुख्य रूप से यूपी, उत्तराखंड, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में किया जाता है। इस साल जीतिया का मुख्य व्रत 14 सितंबर को, जबकि नहाय खाय 13 सितंबर को किया जाएगा। इस व्रत में सोने या चांदी के जीतिया के लॉकेट पहनने की खास परंपरा है। आइए जानें क्या है ये परंपरा और इसका महत्व?

क्यों पहनते हैं जीतिया लॉकेट

  • जीतिया का व्रत रखने वाली महिलाएं लाल-पीले रंग का पवित्र धागा पहनती हैं। इसमें सोने या चांदी के जीतिया लॉकेट पिरोए जाते हैं या गांठें बांधी जाती हैं।
  • इन लॉकेटों या गांठों की संख्या संतान की संख्या के अनुसार होती है। एक अतिरिक्त लॉकेट या गांठ शुभता के लिए जोड़ी जाती है।
  • यह धागा और लॉकेट मां की आस्था और संकल्प का प्रतीक होता है।
  • इस धागे और लॉकेट के बिना जितिया व्रत अधूरा माना जाता है।
  • संतान की संख्या के हिसाब से जीतिया लॉकेट धागे में पिरोए जाते हैं। सभी लॉकेट एक ही धागे में पिरोती हैं, अलग-अलग नहीं।

कैसा होता है जीतिया लॉकेट?

जिउतिया लॉकेट पर ‘जीमूतवाहन’ की आकृति बनाई जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसे पहनने से संतान को लंबी उम्र, स्वास्थ्य और समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है।


पूजा विधि 

व्रत के दिन, जिउतिया लॉकेट को सबसे पहले चीलो माता (चील पक्षी की प्रतीक देवी) को अर्पित किया जाता है। इसके अगले दिन, यह पवित्र धागा संतान को पहनाया जाता है, और फिर मां स्वयं उसे धारण करती है।

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First Published: Sep 12, 2025 8:00 AM

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