Kharmas 2025 Katha: हिंदू धर्म में खरमास की अवधि को अत्यंत पवित्र माना जाता है। ये लगभग 30 दिनों का होता है। इसमें मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं, लेकिन पूजा-पाठ और स्नान-दान का बहुत महत्व होता है। सूर्य हर माह राशि परिवर्तन करते हैं, जिसे संक्रांति कहते हैं। 12 राशियों में भ्रमण के दौरान जब सूर्य देवगुरु बृहस्पति की राशि धनु या मीन में प्रवेश करते हैं, तब खरमास लगता है। इस दौरान सूर्य और बृहस्पति दोनों की शक्तियां कमजोर होती हैं। इसलिए इस दौरान शादी, मुंडन, जनेऊ और गृह प्रवेश जैसे मांगलिक कार्य नहीं होते हैं। आज यानी मंगलवार, 16 दिसंबर 2025 से धनु खरमास शुरू हो गया है। इसका समापन सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने पर 14 जनवरी को होगा। इस दिन मकर संक्रांति के पर्व के साथ सूर्य उत्तरायण हो जाएंगे। इसके बाद से मांगलिक कार्य शुरू हो सकेंगे। 30 दिनों की इस अवधि का नाम ‘खरमास’ क्यों पड़ा? इसकी बहुत रोचक पौराणिक कथा का वर्णन मार्कंडेय पुराण में मिलता है। आइए जानें इससे जुड़ी पौराणिक कथा और खरमास में खर के अर्थ के बारे में।
मार्कंडेय पुराण में बताई गई खरमास की कथा के अनुसार, सूर्यदेव के रथ में 7 घोड़ें हैं जो निरंतर चलते रहते हैं। एक बार ऐसा हुआ कि सूर्यदेव के रथ के घोड़े चलते-चलते बहुत थक गए थे। सूर्यदेव से उनकी ये स्थिति देखी नहीं जा रही थी। वे अपने घोड़ों को तालाब में पानी पिलाने लगे। लेकिन सूर्यदेव किसी भी स्थिति में रुक नहीं सकते थे। मगर, अपने थके हुए घोड़ों को रथ में जोत भी नहीं सकते थे। तभी उन्हें तालाब के किनारे 2 गधे दिखाई दिए। सूर्यदेव ने उन्हें ही अपने रथ में जोत लिया और यात्रा करने लगे।
इस तरह एक महीने तक यात्रा करने के बाद सूर्यदेव पुन: उस स्थान पर आए जहां उन्होंने अपने घोड़ों को पानी पीने के लिए छोड़ा था। तब तक सूर्यदेव के घोड़ों की थकान दूर हो चुकी थी। सूर्यदेव ने गधों को अपने रथ से निकाला और पुन: अपने घोड़ों को जोत लिया और आगे की यात्रा करने लगे। ये पूरी घटना तब हुई जब सूर्य धनु राशि में थे। तब से जब भी सूर्य धनु राशि में प्रवेश करता है तो इसे खरमास कहा जाता है। खास बात ये है कि इस महीने में कोई भी शुभ कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन आदि भी नहीं किया जाता है।